Ganesh Chaturthi 2019: गणेश चतुर्थी पर गणपति का ऐसे करें पूजन-
आज है गणेश चतुर्थी। गणपति की स्थापना गणेश चतुर्थी के दिन मध्याह्न में की जाती है। मान्यता है कि गजानन का जन्म मध्याह्न काल में हुआ था। साथ ही इस दिन चंद्रमा देखना वर्जित है। आप चाहे तो बाजार से खरीदकर या अपने हाथ से बनी गणपति की मूर्ति स्थापित कर सकते हैं स्थापना करने से पहले स्नान करने के बाद नए या साफ धुले हुए बिना कटे-फटे वस्त्र पहनने चाहिए।
हरतालिका तीज और गणेश चतुर्थी साथ – साथ पड़ी है…
देशभर में महिलाएं आज अपने पतियों की लंबी उम्र के लिए हरतालिका तीज का व्रत रखेंगी तो वहीं भगवान गणेश के भक्त गणेश मूर्ति स्थापित कर गणेश चतुर्थी का 10 दिवसीय उत्सव शुभारंभ करेंगे। तीजा और गणेश चतुर्थी दोनों एक साथ इसलिए मनाई जाएंगी क्योंकि आज 2 सितंबर को शुक्त पक्ष तृतीया तिथि और चतुथी तिथि दोनों हैं। आज दोपहर 11:55 बजे से चतुर्थी तिथि शुरू हो रही है। जबकि दोपहर 11:55 तक तृतीया तिथि है। तृतीया की उदया तिथि के कारण आज सोमवार को बेहद दुर्लभ शुभ संयोग में भगवान शिव पार्वती को समर्पित व्रत और पर्व हरतालिका तीज आज ही मनाया जा रहा है।
हरतालिका तीज यानी तीजा का कठिन व्रत आज मनाया जा रहा है। व्रत रखने वाली महिलाएं कल 12 बजे रात से पानी और खाना छोड़ चुकी हैं। पूरे दिन पूजा पाठ करने के साथ ही आज रात्रि जागरण भी करेंगी। इसके अगले दिन यानी मंगलवार को सुबह भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा करने के बाद व्रत का पारण कर अन्न जल ग्रहण करेंगी। यानी व्रत के दौरान इन 24 घंटों तक वह बिजा जल और भोजन के ही रहेंगी।
भगवान गणेश को ज्ञान, बुद्धि और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। भगवान गणेश को गजानन, गजदंत, गजमुख जैसे नामों से भी जाना जाता है। हर साल की तरह इस बार भी गणेश चतुर्थी का पर्व हर साल हिन्दू पंचाग के भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को शुरू हो रहा है। इस बार गणेश चतुर्थी आज 2 सितंबर को शुरू हो रही है। दो सितंबर को ही लोग भगवान गणेश की मूर्ति स्थापति कर अगले 10 दिन तक गणेश उत्सव मनाएंगे।
हर मांगलिक कार्य में सबसे पहले श्री गणेश की वंदना भारतीय संस्कृति में अनिवार्य मानी गई है। ज्योतिषाचार्य डॉ. अर्रंवद मिश्र ने बताया कि व्यापारी वर्ग बही खातों, यहां तक कि आधुनिक बैंकों में भी खातों आदि में सर्वप्रथम श्री गणेशाय नम: अंकित किया जाता है।
गणेशोत्सव भाद्रपद की चतुर्थी से चतुर्दशी तक 10 दिन चलता है। इस साल यह अवधि दो सितंबर से 12 सितंबर तक रहेगी।
गणेश स्थापना का शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार अभिजित मुहूर्त सुबह लगभग 11.55 से दोपहर 12.40 तक रहेगा। इसके अलावा पूरे दिन शुभ संयोग होने से सुविधा अनुसार किसी भी शुभ लग्न या चौघड़िया मुहूर्त में गणेश जी की स्थापना कर सकते हैं। 12 सितंबर को गणेश प्रतिमा का विसर्जन किया जाएगा।
दिन में गणेश पूजा का टाइम
मध्यान्ह गणेश पूजा : दोपहर 11:05 से 01:36 तक
चंद्रमा न देखने का समय : सुबह 8:55 बजे से शाम 9:05 बजे तक
राशि के अनुसार करें अर्पण –
मेष व वृश्चिक- गणेश जी को लाल या नारंगी वस्त्र , बूंदी के पीले लड्डू, अनार, लाल पुष्प चढ़ाएं।
