वकील के. पराशरण, पहले भी लड़ चुके हैं देवताओं की तरफ से केस
तमिलनाडु प्रांत के श्रीरंगम में 9 अक्टूबर 1927 को जन्मे 93 वर्षीय केशव पराशरण अपनी टीम के साथ सुप्रीम कोर्ट में लगातार 40 दिनों तक राम लला के पक्ष में पैरवी करते रहे। सुप्रीम कोर्ट में चली सुनवाई के दौरान वह हर रोज बहुत मेहनत करते थे।
रामायण काल में जिस तरह हनुमान जी ने लंका पर विजय पाने में भगवान श्री राम का साथ देकर एक सच्चे साथी की भूमिका निभाई थी। उसी तरह राम जन्मभूमि विवाद में अपनी दमदार दलीलों के बल पर सुप्रीम कोर्ट में रामलला के पक्ष में फैसला कराने वाले वरिष्ठ वकील केशव पराशरण ने भी रामलला भूमि प्रकरण में आज के हनुमान का रोल निभाया है। राम जन्मभूमि में आस्था रखने वाले लोगों की नजरों में पराशरण एक हीरो बनकर उभरे हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद मामले में विवादित 2.77 एकड़ जमीन को रामलला विराजमान को देने का फैसला सुनाया है। रामलला के पक्ष में फैसला आने की महत्वपूर्ण कड़ी वरिष्ठ वकील के. पराशरण ही रहे हैं। अपनी अकाट्य व तर्कसंगत दलीलों के बल पर वो कोर्ट में यह साबित करने में सफल रहे कि विवादित 2.77 एकड़ भूमि पर रामलला का ही कब्जा होना चाहिए। तमिलनाडु प्रांत के श्रीरंगम में 9 अक्टूबर 1927 को जन्मे 93 वर्षीय केशव पराशरण अपनी टीम के साथ सुप्रीम कोर्ट में लगातार 40 दिनों तक राम लला के पक्ष में पैरवी करते रहे। सुप्रीम कोर्ट में चली सुनवाई के दौरान वह हर रोज बहुत मेहनत करते थे तथा सुबह से शाम तक कोर्ट में उपस्थित रहते थे। पराशरण अपने युवा वकीलों की टीम के साथ हर बात की चर्चा करने के बाद ही उसे सबूत के रूप में कोर्ट में पेश करते थे।
कुछ दिनों पूर्व ही पराशरण ने कहा था कि उनकी आखिरी इच्छा है कि उनके जीते जी रामलला कानूनी तौर पर विराजमान हो जाए। आज उनकी यह इच्छा पूरी हो गई अब उनका मन बहुत खुश होगा। आज वे खुशी से फूले नहीं समा रहे होंगे कि उन्होंने अपनी जिंदगी का अंतिम मकसद भी अपनी मेहनत के बल पर पूरा कर दिखाया है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार अगले 3 महीनों में केंद्र सरकार अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए एक ट्रस्ट का गठन करेगी जिसकी देखरेख में राम मंदिर बनाया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट में चली लंबी सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने उनकी अधिक उम्र को देखते हुए उन्हें कोर्ट ने बैठकर भी दलील पेश करने की बात कही। जिसके जवाब में उन्होंने कहा था कि कोर्ट की परंपरा रही है कि खड़े होकर ही जिरह की जाए और मेरी चिंता परंपरा को लेकर ही है। 40 दिनों तक चली बहस के दौरान उन्होंने कोर्ट में खड़े रहकर ही अपनी दलीलें पेश कीं।