गोरखा समुदाय, असम के सदस्यों की नागरिकता का स्पष्टीकरण जारी –
गृह मंत्रालय ने प्रवासी कानून, 1946 के अनुसार असम में रह रहे गोरखा समुदाय के सदस्यों की नागरिकता की स्थिति के बारे में राज्य सरकार को स्पष्टीकरण जारी किया है।
हाल ही में ऑल असम गोरखा स्टूडेंट्स यूनियन ने गृह मंत्री राजनाथ सिंह को एक ज्ञापन दिया था क्योंकि असम में रह रहे गोरखा समुदाय के सदस्यों के कुछ मामले प्रवासी न्यायाधिकरण के पास भेज दिए गए थे।
असम सरकार को भेजी गई जानकारी में गृह मंत्रालय ने भारतीय नागरिकों के मामले में गोरखाओं के सामने उत्पन्न कठिनाइयों को दूर करने के विभिन्न प्रावधानों की एक सूची दी है।
24 सितम्बर, 2018 को लिखे गए पत्र में कहा गया है कि गोरखा समुदाय के जो सदस्य संविधान बनने के समय भारतीय नागरिक थे, अथवा जो जन्म से भारतीय नागरिक हैं, जिन्होंने पंजीकरण अथवा नागरिकता कानून, 1955 के प्रावधानों के अनुसार नागरिकता हासिल की है प्रवासी कानून, 1946 के अनुच्छेद 2 (ए) तथा प्रवासी कानून 1939 के पंजीकरण के विषय में ‘‘विदेशी’’ नहीं हैं।
अत: ऐसे मामलों को प्रवासी न्यायाधिकरण के पास नहीं भेजा जाएगा।
इसमें जोर देकर कहा कि गया है कि गोरखा समुदाय का कोई भी सदस्य जिसके पास नेपाली नागरिकता है और जो नेपाल सीमा पर जमीन अथवा वायु के रास्ते पासपोर्ट अथवा वीजा के बिना भारत पहुंच चुका है और कितने भी लंबे समय से भारत में रह रहा है उसे अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा ।
यदि उसके पास पहचान का कोई दस्तावेज जैसे नेपाली पासपोर्ट, नेपाली प्रमाणपत्र, नेपाल के चुनाव आयोग द्वारा जारी वोटर आईडी, भारत में नेपाली दूतावास द्वारा जारी सीमित वैधता फोटो पहचान प्रमाणपत्र है।
इसमें 10-18 वर्ष के आयु वर्ग के ऐसे बच्चे भी शामिल हैं जिनके पास स्कूल के प्रधानाचार्य द्वारा जारी फोटो आईडी है और जो वैध यात्रा दस्तावेजों के साथ यात्रा करने वाले अपने माता-पिता के साथ हैं। 10 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए ऐसे किसी दस्तावेज की आवश्यकता नहीं है।