
“हिम्मते ए मर्दा तो मददे खुदा” मतलब जो अपनी मदद खुद करना जानता है, खुदा भी उसकी मदद करता है।
आजमगढ़ कि मीरा श्रीवास्तव ने उत्कृष्ट प्रयासों से अपनी दिव्यांगता को कभी आड़े नहीं आने दिया और वह नि:शुल्क संगीत का प्रशिक्षण देकर महिलाओं को स्वरोजगार के लिए प्रेरित कर रही हैं, और क्षेत्र में मिशाल बनी हैं।
यह कहना है प्रभारी जिला प्रोबेशन अधिकारी/जिला दिव्यांगजन सशक्तीकरण अधिकारी शशांक सिंह का। प्रभारी जिला प्रोबेशन अधिकारी ने बताया कि कमजोर व निर्धन वर्ग की महिलाओं को रोजगार मुहैया कराकर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करना ही सरकार की प्राथमिकता है। जिससे वह आज के समय में अपने घर परिवार का पालन पोषण और जीवन यापन सही तरीके से कर सकें। उन्होने बताया कि मानव सेवा के पुनीत कार्य के लिए महिलाओं के सम्मान में मिशन शक्ति का शुभारंभ सन 2020 में किया गया था। इस योजना का उद्देश्य महिलाओं एवं बेटियों को स्वावलंबी एवं सुरक्षित बनाने के लिए आरंभ किया गया है। वर्तमान समय में महिलाओं को आगे बढ़ाने और स्वावलंबी बनाने के लिए काफी प्रयास किए जा रहे हैं।
58 वर्षीय मीरा श्रीवास्तव पैरों से दिव्यांग होने के बावजूद 50 से अधिक महिलाओं के लिए आर्थिक स्वावलंबन का सहारा बन गई हैं। संगीत के माध्यम से स्वरोजगार के लिए प्रेरित कर उनकी आजीविका चला रही हैं। मीरा श्रीवास्तव ने कहा “वास्तव में हमारे जीवन में वास्तविकता की शुरुआत तब होती है, जब एक के बाद एक हमारे सामने कई सारी छोटी बड़ी मुश्किलें आने लगती हैं। लेकिन जीवन का तो अर्थ ही मुश्किलों भरी राह है। इसलिए मुश्किलों से डरें नहीं और आगे बढ़े, बल्कि उससे निपटते हुए खुद को मजबूत बनाए रखना ही जीवन है।
मैं जन्मजात दिव्यांग नहीं थी, सात वर्ष की थी तो मुझे टाइफाइड बुखार हुआ उसी के कारण मेरे दोनों पैरों में लकवा मार गया। और आज तक मैं अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो सकी। मैं बैठकर दोनों पैरों की सहायता से चलती हूं, और अपना जीवन व्यतीत कर रही हूँ। मेरे माता-पिता ने मुझे घर पर ही शिक्षक रखकर प्राइमेरी शिक्षा दिलाई। जिससे मैं लिखना पढ़ना सीख सकूँ। और मुझे संगीत की शिक्षा भी घर पर ही शिक्षक रखकर दिलाई गई। कला भवन के शिक्षक सुखदेव मिश्र ने मुझे घर पर ही पढ़ाया और पाँच वर्ष में प्रभाकर की डिग्री मिली। मुझे कोई समस्या नहीं है, मैं अपनी जीविका सुचारु रूप से चला रही हूँ।
सन 2000 से घर पर हूं, संगीत की कोचिंग चला रही हूं, जिसमें ढोलक, केसियो और हारमोनियम सिखाती हूँ। सन 2000 से लेकर अब तक मैं लगभग आठ से 10000 लड़कियों को शिक्षित कर चुकी हूँ। आत्मनिर्भरता और खुद पर विश्वास की बन चुकी है नजीर – लैंगिक आधारित संवेदीकरण, परिवार नियोजन के लिए भी चला रही अभियान चंदौली कि रिंकू कुमारी “हिम्मते ए मर्दा तो मददे खुदा” मतलब जो अपनी मदद खुद करना जानता है, खुदा भी उसकी मदद करता है।
इसलिए जीवन में आने वाली परेशानियों से न घबराते हुए उसका हल खोजते रहना चाहिए। यकीन मानिये सफलता जरुर मिलेगी। कुछ ऐसा ही कर दिखाया है रिंकू कुमारी ने। अचानक विधवा होने के बाद आई मुसीबत से घबराने की बजाय रिंकू कुमारी ने खुद को तो संभाला ही परिवार और फिर समाज में अपनी भागीदारी इस तरह किया कि आज वह अपनी अलग पहचान बना चुकी है। रिंकू कुमारी जनपद के नौगढ़ के बीहड़ों क्षेत्रों में नारी सशक्तिकरण के प्रयास के साथ ही किशोरियों व महिलाओं को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक व स्वावलंबी बनाने में अहम भूमिका निभा रही हैं। महिलाओं को परिवार नियोजन पर बात कर उन्हें जानकारी और जागरूक कर रही है।
