दावा : आज भी मौजूद हैं भगवान हनुमान जी
श्री हनुमान जी को भगवान श्रीराम का अनन्य भक्त कहा जाता है और कहा जाता है कि हनुमान जी अमर हैं और आज भी मौजूद हैं क्योंकि वह भक्ति की परिसीमा है और भक्ति अमर है। वैसे तो भारत में ही नहीं सम्पूर्ण विश्व में हनुमान जी के मंदिर है पर भारत में हनुमान धारा, चित्रकूट, उत्तर प्रदेश, श्री पंचमुख आंजनेयर हनुमान, तमिलनाडू, महावीर हनुमान मंदिर, पटना, बिहार, हनुमान मंदिर, इलाहबाद, उत्तर प्रदेश, हनुमान धारा, चित्रकूट, उत्तर प्रदेश, श्री संकटमोचन मंदिर, वाराणसी, बेट द्वारका हनुमान दंडी मंदिर, गुजरात, मेहंदीपुर बालाजी मंदिर, मेहंदीपुर, राजस्थान, डुल्या मारुति, पूना, महाराष्ट्र, श्री कष्टभंजन हनुमान मंदिर, सारंगपुर, गुजरात, यंत्रोद्धारक हनुमान मंदिर, हंपी, कर्नाटक, गिरजाबंध हनुमान मंदिर – रतनपुर – छत्तीसगढ़, उलटे हनुमान का मंदिर, साँवरे, इंदौर, प्राचीन हनुमान मंदिर, कनॉट प्लेस, नई दिल्ली, श्री बाल हनुमान मंदिर, जामनगर, गुजरात हनुमान मंदिरों का विशेष महत्व है। कहा जाता है जो यहां एक बार आया वह दिव्यता को प्राप्त हो गया पर कहते हैं न, कि हम इंसान कुछ ज्यादा ही पढ़ लिख गये तर्क शास्त्री हो गये तो हर तर्क यह दिया गया कि साबित हो कि क्या हनुमान जी आज भी जिंदा है? तो इस बहस का अंत कुछ इस तरह हुआ जब भारत ही नहीं एक विदेशी ने भी लिखित दावा कर दिया कि हां हनुमान जी आज भी जिंदा हैं –
1- दुनियाभर में महावीर बजरंग बली के हजारों लाखों मंदिर हैं पर 16मंदिर चमत्कारी मंदिर हैं जहां लोगों की आस्था जुड़ी है। उन्हीं मंदिरों में से एक मंदिर ऐसा भी है जहां हनुमान जी भक्तों की मुराद तो पूरी करते हैं बल्कि उनके होने का अहसास भी दिलाते हैं। जी हां, मंदिर में मौजूद मूर्ति प्रसाद खाती है और मूर्ति के आसपास राम नाम की ध्वनी भी सुनाई देती है। यही चमत्कार मंदिर में हनुमान जी के होने का संकेत देती है। यह मंदिर उत्तरप्रदेश के इटावा से करीब 12 किलोमीटर की दूरी पर थाना सिविल लाइन क्षेत्र के गांव रूरा के पास यमुना नदी के निकट पिलुआ महावीर मंदिर है। इस मंदिर से आसपास के जिलों सहित दूर-दूर से भी भक्तों की भीड़ उमड़ती है। यहां दर्शन करने आए भक्तों की महावीर जटिल से जटिल रोग ठीक कर देते हैं।लोगों की मान्यताओं के अनुसार यहां मंदिर में स्थापित हनुमान जी की मूर्ति प्रसाद खाती है। इसके अलावा मूर्ति के मुख से लगातार राम नाम की ध्वनी सुनाई देती है और मूर्ति में सांसें चलने का आभास भी होता है। मंदिर में स्थापित हनुमान जी दक्षिण की तरफ मुंह करके लेटे हैं। मूर्ति के मुंह में जितना भी प्रसाद के रूप में लड्डू और दूध चढ़ाया जाता है वह कहां गायब हो जाता है, इसके बारे में आजतक कोई पता नहीं लगा पाया है।