“ज्यों कुहरे में धूप” (दोहा संग्रह) का हुआ लोकार्पण

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सच की दस्तक न्यूज डेस्क देहरादून

सुप्रसिद्ध गीतकार श्री शिव मोहन सिंह द्वारा रचित पुस्तक “ज्यों कुहरे में धूप” (दोहा संग्रह) का लोकार्पण उत्तराखंड के पूर्व पुलिस महानिदेशक एवं वरिष्ठ साहित्यकार श्री अनिल रतूड़ी जी आईपीएस तथा श्रीमती राधा रतूड़ी जी आईएएस, अपर मुख्य सचिव उत्तराखंड शासन के द्वारा संयुक्त रूप से किया गया। कार्यक्रम हिंदी साहित्य समिति देहरादून तथा उद्गार साहित्यिक एवं सामाजिक मंच देहरादून के संयुक्त तत्त्वावधान में डॉ सुधा रानी पांडेय  पूर्व कुलपति उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय हरिद्वार की अध्यक्षता में दिनांक 5 मार्च 2023 को होटल ग्रैंड लिगेसी प्राइम देहरादून में संपन्न हुआ। विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रख्यात गीतकार डॉ॰ बुद्धिनाथ मिश्र
तथा सारस्वत अतिथि के रूप में  असीम शुक्ल, वरिष्ठ साहित्यकार, प्रोफेसर राम विनय सिंह डीएवी पीजी कॉलेज देहरादून तथा डॉक्टर विद्या सिंह पूर्व विभागाध्यक्ष हिंदी ,लोकार्पण मंच पर विराजमान रहे। कार्यक्रम का कुशल संचालन उद्गार के सचिव  पवन शर्मा ने किया।

मुख्य अतिथि के रूप में  अनिल रतूड़ी  आईपीएस ने अपने वक्तव्य में कहा कि  शिवमोहन सिंह  द्वारा रचित *’’ज्यों कुहरे में धूप’’* दोहा संग्रह पढ़ने में अत्यंत आनंद की अनुभूति हुई। श्री शिव मोहन सिंह की पूर्व में तीन साहित्यिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं और वह मुख्यतः अब तक ’गीतकार’ के रूप में ही साहित्य जगत में जाने जाते रहे हैं। इस नवीन संग्रह में उन्होंने दोहावली की सँकरी भूमि पर एक आश्चर्यचकित करने वाला सार्वभौमिक साहित्य रच कर अपनी प्रतिभा में चार चाँद लगा देने का कार्य किया है।
गीतकार का कार्य कठिन है किंतु दोहा रचने का कार्य और भी कठिन है। दोहे में गीत का रस भी हो, व्यंग्य भी हो एवं प्रकृति की मिट्टी व हवा की गंध भी होनी आवश्यक है। यह सब श्री शिवमोहन सिंह ने बहुत ही रोचक तरीके से इस पुस्तक के पंद्रह अध्यायों में प्रस्तुत किया है।


अपनी प्रस्तावना में वे कहते हैं कि वह पुस्तक के माध्यम से किसी को उपदेश नहीं देना चाहते। यह उनकी विनम्रता है किंतु पाठक को निश्चित तौर से इस पुस्तक को पढ़ने के उपरांत जीवन विषयक महत्वपूर्ण संदेश दोहे की साहित्यिक मात्रा और बंदिश के माध्यम से प्राप्त होता है। जिसके लिए  शिवमोहन सिंह  सराहना के पात्र हैं।
अति विशिष्ट अतिथि के रूप में श्रीमती राधा रतूड़ी आईएएस ने कहा कि शिवमोहन सिंह द्वारा रचित *”ज्यों कुहरे में धूप”* दोहा संग्रह को पढ़कर साहित्यिक रस प्राप्त हुआ। यह आश्चर्य की बात है कि एक इंजीनियर द्वारा अब तक तीन साहित्यिक रचनायें लिखी जा चुकी हैं और यह उनकी चौथी रचना है। वह अपनी प्रतिभा के बावजूद अत्यंत विनम्र हैं। उन्होंने लिखा भी हैः-
“मेरा एक प्रयास है, आप सभी हैं विज्ञ।
शुचि संशोधन चाहता, अज्ञानी अनभिज्ञ।।”
किंतु मेरा मत है कि सभी दोहे महत्वपूर्ण संदेश देते हैं और  शिवमोहन सिंह  एक अत्यंत ज्ञानी और प्रतिभाशाली साहित्यकार हैं।


डॉ॰ बुद्धिनाथ मिश्र ने कहा कि शिव मोहन  के दोहे समकालीन जीवन की विभिन्न परिस्थितियों को बड़ी सरलता से अभिव्यक्त करते हैं ।मुझे पूरा विश्वास है कि आज का समाज इन दोहों का भरपूर उपयोग करेगा।
इस अवसर पर उपस्थित असीम शुक्ल  ने कहा- “ज्यों कुहरे में धूप” ( दोहा संग्रह) को पढ़कर ऐसा लगता है कि इसके लेखक शिव मोहन असीमित संवेदनाओं के कवि हैं। इसका प्रमाण अपने आप में स्वयं इस संग्रह में संकलित दोहे हैं। जिंदगी के सुख-दुख, राग-विराग, आशा-निराशा, उत्थान-पतन के विभिन्न रूपों को वे रूपायित करते हैं। दोहाकार ने जीवन के हर कोने में झाँकने का सफल प्रयास किया है। शिव मोहन सिंह के दोहों को पढ़कर ऐसा लगता है कि अब नए सिरे से ऐसा युग आने वाला है जिसे दोहा युग की संज्ञा से अभिहित किया जाएगा। शिव मोहन सिंह समकालीन उदात्त चेतना के समर्थ दोहाकार के रूप में अपनी पहचान बनाएंगे, ऐसा विश्वास पूर्वक कहा जा सकता है।


वही प्रोफेसर राम विनय सिंह  ने कहा कि “ज्यों कुहरे में धूप” के सभी दोहे सामाजिक कुहरे में धूप सदृश्य ही हैं जो प्रकाशमय संदेश देने में समर्थ हैं।
डॉ॰ विद्या सिंह ने कहा – साहित्य की उपादेयता- श्रेष्ठता परिवेश का यथार्थ चित्रण करने के साथ-साथ, उसके अनुकूल व्यक्ति को नई चेतना प्रदान करने तथा जीवन को सच्चे अर्थों में स्वच्छ भूमिका पर जीने के लिए उचित दिशाओं को प्रशस्त करने में है। इस दृष्टि से अवलोकन करें तो ‘ज्यों कुहरे में धूप’ संग्रह के दोहे मानव हित, नैतिक मूल्यों की रक्षा तथा मशीनीकरण के युग में भी मानवीय पक्षधरता में खड़े दिखाई देते हैं। कवि यथार्थ से अनभिज्ञ नहीं हैं किंतु वह उन विकल्पों से भी अवगत हैं, जिन्हें स्वीकार करके मनुष्य और अधिक मनुष्यता की ओर अग्रसर हो सकता है। अंततोगत्वा साहित्य का उद्देश्य मनुष्य को एक बेहतर मनुष्य बनाना ही तो है!
कार्यक्रम में अतिथि गण द्वारा दीप प्रज्ज्वलन के पश्चात श्रीमती महिमा श्री’ द्वारा मां सरस्वती की वंदना प्रस्तुत की गई तथा स्वागत संबोधन हिंदी साहित्य समिति के महामंत्री  हेमवती नंदन कुकरेती  द्वारा प्रस्तुत किया गया। इस भव्य लोकार्पण कार्यक्रम में डॉक्टर सविता मोहन, श्रीमती डॉली डबराल, डॉक्टर नीता कुकरेती,डॉ॰ राकेश बलूनी, श्रीकांत , कृष्ण दत्त शर्मा, अम्बर खरबंदा, डॉ॰ इंदु अग्रवाल, अनिल अग्रवाल एवं अन्य साहित्य मनीषी तथा प्रबुद्ध जन उपस्थित रहे। अंत में राष्ट्रगान गाकर कार्यक्रम का समापन किया गया। हेमवती नंदन कुकरेती, महामंत्री, हिंदी साहित्य समिति देहरादून। पवन शर्मा, सचिव, उद्गार साहित्यिक-सामाजिक मंच, देहरादून इनकी भी थी उपस्थिति।

Sach ki Dastak

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