जन्म के बाद ही हो जाना चाहिए हर शिशु का थायरॉइड टेस्ट
थायरॉइड एक गंभीर समस्या है, जिसे ‘साइलेंट किलर’ (Thyroid as Silent Killer Disease) माना जाता है। इस बीमारी के बारे में लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से हर साल 25 मई को विश्व थायरॉइड दिवस (World Thyroid Day) मनाया जाता है। क्या आप जानते हैं कि शिशु के पैदा होते ही उसका थायरॉइड टेस्ट (Thyroid Test in Babies) होना बहुत जरूरी है? खासकर उन शिशुओं के लिए जिनके परिवार में पहले से ही किसी को थायरॉइड की समस्या रही हो। ऐसा जरूरी क्यों है आइए हम आपको बताते हैं।
शिशु के जन्म के बाद उसके मस्तिष्क का विकास अगले 2-3 सालों में धीरे-धीरे होता है। इस विकास में थायरॉइड हार्मोन बड़ी भूमिका निभाते हैं। अगर किसी बच्चे का थायरॉइड ग्लैंड ठीक तरह से काम नहीं करता है या उसमें कोई गड़बड़ी है, तो संभव है कि बच्चे के मस्तिष्क और शरीर का विकास ठीक तरह से न हो और बच्चा मानसिक या शारीरिक रूप से अल्पविकसित रह जाए। ऐसे में अगर जन्म के साथ ही शिशु का थायरॉइड टेस्ट करवा लिया जाए, तो उसके विकास में आने वाली एक महत्वपूर्ण बाधा को रोका जा सकता है।
5 आई क्यू प्रति महीने होता रहता है कम
शिशु जब गर्भ में होता है, तो मां के शरीर से रिलीज थायरॉइड हार्मोन उसके विकास में मदद करता है। मगर गर्भ से बाहर आने के बाद शिशु के अपने थायरॉइड ग्रंथि से ये हार्मोन रिलीज होने लगता है। अगर शिशु का थायरॉइड ठीक से काम न करे, तो उसका आईक्यू लेवल 5 प्वाइंट्स प्रति महीने की दर से कम होने लगता है। इससे शिशु मंदबुद्धि और शारीरिक रूप से दुर्बल हो सकता है।
आमतौर पर शिशुओं में थायरॉइड हार्मोन के ठीक से रिलीज न हो पाने के 2 कारण होते हैं। पहला, थायरॉइड ग्रंथि ठीक से हार्मोन नहीं बना पाती, इसे डिस्जेनेसिस (dysgenesis) कहते हैं। और दूसरा थायरॉइड ग्रंथि हार्मोन बनाती तो है, मगर शरीर इसका ठीक से प्रयोग नहीं कर पाता है, इसे डिस्हार्मोनोजेनेसिस (dyshormonogenesis) कहते हैं।
अगर बड़े बच्चों में हाइपोथायरॉइडिज्म की समस्या होती है और इसका पता सही समय पर चल जाए, तो उसे ठीक करना ज्यादा आसान होता है। हाइपोथायरॉइडिज्म के कारण मस्तिष्क का विकास, शारीरिक विकास आदि में समस्याएं आती हैं। बुरी स्थिति होने पर इस हाइपोथायरॉइडिज्म की समस्या के कारण शिशु नाटा, धीमा, मोटा, कब्ज से परेशान और गर्दन में सूजन की समस्या वाला हो सकता है।
इसके साथ ही उसकी आवाज भी अजीब घरघराहट भरी हो सकती है। हालांकि किसी बच्चे में ये लक्षण नहीं हैं, तो भी उसका टेस्ट होना चाहिए। ऐसे बच्चे जो पहले से किसी ऑटोइम्यून बीमारी जैसे- डायबिटीज, व्हीट एलर्जी आदि का शिकार हैं, उनमें हाइपोथायरॉइडिज्म का खतरा ज्यादा होता है। ऐसे बच्चों का रेगुलर टेस्ट होना चाहिए।”
बच्चों को हाइपरथायरॉइडिज्म की समस्या कम आमतौर पर बहुत कम होती है। ये पहले वाले से उल्टी समस्या है। इसमें बच्चे को भूख ज्यादा लगती है, लेकिन फिर भी उसका वजन घटता जाता है। उसे पसीना ज्यादा आता है, गर्मी ज्यादा लगती है, गुस्सा ज्यादा आता है, चिड़चिड़ा स्वभाव होता है और किसी काम में ध्यान नहीं लगा पाता है। ऐसे बच्चों में भी टेस्ट बेहद जरूरी है। ऐसे बच्चे स्कूल में भी अच्छा परफॉर्म नहीं कर पाते हैं।”
जन्म के बाद थायरॉइड टेस्ट से बेहतर हो सकता है शिशु का विकास
हर शिशु का जन्म के बाद थायरॉइड टेस्ट होना चाहिए। अगर उसे कोई समस्या है, तो उसका इलाज शुरू करना चाहिए। इससे शिशु के विकास की बाधाओं को रोका जा सकता है।