कविता : बेवड़ों की बारात ✍ अनूप सैनी ‘बेबाक’

वह जो गांव के उस तरफ
स्कूल के पीछे से
जो कच्चा रास्ता जाता है
पुराने जोहड़ की तरफ
सांझ के धुंधलके में
रुकती है आकर गाड़ी कोई
करके लाइटें बन्द
खड़ी होती है पेडों की ओट में
लेकर साजो सामान
बांटने को चुनावी खैरात
भरे हैं कार्टून शराब के
पव्वे,खम्भा, अद्दा, देसी,इंग्लिश
सब भांत की है इसमें
नही है भेद कोई आज
छोटे बड़े,अमीर गरीब का
जिसको जितनी चाहिये
उतनी ले,इच्छानुसार
उधर पसर रहा है सन्नाटा गांव में
चली आ रही हैं अंधरे में
कई आकृतियां उस ओर
कोई किसी बहाने से
तो कोई छुपता छुपाता
लोकतंत्र का भाग्यविधाता
ज्यों ज्यों ढलती रात
चली जाती देखो उधर
यह बेवड़ों कि बरात।।
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✍ अनूप सैनी ‘बेबाक’