पुनरावृत्ति की अनमोल रातें –

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सम्मानित साथियों! आज मैं कोई आरोप-प्रत्यारोप वाली स्वार्थी, रक्तरंजित राजनीति की बात नहीं करूंगी । क्योंकि महान भारतवर्ष विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और आज की जनता बहुत जागरूक है जो आने वाले चुनावों में न्याय करेगी। आज कोरोना ने सिर्फ़ शरीरों को ही संक्रमित करके नहीं मारा बल्कि खून के रिश्तों को भी संक्रमित करके कलंकित कर दिया है।

वहीं अजनबियों द्वारा, की गई मदद से लोगों को पुनर्जीवन मिला है। भयावहता का आलम यह है कि आज देशवासी, बिजली से भी घातक करेंट के तारों जैसी निर्दयी परिस्थितियों पर झूल रहे हैं। कोरोना के बाद हर किसी का जीवन चिंताओं से घिर गया है। आम आदमी किस तरह दो वक्त की रोटी की जुगाड़ कर रहा है यह बात सिर्फ़ वही आदमी जानता है। जिसके पास जितनी बचत थी वह भी समाप्ति की ओर है। हर गरीब और मध्यमवर्गीय परिवार सिर्फ़ परमात्मा की तरफ देखकर जिंदा है। हाँ, सच कहतीं हूं कि मैं सकारात्मक लिखूंगी पर सकारात्मक के दबाव में झूठ को पोषण नहीं दूंगी । सच तो यह है कि आज का मानव सिर्फ़ धन को ही परमात्मा समझ चुका है। धन की अंधी दौड़ ने उसे अमानुष बना दिया है।

धन की दौड़ में मानव अपने सभी रिश्तों सम्बन्धों को रौंदता हुआ दौड़ा चला जा रहा है। यह धन की अंतहीन, उबाऊ और व्यर्थ दौड़ है। जब आपने सिर्फ़ धन कमाया और आशीर्वादों को खो दिया। यह तब महसूस होता है जब एक धनवान व्यक्ति अस्पताल के बैड पर रिश्तों से रिक्त बिल्कुल अकेला पड़ा हो। ऐसी घोर रिक्तता में वह अपनी आखों में सम्पूर्ण जीवन की गल्तियों की पुनरावृत्ति होते देख रहा पर अब बहुत देर हो चुकी है । हम लोग हर रात अपनी बुरी आदतों को छोड़ने के बजाय केवल उसकी पुनरावृत्ति ही करते हैं।

हम मानव, लालसा और गर्व के बीच निर्णायक बनकर नये-नये कर्मों की पुनरावृति करने में लगे रहते हैं । फिर भी निराशा हाथ लगती है और निराशा आंशिक मौत है। यह कड़वा सत्य है कि मानव जितना पढ़ा है वह उतना ही ज्यादा अधिक हिस्सों में बंटा है । वह मजबूत मानव होते हुए भी वासनापूर्ति हेतु साधारण जानवर प्रवृति से प्रतिस्पर्धा कर रहा है। आप मानव हो। किसी के स्तर पर जाने की जरूरत नहीं। आप नौटंकी में शामिल मत हो जहां हर दृश्य पर नये कपड़े की मांग है। आपने अपने कपड़ों को इतना कीमती समझ लिया है कि स्वंय , कपड़ों से भी सस्ते दिखने लगे हो। हमेशा शरीर रूपी कपड़े पर ध्यान देते हो।

कभी अंतरात्मा की आवाज़ सुनो।जो आपसे हर जीव के प्रति सिर्फ़ प्रेम की मांग करती है। प्रेम को भी वासना से जोड़ कर प्रेम रूपी शब्द को अपवित्र कर दिया गया है। कुछ लड़कियां, गल्तियों की पुनरावृत्ति करतीं चली जा रही हैं और शादी के बजाय उनकी धोखे से हत्या की जा रही हैं। अब सवाल उठता है कि आखिर! यह कैसे और क्यों हो रहा है? इसका जवाब है परिवार में वास्तविक प्रेम का अभाव।संगठित परिवार का शोर ही तो दिल का सुकून है। आजकल एकाकी परिवार हैं जिन्हें किसी से कोई मतलब नहीं।

