लघुकथा : गौशाला – ✍️रामनाथ साहू
बहुत कम पढ़ी -लिखी सास अपने पूरे समय तक, गाय के कोठे से गोबर उठाती रही।यह काम उसे मानो विरासत में मिला था –
जब वह नई- नवेली इस घर मेंआई थी। उसकी सास ने, उसे गोबर उठाने की नई टोकरी देते हुए, पहला काम जो कराया था, वह था – गौशाले से गोबर उठाना । यह नेगाचार भी था ।उसके बाद से तो उसकी सास, जब तक उसके साथ जिंदा थी, और यह बहु बनकर रही ,तब तक गौशाला से गोबर उठाना- इसी की जिम्मेदारी थी।
वह गोबर उठाती और उसे सिर पर ढोकर उस बड़े से घूरे में जाकर डाल देती थी ।
गौशाला में केवल गोबर उठाना ही नहीं होता है ।वहाँ बहुत सारे काम होते हैं । वह सब, बिना किसी भेदभाव के करती थी ।
पर इस सास की बहुत ज्यादा पढ़ी- लिखी बहू घर आई , तब वह अपनी इस नई बहू से गौशाला से गोबर उठाने का नेगाचार भी, डर के मारे नहीं करा पाई ।
उसकी इस नई बहू को गौशाला का दूध चाहिए था। उसे गौशाले की गंध नहीं चाहिए थी ।
और तो और -गौशाला से आने वाली अपनी सास से, वह दूरी बनाकर रहती थी । और कहा भी करती थी – यह क्या ?दिन भर उनके शरीर से गोबर -मूत्र की दुर्गंध आती रहती है ।
एक बार तो उसने, अपनी इस सास के उपर ,अपना महंगा वाला ‘डियो, ‘ पूरा का पूरा उड़ेल ही दिया था ।
पर सास, जब से पस्त होकर खाट पकड़ ली है ।बहू ने जो पहला काम किया- वह था कि घर में बंधी हुई आठ- दस गायों को खुले खुलवा दिया । वह इन गायों को, मुफ्त में ही किसी को दे देना चाहती थी , पर लेने वाले भी कोई नहीं थे तो ,उसने उनको यूं ही खुले में खोलवा दिया।
मुख्य घर से गौशाला दिखा करती थी। सुबह -सबेरे सोकर उठने पर सहज ही बंधी हुईं गायों पर, दृष्टि अनायास ही चली जाती थी ।
इस प्रकार प्रातःकाल गौ दर्शन का लाभ मिल जाता था । नई बहु बहुत ही धार्मिक स्वभाव की भी थी ,जैसा वह अक्सर कहा करती थी । वह पूजन- अर्चन काफी करती थी ।
बहू ने अपने पति से कह कर आंगन में तुलसी -चौरे के पास गाय की एक प्रतिमा , सीमेंट से बनवाकर बढिया रंग -रोगन करवा ली ।इससे प्रातः गौ- दर्शन का लाभ अबाध मिलता रहेगा।
एकदम बहुत ही सुंदर ..धवल वर्णी गौमाता-सीमेंट की बनी !
उसने पंडित बुलाकर उसका पूजन भी कराया। पंडित जी ने पंचामृत बनाने के लिए दूध की मांग की तब उसने अपने पति के द्वारा शहर से लाए गए डिब्बाबंद दूध को आगे बढ़ा दिया ।
पुराना घी तो छह महीने तक चल ही जायेगा ।
✍️रामनाथ साहू
*छत्तीसगढ़*