गाँव का हूँ ,गाँव में हूँ। पंखा,कूलर,ए.सी नहीं, नीम,आम,बरगद,पीपल के छांव में हूँ।
दुनिया गाए हिप हॉप,रॉक और पॉप, लेकिन मैं तो मग्न ठुमरी,ददरी,चैता,कजरी की राग में हूँ। जीवन की सारी बोध, स्कूल और कॉलेज में नहीं, इसलिए बड़े- बुज़ुर्गो के पाँव में हूँ। गाँव का हूँ,गाँव में हूँ।
पेट में बर्गर,पिज्जा और कोक नहीं, दही,दूध और छाली है। एसीलिए जिम, कुँग फू कराटे नही, कुश्ती की दाव में हूँ। गाँव का हूँ, गाँव में हूँ।
धान गेहूँ सरसों वाले हरे भरे खेत में हूँ, भादो के अंधेरिया में हूँ, जेठ की तपती दूपहरिया में हूँ। पूस की भोरहरिया में हूँ, नदी,पैन और पोखरिया में हूँ। गँउवा के पुरबे बसल देवी माई के मंदिरिया में हूँ। गाँव का हूँ, गाँव में हूँ।
देश के सचे सपूत जवान ,और किसान में हूँ। है प्रीत जहाँ की रीत सदा, उस भारत की पहचान में हूँ। झोल झाल ना भागा दौड़ी, मैं तो बिलकुल इतमीनान में हूँ। गाँव का हूँ, गाँव में हूँ।
माई के दूलार में हूँ, बाबु जी के फटकार में हूँ। साथ खेले आँख-मिचौली,मैं तो ऐसे यार में हूँ। दादा-दादी भी हैं, बड़के,मँझले भैया-भाभी भी हैं, हम साथ साथ हैं कहने वाले संयुक्त परिवार में हूँ गाँव का हूँ, गाँव में हूँ।
Bahut khub Avnish bhiya ji