आजकल हर दर्द भरे अंत के गर्भ में पाखंडी दोस्त और रिश्तेदार पाया गया है।दुर्भाग्यवश सोसलमीडिया पर मिला उस अनजान दोस्त से बुरा क्या होगा जो आपके सारे रहस्य जानता है। सारी कमजोरियां जानता है और जब आपके बीच छोटी सी भी लडाई हो जाये तो वो आपके खिलाफ़ ही आपके द्वारा मिलीं जानकारियों का अपनी सुविधानुसार इस्तेमाल करने लगता है और पूरी दुनिया में पर्दाफाश कर आपको जीते जी मार डालता है। लड़कियों की समस्या यह है कि आपकी वजह से कोई नाराज न हो। पर कभी-कभी आप स्वंय उनकी आंसुओं की वजह बन जाते हो और कभी आपकी करूणा का पात्र आपका दुश्मन बन जाता है। यही जीवन का जहरीला रहस्य हैं एक दुःस्वप्न की तरह। इसके अलावा सरकारी नौकरी, धन वैभव विलासपूर्ण फिल्मों में दिखाई गयी जिंदगी को लोग सच मान लेते हैं और कई बार जल्दी सबकुछ पा लेने की होड़ से भी लोग घर से भागते हैं। बात यह है कि कभी-कभी ईश्वर की दी हुई मानव बुद्धि की कोशिकाओं में इस तरह आपसी द्वंद होता है और प्रकृति के कानूनों का उल्लंघन होता है कि जागरूक मानव भी पुनरावृत्ति चक्र जाल में उलझ जाता है और किसी षड्यंत्रकारी मकड़ी – मकड़े का शिकार बन जाता है।

मेरी प्रिय बहनों! भाइयों! यह प्रेम नहीं है। जाग जाओ और जिसे मोहब्बत चाहिये वह पहले परवाह करने की कला सीखे, आदत डाले। यह दौर निम्न पंक्ति पर रेंग रहा है कि शुरूआत कभी सच्चाई नहीं देती और अंत सबकुछ उजागर कर देता है पर तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।जिंदगी सबकुछ अनुभव करने के लिए लंबी नहीं है और न ही सब कुछ याद रखने के लिए छोटी है लेकिन खूबसूरत है अगर हम इसका मूल्य जानते हैं तो सोचो! इंतजार करना कष्टप्रद है तो क्या गलत जगह जाने वाली गाड़ी में बैठ जाओगी। इतनी जल्दबाजी तो मूर्खता है। सच्ची मोहब्बत अलग चीज है जो हैवान को भी इंसान बना दे। आज गोरा रंग सुन्दरता का पैमाना है और मोहब्बत का भी।

मानव यह भूल गया कि स्नेह और दया उम्र से परे का अनंत अक्षत अक्षय सौंदर्य है। सच तो यह है कि हर इंसान, इंसान बन जाये अगर उसे सच्ची मोहब्बत छू जाये। यह मिलावट का दौर है समझदारी से जियो। गलत इसलिए हो रहा कि हम सबक नहीं ले रहे। आप पूछेगें कि सच्ची मोहब्बत कैसे पहचाने?

बस इतना जान लो कि जो आपकी उदासी से न डरा वो आपके लायक नहीं। सबकुछ जानने के बाद भी हम नहीं सुधरते। हम इंसान अपने कर्मों में यही अखंडित पुनरावृति कर रहे हैं।मेरी बहनों!आप सबकुछ खो सकती हो पर अपनी मर्यादा और गरिमा को मत खो क्योंकि मुआवज़ा सब को दिया जा सकता है पर गरिमा और मर्यादा को नहीं।दिल की इच्छाओं के ऊपर आत्मा की मर्यादा को स्थान दो। हास्यास्पद है कि हर दिल जँवा रहने के लिए मंहगी दवाइयां का सेवन कर रहा है। वह पत्तों को सींच रहे हैं और जड़ों को भूल चुके हैं। अतीत का तकिया हमें बुढापे की अनिद्रा नामक रहस्मयी बेहोशी सौंप रहा है और हम अनजान हैं क्यों परिपक्वता में कमी है।

