कविता : पतझड़ और बसंत हैं सुख दुख
सुख दुख रहते जिसमें दोनोंजीवन है वो गांवगर्मी को नहीं कोई चाहतासब ही ढूंढें छांवसुख दुख है पानी का रेलाकोई भीड़ में कोई अकेलासुख तो सबको खुश है करतादुख करता है खड़ा झमेलादुख भरे दिन बीत गए अबयह मन की कोरी कल्पना हैजहां सुख है वहां दुख हैदुख न हो यह केवल सपना हैसुख में सब साथी बन जातेदुख में कोई पास न आयेपतझड़ और बसंत हैं दोनोंइक आये तो दूसरा जायेबहुत दुखी थी सारी दुनियांकोरोना के डर के मारेनव वर्ष में टीका आयानाच रहे अब खुशी के मारेदुख भरे दिन अब बीत गएकोरोना से अब मुक्ति मिलेगीसबके दिल में इक आस जगीसुनसान महफ़िल अब फिर सजेगी
___रवींद्र कुमार शर्माघुमारवीं, जिला बिलासपुर हि प्र