छोटा परिवार खुशहाल परिवार महत्व के साथ ही मिशन शक्ति के फेज-चार के तहत महिलाओं की सुरक्स्वावलंबन बनाने के लिए कई कार्यक्रमों के माध्यम से लैंगिक आधारित संवेदीकरण,कन्या भ्रूण हत्या,परिवार नियोजन,साथ ही किशोरी बालिकाओं ताथ गर्भवती की एनीमिया की जांच में विभाग एवं शासन स्तर से संचालित महिलाओं व बालिकाओं की विभिन्न योजनाओं की जानकारी व जागरूक करने में विशेष सराहनीय सहयोग रहा है। परियोजना प्रबंधक ग्राम्या संस्थान नीतू सिंह ने व 2019 ताया कि में में 19 साल की उम्र में ही रिंकू कुमारी विधवा हो गई। रिंकू के परिवारिवारिक समस्यों को देखते हुए। ग्राम्या संस्थान से जुड़कर 10 गांव में किशोरियों व महिलाओं के साथ जेंडर भेदभाव ,हिंसा, सुरक्षित गर्भ समापन व संविधान को लेकर काम करना शुरू। कम के दौरान रिंकू निशुल्क सिलाई सिखाने का काम की और वह आज भी जारी है|
जिन महिलाओं व लडकियों को उसने प्रशिक्षिण दी है वह आज स्वयं अपना रोजगार कर अपना घर चला रही है। ग्राम डुमरिया नौगढ़ रिंकू कुमारी ने बताया कि मेरी शादी के दो साल बाद अचानक मेरे पति की मृत्यु हो गई। जीवन का सबसे बड़े दर्द को महसूस करली और गृहस्थ जीवन की जिम्मेदारियां आने से पहले ही मैं विधवा हो गई। विधवा जीवन की कठिनाइयों को सोच कर मैं अंदर से टूट चुकी थी। इन सब की वजह से मेरी पढ़ाई भी छूट गई ,इसके बाद मेरे माता-पिता ने मुझे सहारा दिया और मुझे मेरी पढ़ाई को पूरी कराए। मेरे परिवार की आर्थिक स्थिति खराब है। पूरे परिवार का जीवन यापन मजदूरी पर आश्रित है। फिर भी मैं अपने जैसे बहनों को स्वलम्ब बनाने और बच्चों को शिक्षित करने कि दिशा में आगे बढ़ चुकी थी। पहले मैं अकेली और बहुत उदास रहती थी। लेकिन अब बहुत खुश रहती हूँ।
मेरे आत्मविश्वास को बढ़ाने मेरी पहचान बनाने के लिए माता पिता और ग्राम संस्थान ने बहुत सहयोग किया। दस गांव की महिलाओं और किशोरियों के साथ जेंडर भेदभाव और माहवारी स्वक्षता प्रबंधन पर काम करने की अनुमति दी और मैं काम करने लगी।
परिवार नियोजन,क्षय रोग उन्मूलन,गर्भवती एवं किशोरियों को एनीमिया के प्रति जागरूक करने के दौरान ,समुदाय के लोगों के साथ लगाओ बड़ा और इस अलावा के कारण गरीब बच्चों को निशुल्क पढ़ाने का भी काम शुरू कर दी। और संस्थान में कार्य के दौरान उषा सिलाई कंपनी की तरफ से सिलाई का प्रशिक्षण प्राप्त की। और 20 महिलाओं और किशोरियों को प्रशिक्षण दी। जोकि अब अपना खुद का रोजगार खोलकर अपनी आजीविका चला रही है। और आज भी महिलाओं और किशोरियों को सिलाई का निशुल्क प्रशिक्षण दे रही हूं।
20 से ज्यादा छोटे बच्चों को निशुल्क कोचिंग पढ़ाती हूं। इन सब कार्यों से खुश होकर मुझे सीओ नवगढ़ श्रुति गुप्ता के द्वारा सम्मानित किया गया। प्रशिक्षित प्राप्त लाभार्थी – ग्राम डुमरिया नौगढ़ नाम अर्चना 25 वर्ष ने बताया की 6 माह से सिलाई सीख कर आज अपना खुद का सिलाई सेंटर खोली हूँ। दूसरों का कपड़ा सील कर अपना घर चला रही हूँ। नौगढ़ रीना 35 वर्षीय ने कहा की सिलाई और गुलदस्ता भी सीख हूँ। इस सब के पैसे से अपने घर के जरूरत पूरी कर रही हूँ।