परिपक्वता का मतलब…. चुप रहा जैसे समझा ही नहीं और नजरंदाज किया जैसे देखा ही नहीं। हमारी कर्मों की पुनरावृत्ति की गवाह हमारी कष्टप्रद रातें हैं जो हमसे कभी झूठ नहीं बोलतीं। हम मानव पुनरावृत्ति और अतिशयोक्ति करने में बहुत होशियार हैं। मानव हर चीज़ की अतिश्योक्ति करता है सिवाय अपनी गलतियों के चर्चा के। अपने कुकर्म भी चर्चा के लायक होते तो हम एक इंसान होते।यकीनन मनुष्यता का उल्लघन होता है जब कोई उसे बदल देता है पर विडम्बना यह है कि बदलने वाला कभी वापस नहीं आता।

अच्छे कर्मों के पदचिन्हों पर हमें चलना होता है पर हम लकीर के फकीर बन जाते हैं। हम इतने आलसी कि नये पदचिह्न बनाने पर विचार नहीं आता और भरोसा नहीं होता। जबकि महान विभूतियां जो कड़वे समाज में चीनी के दाने समान मोहक थीं । आखिर! वह भी बिना बहाने बनाने वाले विकास प्रेमी मानव ही थे। क्या हमारे ही तरह? क्या हमने सकारात्मक धारणाओं की अपने जीवन में पुनरावृत्ति करने पर विचार किया? हम मानवों ने केवल सरल ओछे कर्म को चुना कि मनचाही वस्तु न मिली, कोई इच्छा पूर्ण ना हुई, किसी ने मर्द को औरत कहकर व्यंग कर दिया, किन्नर बोल दिया तो आत्महत्या कर ली। मेरे भाई! यही गहरी हार है कि तुम मान गये कि तुम हार गये। कड़वा सत्य है कि समाज से लड़ना व्यर्थ है क्योंकि स्त्री का मर्दानी बनना समाज को स्वीकार होता है पर पुरूष का नारीत्व में ढलना असहनीय होता है। इसलिए जिंदगी से पलायन व्यर्थ जब तक चीजें हमारे मन-मस्तिष्क में मौजूद हैं । समझो कि दुनिया में हर चीज की प्राप्ति की चेष्टा व्यर्थ है क्योंकि यह मृत्युलोक है कोई स्वर्ग का कल्पवृक्ष नहीं। यहां परमात्मा की मर्जी चलती है आपकी नहीं। आत्महत्या करना सरल है पर जीवन को हर परिस्थिति में जीना बहुत कठिन। हम मानव की प्रवृत्ति हमेशा सरल कर्म की ओर बढ़ने की होती जा रही है जो हमें बहुत कठोर बना रही है। हमारी सम्पूर्ण शिक्षा केवल लिखें हुए दूसरों के अनुभवों का संग्रह किये गया शहद के समान है। यह ज्ञान हमें सरकारी पद प्रतिष्ठा और धन दिला सकता है।किन्तु धन और पद हमारे जीवन – मरण के रहस्य का नहीं बता सकता। हम अपने मृत परिजन को जीवित नहीं कर सकते। हम अपने मृत परिजन से बात तक नहीं कर सकते। मरने के बाद क्या होता है? यह हम नहीं जानते?

भगवान होते हैं पर हम हमारे अनुभव से कुछ नहीं जानते। हमारे शरीर में आत्मा है और हम उसे नहीं जानते। वह कहां से आती है कहां को जाती। हम उस आलौकिक दुनिया के विषय में अनपढ़ हैं। हम लोग इतनी जल्दबाजी में हैं कि बिना हैलमेट लगाये सड़क पर मोटरसाइकिल पर हवाई जहाज की रफ्तार पकड़ लेते हैं। क्या हम खुद को पुनर्जीवित कर सकेगें? फिर हम इतनी जल्दबाज़ी में क्यों हैं? हम लोग दुनिया रूपी सपने में फंसे हजारों सपनों की रहस्यमय दुनिया में उलझे पड़े हैं। नुकसान यह है कि क्या यह धन की दौड़ हमें कभी ईश्वर से मिलने देगी? क्या हमें ईश्वर का ख्याल आता है? हमें ईश्वर की याद तब आती है जिस दिन हमें खाना नहीं मिलता अथवा अच्छा खाना नहीं मिलता।हम इंसान बेहद खुदगर्ज़ है क्योंकि दुख हमें तुरंत आस्तिक बना देते हैं। याद रखो! खुद को अनदेखा करोगे तो एक दिन खुद से ही हारोगे। आत्ममूल्याकंन करो। जीवन चुनौती स्वीकार कर लो कि आप चाहें जितने भी अच्छे कर्म क्यों न करें फिर भी शत्रुता आपको भेंट में मिलती ही है॥यही आपका संघर्ष है ।यही जिंदगी का सत्य है। इसलिए बेवजह किसी से भी किसी भी तरह की निराशा के लिए तैयार रहो। मालूम हो कि आपके जीवन में दो लोग आपके जीवन की किताब का अंतिम पृष्ठ पढ़ने और देखने में दिलचस्पी रखते हैं।एक आपसे प्यार करने वाले और दूसरे आपसे घृणा करने वाले। भारत में प्रेम पर बहुत लिखा गया है।

