तुम कौन हो✍️केशव पाल
● तुम कौन हो ●
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अनायास उभर आता है,
कोई अनजाना सा चेहरा,
दिल की दहलीज पर,
और,
बहा ले जाता है,
साथ अपने,
किसी नदी की तरह,
मुझे,
फँस जाता हूँ,
उनके यादों के भंवर मे,
धंसता जाता हूँ खुद मे,
खुद से उलझता जाता हूँ,
पागल दिल खामोश सा,
हो जाता है,
पथराई आँखें,
किसी नश्तर सी चुभती है,
होठों से मुस्कान की,
फासले बढ़ जाती है,
मेरा उलझा मन,
सहमे-सहमे,
उनसें यही सवाल करता है,
ख्वाबों,ख्यालों मे पलती,
पलकों मे कैद,
अनछुए अहसासों मे ढलती,
तुम कौन हो…..!
तुम कौन हो…..!!
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रचनाकार…..