ज्योतिरादित्य सिंधिया राजवंश का राजनैतिक किला ध्वस्त –

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भोपाल।

आजादी के बाद से अब तक जो नहीं हुआ था वो हो गया। आत्ममुग्ध ज्योतिरादित्य ने सिंधिया राजवंश के इतिहास में एक ऐसा दाग लगा दिया जो सदियों तक याद किया जाएगा। वैसे तो सिंधिया परिवार पर महारानी लक्ष्मी बाई से गद्दारी का दाग पहले से ही गाढ़ा है। 

सिंधिया के आलोचक 1857 के बाद अब 2019 का भी जिक्र किया करेंगे। सिंधिया राजवंश के ‘महाराजा’ ना केवल लोकसभा चुनाव हार गए बल्कि अपने ही ‘प्यादे’ से हार गए और हार का अंतर भी कम नहीं है। ज्योतिरादित्य सिंधिया को चित करने वाले भाजपा प्रत्याशी वही डॉ. केपी यादव हैं, जिन्होंने 2018 में 21000 दिवारों पर ‘अबकी बार सिंधिया सरकार’ लिखवाया था।
ये है सिंधिया राजवंश का चुनावी इतिहास
सिंधिया रियासत के भारत में विलय के बाद राजमाता विजयराजे सिंधिया कांग्रेस में शामिल हो गईं। इंदिरा गांधी से पटरी नहीं बैठ पाने के कारण वे जनसंघ में शामिल हो गईं। समय के साथ सिंधिया परिवार राजनीतिक रूप से बंट गया। उनके बेटे माधवराव सिंधिया भाजपा छोड़कर कांग्रेस में चले गए। राजमाता की बेटी वसुंधरा राजे और यशोधरा राजे भाजपा की नेता हैं। पूरे परिवार में आज तक कोई भी व्यक्ति ​एक भी चुनाव नहीं हारा।
राजनीति पर राजवंश हमेशा भारी रहा। 

गुना-शिवपुरी और ग्वालियर इन दो लोकसभा क्षेत्रों की राजनीति सिंधिया राजवंश के इर्द-गिर्द घूमती रही है। राजमाता विजियाराजे सिंधिया उनके पुत्र माधवराव सिंधिया और अब ज्योतिरादित्य सिंधिया इसके केंद्र है रहे हैं। यहां कहा जाता है कि पार्टी कोई भी हो जितेगा वही जिसके नाम के पीछे सिंधिया लिखा होगा। सिंधिया घराने की राजनीतिक मैदान में उतर चुनाव लड़ने की शुरुआत भी गुना से ही हुई।

राजमाता विजियाराजे सिंधिया, माधवराव सिंधिया और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने जीवन का पहला चुनाव यहीं से लड़ा।

पार्टी बदली फिर भी सिंधिया ही जीते-

गुना लोकसभा क्षेत्र से सन 1957 में यहां हुए पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर सिंधिया राजघराने की महारानी विजिया राजे ने पहला चुनाव लड़ा। 1971 में विजयाराजे के बेटे माधवराव सिंधिया ने भी पहला चुनाव यहीं से जनसंघ के टिकट पर लड़ा और जीता। फिर वो ग्वालियर चले गए। माधवराव सिंधिया ने अपनी जिंदगी का आखरी चुनाव कांग्रेस के टिकट पर यहां से लड़ा और जीता।

माधवराव के निधन के बाद उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने जीवन के राजनीतिक करियर की शुरुआत 2002 में हुए उपचुनाव में यहीं से की। पिछले 4 चुनावों से इस सीट पर कांग्रेस के ज्योतिरादित्य सिंधिया को ही जीत मिली है।

स्वतंत्रता पार्टी से लड़ीं विजयाराजे, फिर भी जीतीं
1957 में विजयाराजे सिंधिया ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और हिंदू महासभा के विष्णूपंत देशपांडे को शिकस्त दी। 1971 में विजयाराजे के बेटे माधवराव सिंधिया जनसंघ के टिकट पर जीत हासिल की। 1977 के चुनाव में वह यहां से निर्दलीय लड़े और 80 हजार वोटों से भारतीय लोकदल के गुरुबख्स सिंह को हराया। 1980 में कांग्रेस के टिकट पर यहां से जीते।

इसके बाद 1984 में माधवराव सिंधिया ने ग्वालियर से चुनाव लड़ा। 1989 में यहां से विजयाराजे सिंधिया एक बार फिर यहां से लड़ीं और जीत दर्ज की। विजियाराजे के निधन के बाद माधवराव सिंधिया यहां से चुनाव लड़े और जीते।
माधवराव ने अटल बिहारी को हराया था-

ग्वालियर, शिवपुरी और गुना में सिंधिया राजवंश की लोकप्रियता का पैमाना यह है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता ने 1984 के चुनाव में भाजपा के सबसे लोकप्रिय नेता अटल बिहारी वाजपेयी को हराया था जबकि अटलजी ग्वालियर के लिए बाहरी नहीं थे। तब से लगातार यह माना जाता रहा है कि इस क्षेत्र में सिंधिया के सामने कोई भी आ जाए, जीत नहीं सकता।

माधवराव के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया-

2001 में माधवराव सिंधिया के निधन के बाद 2002 में हुए उपचुनाव में उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया यहां से लड़े। ज्योतिरादित्य 2002 से 2014 के बीच हुए सभी लोकसभा चुनाव में जीते। 2014 में जब सारे देश में मोदी लहर चल रही थी तब भी ज्योतिरादित्य सिंधिया यहां से जीते। मप्र की 29 में से 27 सीटों पर भाजपा जीती परंतु सिंधिया को नहीं हरा पाई और इस बार 2019 में केपी यादव के सामने चुनाव हार गए।

Sach ki Dastak

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