कविता : ”माँ” लेखक ✍️ अवधेश कुमार ‘अवध’
माँ
माँ दुर्गा, माँ सरस्वती है, माँ कल्याणी, काली।
दुश्मन जब भी आँख दिखाये हो जाती मतवाली।।
माता के पैरों में जन्नत, दिल है नेह समन्दर।
शिव बनकर वह भर लेती जग का दुख अपने अन्दर।।
पन्ना बन वह मातृभूमि पर, अपना लाल लुटाती।
राजवंश की रक्षा में, बेटा चंदन कटवाती।।
जब राधा ने दरिया में बहते बच्चे को पाया।
वात्सल्य की चरम शक्ति से ही पयपान कराया।।
अपरिणीता कुंती को कोई कैसे बिसराये।
सामाजिक मर्यादा पर अपनी संतान भुलाये ।।
अवधपुरी की माताओं के, सम्मुख सभी अधूरे।
वन में भेज पुत्र को माँ ने, वचन किये सब पूरे।।
दोनों सुत को त्याग हुईं वो, बिना पुत्र की माता ।
मातु सुमित्रा के सम्मुख श्रद्धा से सिर झुक जाता।।
जीजाबाई की शिक्षा है, वीर शिवा की थाती।
कहकर सुनकर सब माताएँ, आदर से इठलातीं।।
मातु हिडिम्बा ने सुपुत्र को, ऐसा पाठ पढ़ाया।
‘कमजोरों का साथ निभाना’,अद्भुत धर्म निभाया।।
पुतलीबाई ने मोहन से कहा कि झूठ न बोलो।
बंदर – त्रय की उपादेयता, आओ मिलकर तौलो ।।
परशुराम ने माता का सिर, क्षण भर में ही काटा।
पितृभक्ति माँ ने सिखलाई,माँ का सिर धड़ बाँटा ।।
ध्रुव माता से अनुमति पाकर, किया साधना ऐसी ।
ईश्वर ने आ गोद उठाया,जग हो गया हितैषी ।।
दुर्योधन माँ के कहने पर, अमल नहीं कर पाया।
केशव की लीला में उसने, अपने को मरवाया।।
माता की आज्ञा सुन अर्जुन, बाँट दिये निज नारी।
सकल ग्रंथ में नहीं मिलेगी, ऐसी पत्नी प्यारी।।
धन्य मातु जो मातृभूमि पर, अपनी गोंद लुटाती।
पाल पोसकर अपने सुत की, कुर्बानी करवाती।।
नमन शहीदों की माता को,नमन मातु की महिमा ।
नमन यशोदा, गांधारी,सिय,नमन मातु की गरिमा।।
ईश्वर की अनुपम कृति होती, जग के भीतर नारी।
अपना सर्व समर्पण करके, बनती है महतारी।।
महतारी को सम्मुख पाकर, होता धन्य विधाता ।
महतारी से मिलने वह सौ बार धरा पर आता।।
महतारी अनुसुइया ने तो तीन देव को पाला ।
बच्चे की खातिर देती माता ही प्रथम निवाला।।
दुनिया की विपदा हर ठोकर,सह करके मुस्काती।
बच्चे की किलकारी में ही,स्वर्गिक सुख वो पाती ।।
माता नर की हो या हो पशु- पक्षी, देव -निशाचर।
माता की महिमा के आगे, नत हैं सब सचराचर।।
अपनी सुध- बुध को खोकर ही,अपना सर्व लुटाकर।नाम,रूप, वय खो देती है, अपना बच्चा पाकर।।
जाग- जाग गीले बिस्तर पर, बच्चा पाला करती।
बच्चे पर खुद को अर्पित कर,वह जीती या मरती।।
माता का पर्याय नहीं जग में है कोई दूजा ।
सभी तीर्थ माँ के पग-तल में, माँकी कर लो पूजा।।
माँ ही गीता, माँ कुरान है, माँ ही गुरु की बानी।
‘अवध’ कहे कर जोड़ मातु ही, गुरु शिव शक्ति भवानी।।
हर साँसों के साथ जपो माता का नाम सुहावन ।
कट जाये त्रय ताप मातु का नाम ईश सम पावन ।।
– अवधेश कुमार ‘अवध’
awadhesh.gvil@gmail.com
गुवाहाटी असम