क्या है अर्टिकिल 356 है… विस्तार से जानें

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अर्टिकिल 356 अगर राष्ट्रपति को राज्यपाल की सिफारिश या फिर किसी भी और तरह से ये लगता है कि किसी राज्य में व्यवस्था संविधान के अनुकूल नहीं चल रही है। तो राष्ट्रपति उस राज्य की व्यवस्था को अपने हाथ में ले सकते हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 9 फरवरी को राज्यसभा में संविधान के आर्टिकल 356 का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि केंद्र में काबिज कांग्रेस की सरकारों ने आर्टिकल 356 का प्रयोग करके 90 बार राज्यों की सरकारों को बर्खास्त किया। अपने भाषण के दौरान पीएम मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को आर्टिकल 356 का सबसे ज्यादा दुरुयोग करने का दोषी भी ठहराया। क्या पीएम मोदी की राज्यसभा में कही गई बात शत-प्रतिशत सही है। क्या कांग्रेस ने केंद्र में शासन करने के दौरान वाकई आर्टिकल 356 का दुरुपयोग किया? राज्यों की सरकारों को जबरन बर्खास्त किया गया?

पूर्व पीएम इंदिरा गांधी ने इसका 50 बार “दुरुपयोग” किया था। निर्वाचित राज्य सरकारों को बर्खास्त करें। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 में एक निर्वाचित सरकार को हटाकर राज्य में “राष्ट्रपति शासन” लगाने के प्रावधान हैं। जबकि संविधान का उद्देश्य केवल असाधारण परिस्थितियों में अनुच्छेद 356 का उपयोग करना था, जनता द्वारा चुनी गई सरकार जिसमें भाजपा के पूर्ववर्ती जनसंघ के सदस्य शामिल थे। लेकिन कांग्रेस की तरफ से बार-बार राजनीतिक नपे-नुकसान तय करने के लिए इस प्रावधान का इस्तेमाल किया गया। कांग्रेस के खिलाफ मोदी का यह बयान ऐसे समय में आया है जब विपक्ष हिंडनबर्ग शोध के आरोपों की संयुक्त संसदीय समिति से जांच कराने की मांग कर रहा है और राहुल गांधी ने उद्योगपति गौतम अडानी और उनकी कंपनियों पर आरोप लगाया है कि अडानी की प्रधानमंत्री के साथ लंबे समय से निकटता से उन्हें बहुत फायदा हुआ है।

अनुच्छेद 356 क्या कहता है?

अगर राष्ट्रपति को राज्यपाल की सिफारिश या फिर किसी भी और तरह से ये लगता है कि किसी राज्य में व्यवस्था संविधान के अनुकूल नहीं चल रही है। तो राष्ट्रपति उस राज्य की व्यवस्था को अपने हाथ में ले सकते हैं। आम बोल-चाल में आर्टिकल 356 के इस्तेमाल को राष्ट्रपति शासन कहते हैं। अनुच्छेद 356 के प्रावधानों के अनुसार, किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन एक बार में छह महीने के लिए अधिकतम तीन साल के लिए लगाया जा सकता है। हर छह महीने में दोबारा राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए संसदीय मंजूरी की जरूरत होगी। हालाँकि, अतीत में विशिष्ट परिस्थितियों में राष्ट्रपति शासन को काफी लंबी अवधि के लिए बढ़ाया गया है। उदाहरण के लिए, बढ़ते उग्रवाद के कारण पंजाब 1987-1992 तक राष्ट्रपति शासन के अधीन था।

आंबेडकर ने बताया था डेड लेटर

इस दौरान राज्य की पूरी मशीनरी केंद्रीय कैबिनेट की सिफारिशों के मुताबिक काम करती है। यानी की अगर किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगता है तो उस राज्य का पूरा दारोमदार केंद्र सरकार पर आ जाता है। यही वजह है कि संविधान के बनते वक्त इस आर्टिकल औऱ इसके उपयोग को परिभाषित किया जा रहा था और लिखा जा रहा था तो संविधान सभा के ड्राफ्टिंग कमेटी के चेयरमैन बाबा साहब आंबेडकर ने इसे संविधान का डेड लेटर कहा था। डॉ. आंबेडकर की कही बात 100 फीसदी सच साबित हुई। केंद्र की सरकारों ने अपनी-अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षा की पूर्ति के लिए आर्टिकल 356 का दुरुपयोग करना शुरू किया। वर्तमान तारीख में 130 से ज्यादा बार ऐसे मौके आए हैं जब केंद्र ने राज्यों को राष्ट्रपति शासन के हवाले किया। जिसकी शुरुआत देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से हुई थी।

केंद्र में कांग्रेस के दबदबे के दशकों के दौरान अनुच्छेद 356 का इस्तेमाल राज्यों में वामपंथी और क्षेत्रीय दलों की सरकारों के खिलाफ किया गया था। 1959 तक, जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने अनुच्छेद का छह बार उपयोग किया था, जिसमें 1959 में केरल में दुनिया की पहली निर्वाचित कम्युनिस्ट सरकार को हटाना भी शामिल था। 1970 का दशक राजनीतिक रूप से अधिक अशांत था। 1970 से 1974 के बीच 19 बार राष्ट्रपति शासन लगाया गया। आपातकाल के बाद, जनता पार्टी सरकार ने 1977 में नौ कांग्रेस राज्य सरकारों को संक्षेप में खारिज करने के लिए इसका इस्तेमाल किया। 1980 में जब इंदिरा सत्ता में लौटीं तो उनकी सरकार ने भी नौ राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगा दिया। 1992-93 में प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने यूपी में कल्याण सिंह की सरकार के अलावा, बाबरी मस्जिद के विध्वंस के मद्देनजर भाजपा की तीन सरकारों को बर्खास्त कर दिया।

अनुच्छेद 356 के इस राजनीतिक दुरूपयोग को कैसे रोका गया?

1989 में केंद्र ने कर्नाटक में एस आर बोम्मई सरकार को बर्खास्त कर दिया। एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ मामले में अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 356 के प्रावधानों पर विस्तार से चर्चा की। 1994 में नौ न्यायाधीशों की पीठ ने अपने फैसले में उन विशिष्ट उदाहरणों पर ध्यान दिया जब राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है और कब नहीं। अदालत ने कहा कि अनुच्छेद 356 को सरकार के भौतिक रूप से टूटने या ‘त्रिशंकु विधानसभा’ होने की स्थितियों में लागू किया जा सकता है, लेकिन इसका उपयोग राज्य सरकार को सदन में बहुमत साबित करने का मौका दिए बिना नहीं किया जा सकता है। फैसले के बाद से अनुच्छेद 356 के मनमाने इस्तेमाल पर काफी हद तक लगाम लगाई गई है।

 

Sach ki Dastak

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