अगर इस मंदिर के इतिहास पर नजर डालें तो आपको बता दें कि करीब तीन सौ साल पूर्व यह क्षेत्र प्रतापनेर के राजा हुक्म चंद्र प्रताप सिंह चौहान के अधीन था। उनको श्री हनुमानजी ने अपनी प्रतिमा यहां होने का स्वप्न दिया था। इसके तहत राजा हुक्म चंद्र इस स्थान पर आए और प्रतिमा को उठाने का प्रयास किया पर वे उठा नहीं सके। इस पर उन्होंने विधि-विधान से इसी स्थान पर प्रतिमा की स्थापना कराकर मंदिर का निर्माण कराया। दक्षिणमुखी लेटी हुई हनुमान जी की इस प्रतिमा के मुख तक हर समय पानी नजर आता है। चाहे जितना प्रसाद एक साथ मुख में डाला जाए, सब कुछ उनके उदर में समा जाता है। अभी तक कोई भक्त उनके उदर को नहीं भर सका और न यह पता चला कि यह प्रसाद कहां चला जाता है।
2-एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अमेरिका (America, US) में भगवान हनुमान (Lord Hanuman) की मौजूदगी के निशान मिले हैं. वहां एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि खोजी थिएडॉर मॉर्ड (Theodore Morde) मध्य अमेरिका (Middle America) के जंगलों की खाक छानकर लौटे तो वे अभिभूत थे. उन्होंने साथियों को बताया था कि एक ऐसा कबीला या फिर एक गांव जैसा दिखने वाला शहर है, जहां का देवता एक ‘बंदर (Monkey) जैसा दिखने वाला’ इंसान था. यह सुनकर साथी लोग हैरान रह गए थे. अब सोशल मीडिया (Social Media) पर इसे शेयर किया जा रहा है और तस्वीर भी पोस्ट (Post) किए जा रहे हैं. थिएडॉर मॉर्ड (Theodore Morde) और उनकी खोज को लेकर एक किताब भी लिखी गई है, जिसका अंश न्यूयॉर्क टाइम्स (New York Times) की वेबसाइट पर दर्ज है। उस जगह का नाम ‘लास्ट सिटी ऑफ मन्की गॉड (The Last City Of Monkey God) ’ बताते हैं. विभिन्न वैज्ञानिकों द्वारा वर्षों से ‘ला क्यूडिआड ब्लान्का’ नाम की जगह को खोजा जा रहा था, लेकिन मॉर्ड की खोज (Discovery Of Morde) ने उन्हें एक नया मोड़ दिया. मॉर्ड (Theodore Morde) की खोज की मानें तो मध्य अमेरिका के मसक्यूशिया, वर्षा जंगलों में करीब 32,000 वर्ग मील में फैली एक ऐसी जगह है, जो लोगों की नज़रों से छिपी हुई है. इस जगह को खोजने के लिए वे एक साथी लॉरेन्स (Lorrence) के साथ 4-5 महीनों तक उन जंगलों में भटकते रहे. वहां की दीवारें कोई आम पत्थर से नहीं, बल्कि सफेद संगमरमर के पत्थरों से बनी हुई थी. मार्ड की खोज के आधार पर वैज्ञानिकों ने इस जगह को ‘दि व्हाइट सिटी (The White City)’ का नाम दिया है.
मार्ड (Theodore Morde) अपनी खोज में बताते हैं, उस जगह को देखकर ऐसा लगा कि मानो यहां कभी कोई बड़ा साम्राज्य रहा होगा. उस शहर के चारों ओर उन सफेद दीवारों का घेरा था. कुछ लोगों से पूछताछ करने पर मॉर्ड (Theodore Morde) को पता लगा कि यहां कोई ऐसी प्रजाति रहा करती थी, जिनका देवता एक बंदर (Monkey) की भांति दिखने वाला मानव था. वह न तो पूरी तरह से मानव था और ना ही पूर्ण रूप से बंदर. लोगों का मानना है कि शायद आज भी उस विशाल बंदर की कोई मूर्ति वहां की जमीन के नीचे दबी हुई है. मार्ड (Theodore Morde) की खोज THE LOST CITY OF THE MONKEY GOD : A True Story पर Douglas Preston की एक किताब प्रकाशित हुई, जिसका रिव्यू न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित किया गया है-
मॉर्ड (Theodore Morde) उस जगह का नाम ‘लास्ट सिटी ऑफ मन्की गॉड (The Last City Of Monkey God) ’ बताते हैं. विभिन्न वैज्ञानिकों द्वारा वर्षों से ‘ला क्यूडिआड ब्लान्का’ नाम की जगह को खोजा जा रहा था, लेकिन मॉर्ड की खोज (Discovery Of Morde) ने उन्हें एक नया मोड़ दिया. मॉर्ड (Theodore Morde) की खोज की मानें तो मध्य अमेरिका के मसक्यूशिया, वर्षा जंगलों में करीब 32,000 वर्ग मील में फैली एक ऐसी जगह है, जो लोगों की नज़रों से छिपी हुई है. इस जगह को खोजने के लिए वे एक साथी लॉरेन्स (Lorrence) के साथ 4-5 महीनों तक उन जंगलों में भटकते रहे. वहां की दीवारें कोई आम पत्थर से नहीं, बल्कि सफेद संगमरमर के पत्थरों से बनी हुई थी. मार्ड की खोज के आधार पर वैज्ञानिकों ने इस जगह को ‘दि व्हाइट सिटी (The White City)’ का नाम दिया है.
रामायण के किष्किंधा कांड के मुताबिक हनुमान एक समय पर मध्य अमेरिका जरूर गए थे.रामायण के इस अध्याय में कहा गया है, एक बार हनुमान पाताल लोक गए थे. वर्तमान में पाताल लोक को मध्य अमेरिका तथा ब्राजील का हिस्सा ही माना जाता है, क्योंकि यह पृथ्वी के ग्लोब के आधार पर भारत देश से बिल्कुल उल्टी दिशा में पड़ता है, जो जमीन से काफी नीचे है. इसीलिए इसे पाताल लोक माना गया था. इस अध्याय के अनुसार एक बार हनुमानजी अपने पुत्र मकरध्वज से मिलने पाताल लोक गए थे, जो हूबहू भगवान हनुमान की तरह ही दिखते थे. पाताल लोक पहुंचने पर हनुमानजी का पाताल के राजा से भीषण युद्ध हुआ, जिसमें पाताल लोक का राजा मारा गया और हनुमान जी ने अंत में पाताल लोक को अपने पुत्र के नाम मकरध्वज से घोषित कर दिया। मॉर्ड अपने साथ निशानी के तौर पर काफी सारी चीज़ें लेकर आए थे, ताकि वैज्ञानिक उनकी खोज पर यकीन कर सकें.
किन्तु मॉर्ड ने अपनी खोज की सारी बातें कभी भी विस्तार से नहीं बताई थी. मॉर्ड ने वैज्ञानिकों से कई अनुभव बांटे लेकिन मूल संदर्भ से कुछ भी नहीं बताया क्योंकि हम इंसान उस पवित्र जगह को अपनी महत्वाकांक्षाओं से बर्बाद न कर डालें।
वैसे यह अद्भुद खोज 12 जुलाई 1940 को हुई थी. 1954 में रहस्यमयी तरीके से मॉर्ड की मौत हो गई और उस जगह का हर एक राज़ उनके साथ ही खत्म हो गया, लेकिन उनके बताए हुए तथ्यों को आधार बनाकर हुए आज भी वैज्ञानिक उस जगह को खोज रहे हैं.
3-सेतु एशिया वेबसाइट में छपी खबर के अनुसार श्रीलंका के जंगलों में कुछ ऐसे कबीलाई लोगों का पता चला है जिनसे मिलने हनुमान जी आते हैं. इन जनजातियों पर अध्ययन करने वाले आध्यात्मिक संगठन ‘सेतु’ के हवाले से यह सनसनीखेज खुलासा किया है. ऐसा बताया जा रहा है पवनपुत्र हनुमान साल 2014 में इस जनजाति के लोगों से मिलने आए थे. इसके बाद वे 41 साल बाद यानी 2055 में इस जनजाति के लोगों से मिलने आएंगे. बता दें इस जनजाति के लोगों को ‘मातंग’ नाम दिया गया है, इन लोगों की तादाद काफी कम है और ये श्रीलंका के अन्य कबीलों से काफी अलग हैं.
‘सेतु’ के अनुसार मातंग कबीले का इतिहास रामायण काल से जुड़ा है. ऐसा कहा जाता है भगवान राम के स्वर्ग सिधारने के बाद हनुमान जी अयोध्या से लौटकर दक्षिण भारत के जंगलों में लौट आए थे . उसके बाद वो समुद्र लांघ कर श्रीलंका पहुंचे जहाँ वो श्रीलंका के जंगलों में रहे. जंगलों में इस कबीले के लोगों ने उनकी सेवा की. हनुमान जी ने इस कबीले के लोगों को ब्रह्मज्ञान का बोध कराया और उन्होंने काबिले के लोगों से वादा किया था कि वे हर 41 साल बाद इस कबीले की पीढियों को ब्रह्मज्ञान देने आएंगे.
दुनियाभर में कई ऐसी जगह हैं जहाँ ऐसे पैरों के निशान बने हुए हैं।
3-#मानसरोवर यात्रा पर निकले थे 3 दोस्त
इस घटना के बारे में कहा जाता है कि 3 दोस्त मानसरोवर की यात्रा पर निकले थे। इनमें से एक हनुमान जी का बहुत बड़ा भक्त था। वो हमेशा हनुमान जी की आराधना करता था। उसे इस बात को जानने की भी जिज्ञासा थी कि आखिर हनुमान जी का असली स्वरूप क्या है? उसकी मानसरोवर यात्रा का उद्देश्य ही हनुमान की खोज थी। बताया जाता है कि कई दिनों की यात्रा के बाद एक दिन वो मानसरोवर तालाब के पास पहुंचे। उनमें से एक को एक लंगूर सी आकृति दिखी जो बड़ी तेजी से हिमालय के पहाड़ों की तरफ जा रही थी। तीनों दोस्त उस आकृति का पीछा करने लगे, लेकिन उस तक पहुंच नहीं पाए। इसके बाद उन्होंने पहाड़ों और गुफाओं में हनुमान को ढूंढने की यात्रा शुरू कर दी।
वहीं हनुमान जी की खोज में हनुमान भक्त को एक गुफा से आती हुई तेज रोशनी दिखी। वो रोशनी का पीछा करते हुए गुफा में पंहुचा। भक्त ने तुरंत ही अपना कैमरा निकाला और एक फोटो खींच ली। बताया जाता है कि फोटो खींचने(तस्वीर 1988) के बाद ही लड़के के प्राण उसके शरीर से निकल गए। हालांकि, इसके बाद उसे अस्पताल ले जाया गया, लेकिन डॉक्टरों के लिए भी ये मौत रहस्यमयी थी। इसके बाद उसके दोस्तों ने कैमरे का रोल निकलवाया और उसकी फोटो बनवाई, जिसमें हनुमान जी की एक तस्वीर सामने आई। इस फोटो में वो ग्रन्थ पढ़ते हुए दिख रहे हैं। ये ग्रन्थ कोई और नहीं बल्कि हर सनातनी की प्राण स्वरूप रामायण है।
इन्हीं तथ्यों के साथ आप सभी शुभचिंतकों को श्री हनुमान जयंती की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं 🙏💐भगवान हनुमान जी इस कोरोना महामारी से सम्पूर्ण विश्व की रक्षा करें और हम सभी को अभय प्रदान करें ।🙏💐
–ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना, न्यूज ऐडीटर सच की दस्तक