वसुधैव कुटुम्बकम यानि सम्पूर्ण विश्व हमारा परिवार है की बात तक कही गई। जब पडोसी देश हमला कर दें तो प्रतिउत्तर का भी प्रचंड इतिहास रहा है । पड़ोसी देश भी नेताओं की देन है जिसे हम सब भुगत रहे हैं। अब हम लोग हर परिस्थिति को सुधार नहीं सकते परन्तु स्वंय का बचाव करते हुए उन चीजों से किनारा कर सकते हैं जो हमारे स्वभाव को क्रूर व अनैतिक बनातीं हैं। पूरी दुनिया प्रेम से जुड़ी रहे क्योंकि दिल से जुड़ी एक धमनी अगर कट जाये तब क्या जीवन सम्भव है। पूरे जीवन स्टोर किये गये शब्दों में कोई जीवित शब्द भी होगा। हमें जड़ता और निर्जीवता में जीवंतता और मानवता तलाशनी होगी वरना सबकुछ खो जायेगा। पड़ोसी देश आतंकवाद पर विचार करें कि यदि अगर आपके कहे हर शब्द आपकी त्वचा पर अंकित हो जायें तब क्या आप अपना बयान बदल सकेगें या तब भी इसे बीमारी का नाम देकर असत्य की गाड़ी खीचेगें क्योंकि असत्य रूपी गाड़ी भी बिना सत्य के ईधन के नहीं रेंग सकती। शायद आपको रेंगना पसंद है दहाड़ना नहीं।सच यह है कि हमारी बेढ़़ंगी दिनचर्या हमें कभी सर्वशक्तिमान ईश्वर से मिलने नहीं देगी। आप ईश्वर खोज नहीं परन्तु याद तो करो।

