रेलवे के नाक के नीचे पानी का काला कारोबार –
रेल व्यवस्था पर एक अहम सवाल-
जहां एक तरफ रेल प्रशासन यात्रियों को शुद्ध पेयजल व शुद्ध खाना उपलब्ध कराने का दावा कर रही है। तो दूसरी तरफ रेल प्रशासन के सामने अवैध वेंडररिंग के माध्यम से इनके कर्ता-धर्ता यात्रियों को घुमन्तु बच्चों के द्वारा जहर स्वरूप गंदा पानी देते नजर आते हैं।
जिससे रेलवे के दावों की सच्चाई में कितना दम है खुद ब खुद दिख जाता है। पंडित दीन दयाल उपाध्याय जंक्शन पर गन्दे पानी का कारोबार धड़ल्ले फलफूल रहा है। स्टेशन पर घुमन्तु बच्चे आसानी से रेल नीर बेचते देखे जा सकते हैं।
इसके अलावा पानी की दूसरे बोतले भी धड़ल्ले से बेचते दिखते हैं। यह कारोबार खुलेआम होता है लेकिन क भी भी इस पर रोक नहीं लगती है।
सबसे बड़ी बात तो यह है कि यदि बच्चे रेल नीर बेचते हैं तो रेलवे एक गुनाह कराती हैं, लेकिन उससे बड़ा गुनाह तो यह करा रही है कि रेल नीर की बोतल होता है और उसमें बच्चे गंदा पानी भरकर प्लास्टिक का टेप लगाकर उसे यात्रियों को बेचते हैं। जिससे बीमारियां फैलने के खतरे ज्यादा होता हैं।
गर्मियों के दिनों में जब पानी की किल्लत स्टेशन पर होती है तो ऐसे समय में इनका कारोबार लाखां में होता है। अवैध वेंडररिंग के माध्यम से घुमन्तु बच्चों को मिलता है छोटा रोजगार, परोसे से जाते हैं जहर अक्सर यह देखा गया है कि दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन पर काफी संख्या में घुमन्तु बच्चे फल, चाय व पानी बेचते हुए नजर आते हैं। इसके पीछे बड़े-बड़े ठेकेदारों का हाथ होता है।
क्या कहते हैं स्थानीय –
लोगों की बात माने तो ये सीधे तौर पर जीआरपी और आरपीएफ की मदद से बिना कागज के 8लाख प्रतिमाह ठेके पर कार्य लेते हैं और अपने कार्यों को अंजाम देने के लिए इन घुमंतु बच्चों को पकड़ते हैं।
इन बच्चों की कमजोरी इनकी नशे की लत होती है। उसी आड़ में ठेकेदार को जो भी कराना होता है वह उससे कराते हैं। इसी प्रक्रिया में जो यात्री पानी पीकर बोतल को बाहर फेंक देते हैं।
उसी बोतल को स्टेशन पर या रेल की पटरियों के बीच से यह घुमन्तु बच्चे उठाते है और ठेकेदारों की मदद से बड़े आराम से गंदा पानी इसमें ले लेते हैं और टेप लगा कर यात्रियों के बीच चले जाते हैं। प्यासे यात्री उसे लेने पर मजबूर हो जाते है। जो वास्तव में एक जहर स्वरूप होता है।
मुद्दा – घुमन्तू बच्चों द्वारा जल की जालसाजी –
इसके बदले में घुमन्तु बच्चों को कुछ पैसे दिए जाते हैं लेकिन उन बच्चों के लिए ये कुछ पैसे ही काफी होते हैं। क्योंकि नशे की लत पड़े ये मासूम सुलेशन व हीरोइन खरीदते है। सुलेशन के माध्यम से व हीरोइन के माध्यम से अपने नसे की पूर्ति करते है। उसी की खरीद के लिए चंद पैसों के कारण ये ठेकेदार के जाल में फंस जाते है और उसके लाखां के कारोबार में अपनी हिस्सेदारी देते हुए गंदे पानी को सभी को पिलाते है।
गन्दे पानी संबंध में डॉ आरके शर्मा का कहना है कि यह पानी डायरिया को दावत देता है इसके अलावा इस पानी पीने से पीलिया जैसी बीमारियां भी अपने आगोश में ले लेती हैं ऐसे में इन पर रोक लगाना बहुत आवश्यक है।
जांच –
इस संबंध में रेल अधिकारियों का कहना है कि स्टेशन परिसर में ऐसी बातें नहीं है किसी भी अन्य व्यक्ति को रेलवे द्वारा चलाए गए रेल नीर बोतल बेचने का अधिकार है।
यदि ऐसा होता है तो इसकी जांच की जाएगी और जो भी दोषी होगा उसे कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाएगी। रेल अधिकारियों ने आम जनता से भी इसके लिए सहयोग मांगा है ।
सबसे मजेदार बात तो यह है कि अधिकारी एक ही रटी रटायी बात कहते है। जांच करायी जायेगी अगर आफिस के बाहर निकलते तो शायद वे अपनी आखों से भयानक मौत का खेल देख सकते।
उनका कहना है कि केवल मेरे टाइट होने से यह कार्य जो आप बता रहे हैं यदि हो रहा है तो नहीं रुकेगा।
जिम्मेदारी –
इसकी जिम्मेदारी आपकी भी है यदि आप ऐसे कार्यों को रोकना चाहते हैं तो अपनी जिम्मेदारी का अहसास कराते हुए जब यह बच्चे पानी ले आते हैं और रेल नीर इस बोतल पर लिखा होता है तो तत्काल इसकी जानकारी हमारे शिकायत केन्द्र पर दे सकते हैं । वर्तमान दौर में ट्वीट कर हमें जानकारी दे सकते हैं।
आरोप –
उधर लगातार आरोप से तेवर बदलते जीआरपी आरपीएफ के जवानों ने भी साफ तौर पर इंकार कर दिया है कि उनके देख-रेख में यह कारोबार होता है।
उनका कहना है हम तो घुमन्तु बच्चों को पढ़ाने और अच्छे संस्कार देने के लिए समय-समय पर बुलाते हैं। ऐसे में जो हम पर आरोप लगाया जा रहा है वह बिल्कुल निराधार है।
लेकिन यह बिल्कुल सच है कि जीआरपी आरपीएफ के लाख इंकार किए जाने के बाद भी अवैध वेंडररिंग के ठेकेदार इन घुमंतु बच्चों के माध्यम से गंदा पानी ट्रेन बोगियों में, स्टेशन पर, रेलवे सर्कुलेटिंग एरिया में देखे जाते हैं।
आम इंसान यह देख रहा है लेकिन पता नहीं क्यों रेलवे के आला अधिकारियों आरपीएफ व जीआरपी के जवानों व अधिकारियों को नहीं दिखता ।