ग़ज़ल : दर्पण हमें पुकारेंगे
थिरकती बूँदों के सावन हमें पुकारेंगे।
महती खुशबू के मधुबन हमें पुकारेंगे।
तुम्हारे जिस्म की खुशबू भरे गुलाबों से,
महकते फूलों के गुलशन हमें पुकारेंगे।
अभी तो प्यार का अंकुर दिलों में फूटा है,
बढ़ेगा जब तो यह तन-मन हमें पुकारेंगे।
खनक उठेंगे जो घूँघट की सलवटों के लिए,
तुम्हारे हाथ के कंगन हमें पुकारेंगे।
उठेगी हूक जब दिल में बरस पड़ेंगे नयन,
बरसते नयनों के सावन हमें पुकारेंगे।
वफा के रंग की तस्वीर देख लेंगे तो,
तुम्हारे नयनों के दर्पण हमें पुकारेंगे।
_मुनीश चंद्र सक्सेना, देहरादून।