ईश्वर के नाम का जाप आपको दिव्य अहसास देगा। परन्तु आप अपने लिखे हुए अनुभवों को किसी पर जबरन थोपने की कोशिश मत करो। क्योंकि यह जिंदगी रूपी आपकी कहानी है जिसका सम्पूर्ण विवरण सिर्फ़ आपके पास है। दूसरे इसे अनुभव नहीं कर सकते और जबरन स्वीकार नहीं कर सकते। इसलिये शांत रहो। सत्य लिखते रहो, बिना टिप्पणी आये बिना लोगों से उम्मीद लगाये सद्कर्म करते रहो। एकाएक आपको संसार से अरूचि होने लगेगी। आपको दिव्य की चंदन की सुगंध महसूस होगी। तो डरना मत क्योंकि आपकी प्रार्थना और साधना सफल हुई है। आपका मन करेगा कि मौन रहें । तो बिल्कुल मौन के अलावा आत्मा को कुछ नहीं थका सकता। साधक प्रभुप्रेमी भक्त कुत्तों सहित हर जीव के लिए दयालु है। कुत्ते रात्रि में जब भौंकते हैं तो निगेटिव इनर्जी को महसूस करके भौंकते है और जब भगवान या उनके देवदूत गुजरते हैं तो पूरी प्रकृति अपनी सारी सुगंध सुवास प्रेम लुटाने को आतुर हो जाती है और कुत्ते आदि जीव जन्तु भावविभोर हो नाचने मुस्कुराने गुनगुनाने व मदहोश हो जमीन पर लोटने व अपार सुकून भरी नींद सो जाते हैं। यह मेरा निजि अनुभव है। ईश्वरीय ऊर्जा की मौजूदगी सुगंधित सुकून है और अन्य ऊर्जा की मौजूदगी अपार बैचेनी का घोतक है। और यह अहसास का राज़ स्वंय अहसास से भारी है। अंत में आप दुनिया से अकेले ही लौटेंगे इसलिए संलग्नक की तरह मत जियें। इतिहास साक्षी है कि जिसने भी ईमानदारी और सच्चाई से स्वंय को जानने की ललक पैदा की है वो उसे प्राप्त अवश्य हुआ है। जितनी ज्यादा तड़प उतनी ही जल्दी प्रगट।हाँ, कभी-कभी बेहद उच्चतम स्तर की जागरूकता और महानतम सोच व्यक्ति को सामाजिक कम बल्कि अंतर्मुखी ज्यादा बनाती है। इस समय जीवन में उन लोगों से सावधान रहना चाहिए जिनके दो चेहरे होते हैं और मुसीबत यह है कि दोनों ही चेहरे एक दूसरे से ज्यादा भयावह। इसलिए लोगों की पसंद और नापसंद आपकी महानता पर प्रभाव नहीं डालतीं। इसलिए सोसलमीडिया के फोटो पर ज्यादा लाईक, कमेन्टस और लेख कविता पर कम को पैमाना मत बनाये, न समझे। मैं तो स्पष्ट कहती हूँ कि अगर आप मेरी तस्वीर देखने के बाद मुझे पढ़ते हैं तो अवश्य ही जल्दबाजी होगी पर अगर आप मुझे पढ़ने के बाद मेरी तस्वीर देखते हैं तो आप बिल्कुल सही-सही मुझे समझ जायेगें। भावनाएं पढ़ीं जानी चाहिये क्योंकि चेहरे और भाव दोनों भिन्न हो सकते हैं । भारतीय साहित्य अत्यंत दिव्य है। भारतीय साहित्य को पढ़ने के लिए हृदय की आंखें चाहिये। इसलिये मेरे साहित्यकार साथियों! आपको किसी के स्तर पर जाने की जरूरत नहीं आप जो हैं वो आप स्वंय भलीभाँति जानते हैं। एक शेर कभी कुत्तों की रेस में नहीं दोड़ेगा, वह वहां से पहले ही निकल जायेगा। कुत्ते सोच रहे हैं कि शेर डर गया। सच तो यही है कि शेर क्या चीज़ यह उसे बताने की जरूरत नहीं। उसे कुछ भी साबित करने की जरूरत नहीं। आप जानवरों की दौड़ को नकार कर दूर बैठे हुए भी देवता की तरह तेजोमय ही रहेगें। लोगों की पसंद और नापसंद आपके व्यक्तित्व को प्रभावित नहीं कर सकती। इसलिए खुद को खुद के लिए संवारे। खुद की संतुष्टि में संतुष्ट रहें। आप से बेहतर कोई नहीं। आप परमात्मा की एकमात्र अनुपम कृति आप जैसा दूसरा नहीं। खुद से करें अनंत प्रेम। मानव सत्य से दूर हुआ तो वह व्यभिचारी हो गया। हम मानवों को अपने उन्नत भविष्य की उन्नत पीढ़ियों के लिए अपनी असभ्यतापूर्ण पुनरावृत्ति की खौफ़नाक रातों और अतिउन्मादी अतिशयोक्ति के दिनों को अपने सद्कर्मों की क्रांति से परिवर्तित करना होगा। इस विश्वास के साथ कि हमें अपने सद्कर्मों की पुनरावृत्ति, ध्यानावस्था में किसी रात हमें हमारे जीवन तत्वों के पार के गूढ़ रहस्यों के सारे ताले खोल कर हमें सत्य का ज्ञान करा दे। यही रात्रि ध्यान में आत्मविश्लेषण का विशेष पल ही हमारी उन्नत पुनरावृत्ति की अनमोल रातों की मांग है ।

_ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना
न्यूज ऐडीटर सच की दस्तक राष्ट्रीय मासिक पत्रिका वाराणसी उत्तर प्रदेश

Sach ki Dastak

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