वृष व तुला- प्रतिमा पर श्वेत वस्त्र, सफेद फूल तथा मोदक चढ़ाएं। गणेश चालीसा का पाठ लाभदायक रहेगा।
मिथुन व कन्या- मूर्ति पर हरे वस्त्र, पान, हरी इलायची, दूर्वा, हरे मूंग, पिस्ता आदि चढ़ाएं और अर्थवशीर्ष का पाठ करें।
कर्क- गुलाबी परिधान से मूर्ति को सुशोभित करें। गुलाब के फूल मिश्रित खीर का भोग लगाएं और गायत्री गणेश का मंत्र जाप करें।
सिंह- रक्त रंग के वस्त्र, कनेर के या लाल पुष्प, गुड़ या गुड़ का हलवा अर्पित करें। संकट नाशक गणेश स्तोत्र का पाठ करें।
धनु व मीन- इस राशि वाले लोग पीले वस्त्र, पीले पुष्प, बेसन के लड्डू, केले, पपीते का प्रसाद चढ़ाएं। गणेश बीज मंत्र का जाप करें।
मकर व कुंभ- नीले वस्त्र, खोये का प्रसाद, आक के पत्ते, नीले फूल अर्पित करें। श्री गणेशाय नम: मंत्र का जाप करें।
गणेशोत्सव से जुड़ी मान्यताएं-
इस दिन लोग मिट्टी से बनी भगवान गणेश की मूर्तियां अपने घरों में स्थापित करते हैं। गणेश चतुर्थी का उत्सव मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा से शुरू होती है। इस पूजा के 16 चरण होते हैं जिसे शोदशोपचार पूजा के नाम से जाना जाता है। इस पूजा के दौरान भगवान गणेश के पसंदीदा लड्डू का भोग लगाया जाता है। इसमें मोदक, श्रीखंड, नारियल चावल, और मोतीचूर के लड्डू शामिल हैं। इन 10 दिनों के पूजा उत्सव में लोग रोज सुबह शाम भगवान गणेश की आरती नियमित रूप से करते हैं। व्यवस्था के अनुसार आयोजक भजन संध्या का भी आयोजन करते हैं।
गणेश चतुर्थी कथा –
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार माता पार्वती स्नान करने से पहले चंदन का उपटन लगा रही थीं। इस उबटन से उन्होंने भगवान गणेश को तैयार किया और घर के दरवाजे के बाहर सुरक्षा के लिए बैठा दिया। इसके बाद मां पार्वती स्नान करने लगे। तभी भगवान शिव घर पहुंचे तो भगवान गणेश ने उन्हें घर में जाने से रोक दिया। इससे भगवान शिव क्रोधित हो गए और गणेश सिर धड़ से अलग कर दिया। मां पार्वती को जब इस बात का पता चला तो वह बहुत दुखी हुईं। इसके बाद भगवान शिव ने उन्हें वचन दिया कि वह गणेश को जीवित कर देंगे। भगवान शिव ने अपने गणों से कहा कि गणेश का सिर ढूंढ़ कर लाएं। गणों को किसी भी बालक का सिर नहीं मिला तो वे एक हाथी के बच्चे का सिर लेकर आए और गणेश भगवान को लगा दिया। इस प्रकार माना गया कि हाथी के सिर के साथ भगवान गणेश का दोबारा जन्म हुआ। मान्यताओं के अनुसार यह घटना चतुर्थी के दिन ही हुई थी। इसलिए इस दिन को गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है।
कैसे करें पूजा :
शुद्ध होकर आसन पर बैठें। एक ओर पुष्प ,धूप, कपूर, रोली, मौली, लाल चंदन, दूर्वा, मोदक आदि रख लें। चौकी पर साफ पीला कपड़ा बिछाएं। उस पर गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करें। मूर्ति पर सिंदू लगाएं, दूर्वा चढ़ाएं। धूप, दीप, नैवेद्य , पान का पत्ता ,लाल वस्त्र तथा पुष्प आदि अर्पित करें।
मीठे मालपुओं तथा लड्डुओं का भोग लगाएं। पूजा में संपूर्ण शिव परिवार- की पूजा करनी चाहिए। सभी आवाहित देवी-देवताओं का विधि से विसर्जन करना चाहिए।
गणेशजी जी के आकर्षक अंगों का महत्व –
-टीम सच की दस्तक की तरफ़ से आप सभी को गणेश महोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं।