एक श्राप से बन गया वह रेगिस्तान –
जब भी हम रेगिस्तान को देखने की बात करते है तब हमारे सामने राजस्थान का नाम आता है। क्यूँकि राजस्थान में ही रेगिस्तान देखने मिलते है। आप को ये जानकर हैरानी होंगी की लेकिन कर्नाटक में भी Talakadu नाम का रेगिस्तान है।
Talkadu Desert के बारे में कहा जाता है की, कर्नाटक में एक ऐसा शहर है जो शाप की वजह से पूरी तरह से रेगिस्तान बन गया है। उस रेगिस्तान को “तलकाड़ू” (Talkadu) के नाम से जानते है। तो जानते है इस शाप की क्या वजह है।
तलकाड़ू रेगिस्तान Talakadu Desert:-
तलकाड़ू रेगिस्तान, मैसूर से ४५ km और कर्नाटक में बैंगलोर से १३३ km दूरी पर कावेरी नदी के बायें किनारे पर स्थित है। तलकाड़ू रेगिस्थान के चारों ओर सिर्फ़ रेत ही रेत देखने मिलेगी।
यह रेगिस्तान पहले ख़ूबसूरत शहर था। एक वक़्त था जब यहा पर ३० से भी ज़्यादा मंदिर (Talakadu Temples) थे। लेकिन अब उनमें से ज़्यादा से ज़्यादा मंदिर रेत में दबे हुए थे।
लेकिन यह तलकाड़ू नाम आया कहा से जानते है इसके पीछे की वजह क्या है।
तलकाड़ू नाम का इतिहास History of Talakadu Name:-
पुरातन काल से ही इस शहर का नामो निशान मिट गया है। यह शहर पूरी तरह से रेगिस्तान बन गया है। Talakadu के बारे में बहोत सारी कहानिया बतायी गयी है।
एक दिन “ताला” और “कड़ू” नाम के दो जुड़वा भाई जंगल में पेड़ काटने चले गए। उन दोनो ने एक ऐसे पेड़ को काट दिया जिस पेड़ की पूजा जंगली हाथी करते थे।
बाद मे उन्हें पता चला की जो पेड़ उन्होंने काटा है उसमें भगवान शिव की प्रतिमा है। इसीलिए वो हाथी इस पेड़ की पूजा करते थे। वो हाथी नहीं थे बल्कि ऋषियों का रूप था।
तलकाड़ू मंदिर Talakadu Temple:-
उसके बाद उस पेड़ को चमत्कारी रूप से फिर से स्थापित कर दिया गया। तब से इस जगह का नाम “ताला-कड़ू“ रखा गया। इसे संस्कृत में “दला-वान” कहते है।
वीरभद्रा स्वामी मंदिर के सामने इन दो जुड़वा भाइयों के प्रतिनिधित्व करने के लिए दो पत्थर रखे गए है। ऐसा कहा जाता है की राम जब लंका जाने निकले थे तब वो “तलकाड़ू” रेगिस्तान में रुके हुए थे।
“तलकाड़ू” एक छोटासा शहर था। लेकिन अचानक ऐसा क्या हुआ की, इस ख़ूबसूरत शहर का रेगिस्तान बन गया। तो जानते है इसके इतिहास के बारे में।
तलकाड़ू रेगिस्तान का इतिहास History of Talkadu Desert:-
इस रेगिस्तान का इतिहास बड़ा संजीदा है। क्यूँकि बहोत सारे राजाओं ने इस रेगिस्तान पर शासन किया था। ११वी शताब्दी की शूरवात में पश्चिमी गंगा यानी की प्राचीन कर्नाटक राजवंश ने चोला राजवंश के आगे अपनी हार मान ली थी। उसके बाद चोला राजवंश ने तलकाड़ू पर क़ब्ज़ा कर लिया था। और बाद में उसे Rajarajapura (रजराजपुरा) ने नाम दिया गया।
लेकिन १०० साल के बाद Hoysala(होयसल) के राजा विष्णुवर्धन ने तलकाड़ू पर अपना अधिकार जमाया। होयसल के राजा ने चोला राजवंश को मैसूर से बाहर निकाला। उस वक़्त तलकाड़ू सात शहर और पाँच मठों से बना हुआ था।
१४ वी शताब्दी के मध्यतक होयसल के राजा ने तलकाड़ू पर शासन किया था। उसके बाद ये विजयनगर संप्रभु के सामंतो के क़ब्ज़े में चला गया।
१६१० में तलकाड़ू शहर को मैसूर के राजा ने जीत लिया था।
राणी अलमेलम्मा का तलकाड़ू पर शाप Talakadu Curse:-
मैसूर के वोडेयार राजा के हिरासत में तलकाड़ू शहर आया था। वोडेयार राजा, राणी अलमेलम्मा (Alamelamma) के गहने हासिल करना चाहता था। लेकिन हर बार वो गहने प्राप्त करने में असफल होता था। उसे वो गहने किसी भी हालात में हासिल करने थे।
उसके बाद राजा ने एक सेना खड़ी की और राणी के पीछे उनको लगा दिया। जब यह बात राणी अलमेलम्मा को पता चली तब उन्होंने ऐसा कुछ किया जिसपर शायद कोई विश्वास नहीं करेगा।
राणी अलमेलम्मा, कावेरी नदी के किनारे पर गयी। और अपने सारे गहने निकाल कर नदी में फ़ेक दिए। और उसके बाद ख़ुद भी नदी में डूब गयी।
ऐसा कहा जाता है की, राणी ने डूबते समय शाप दिया की “तलकाड़ू शहर पूरी तरह से रेत बन जाएगा, मलांगी भँवर बन जाएगी, मैसूर राजा को वारिस नहीं होगा”।
१६ वी शताब्दी के शुरुआती दिनो में ही राणी का यह शाप सच होने लगा था। जिता जागता तलकाड़ू शहर पूरी तरह से रेगिस्तान बन गया। १७ वी शताब्दी के बाद से सिंहासन पर एक भी उत्तराधिकारी नहीं बैठा।
यह कहानी कितनी सच है और कितनी झूठ यह कोई दावे के साथ नहीं कह सकता।
पुराना तलकाड़ू शहर पूरी तरह से लगभग एक Mile लंबाई तक फैली रेत के पहाड़ियों के नीचे दफ़न हुआ है। Talakadu के निवासियो को बार बार अपने घर छोड़कर दूसरी जगह में जाना पड़ा। यहा पे ३० से अधिक मंदिर रेत के नीचे दबे हुए है। रेत में दबा हुआ सबसे भव्य मंदिर Vaidyanatheshwar है।
पर्यटकों का आकर्षण Tourist Attractions:-
Talkadu Desert पर्यटकों के बीच अपने ख़ूबसूरत मंदिरो के लिए प्रसिद्ध है। यह शहर अपने पाँच मंदिरो के लिए जाना जाता है।
- व्य्द्यनथेश्वर
- पथलेश्वर
- मरुलेश्वर
- अरकेशवरा
- मल्लिकार्जूंन
यही वो पाँच मंदिर है। माना जाता है की यह पाँच लिंग भगवान शिव के पाँच मुखों का प्रतिनिधित्व करते है। पंच मार्ग का निर्माण करते हुए प्रसिद्ध है। इन पाँच शिव मंदिरो के सन्मान में हर १२ साल में एक बार मेला लगता है। २००९ में अंतिम बार यह मेला आयोजित किया हुआ था।