आजादी के 73 वर्ष बाद भी नहीं बनी हिंदी राष्ट्रभाषा

सच की दस्तक के तत्वावधान में हिंदी दिवस पर नगर के रविनगर स्थित कार्यालय एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
राष्ट्रभाषा के परिपेक्ष में हिंदी विषयक संगोष्ठी का विषय प्रवर्तन करते हुए साहित्ययान के संस्थापक अध्यक्ष वरिष्ठ रंगकर्मी व साहित्य धर्मी कृष्णकांत श्रीवास्तव ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आजादी के 73 वर्ष बाद भी हिंदी हमारे भारत देश की राष्ट्रभाषा नही बन पाई।
सच पूछिए तो राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र को गूंगा समझा जाता है। आगामी 2 अक्टूबर से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का 150 वां जन्मोत्सव आगामी 2 अक्टूबर से राष्ट्र का महात्मा गांधी का 150 वां जन्मोत्सव मनाने का निर्णय लिया गया है। महात्मा गांधी ने कहा था कि हिंदी राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित होनी चाहिए । क्या हम सब मिलकर राष्ट्रहित में हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाने की दिशा में एक मुहिम या मिशन नहीं प्रारंभ सकते।
आज संसद संवेदनहीन कलमकार मौन, शिक्षा अंग्रेजी की आधीन और अनिवार्य हो गया है । सरकार को कोई ऐसी शिक्षा प्रणाली बनानी चाहिए जिससे छात्र बचपन से ही मातृभाषा और अंग्रेजी के साथ हिंदी को अनिवार्यत पढ़ें। श्री श्रीवास्तव ने कहा कि सच की दस्तक द्वारा किया जा रहा या प्रयास एक सार्थक कदम है।
कार्यक्रम में भाग ले रहे मनोज उपाध्याय ने कहा कि अभी तक हिंदी में राज काज की भाषा ही मानी जाती है ताकि हिंदी का प्रचार प्रसार होता रहे। अब इसे राष्ट्रभाषा बनाने के लिए आंदोलन करना होगा ।
वही संगोष्ठी में शिरकत करते हुए बृजेश कुमार ने कहा कि निश्चित तौर पर राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी को अपनाना चाहिए क्योंकि इससे देश को पहचान मिलती है। हमारे देश की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विदेशों में जाकर जब हिंदी बोलते हैं तो हमें बहुत प्रसन्नता होती है लेकिन जब इसे राष्ट्रभाषा के रूप में सरकार मान्यता नहीं देती है तो उतना ही दुख होता है।
संगोष्ठी में भाग ले रहे अशोक सैनी ने कहा कि जब राष्ट्रीय खेल का निर्धारण हो सकता है राष्ट्रीय पक्षी तय होता है तो हमारी मातृभाषा को राष्ट्रभाषा क्यों नहीं बनाया जा सकता ।1953 से सम्पूर्ण भारत में प्रतिवर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाने की परंपरा शुरू हुआ था जो आज तक चलता आ रहा है।
भारत को जातीय अस्मिता और सांस्कृतिक विरासत बनाए रखने हेतु संविधान के अनुच्छेद 343 से अनुच्छेद 351 में की गई है। फिर भी, हिंदी को अब राष्ट्रभाषा के रूप में मान्यता और प्रतिष्ठित करना राष्ट्र हित में आवश्यक है।
बैठक में उपस्थित सर्व श्री सुनील कुमार सिंह एडवोकेट बिंदेश्वरी तिवारी ने कहा कि हिंदी दुनिया की चौथी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा हो गई है। 150 देशों में हिंदीभाषी लोग हैं। विदेश के सभी देशों की अपनी एक राष्ट्रभाषा होती है जो अंतरराष्ट्रीय मंच पर मुखरित होकर राष्ट्र की पहचान बनती है।
संगोष्ठी में मुख्य रूप से अशोक शर्मा अजय सिंह विजय कुमार जितेंद्र सिंह अजीत प्रजापति दीप चंद्र यादव अक्षा पूजा कुमारी राहुल यादव मंजीत यादव संदीप निशा राय रवि कुमार आदि लोग उपस्थित थे संगोष्ठी की अध्यक्षता बृजेश कुमार ने की