
प्राचीन काल में मनुष्य आदिमानव था, ये सभी जानते हैं। उसका काम केवल अपना शिकार करना और अपना पेट पालना था।
उस समय मनुष्य और पशु में कोई अंतर नहीं था, सब अपने लिए जीते थे, जंगल का यही नियम है, मारो और खुद को बचाओ। हमारे वेदों में भी लिखा है, “जीवही जीव आहारा” अर्थात जीव ही जीव का भोजन है। एक की भूख दूसरे के जीवन पर निर्भर है।
समय बदला, जीवन बदला, सभी पशुओं को पीछे छोड़ मनुष्य आगे बढ़ा, उसमे परिवर्तन हुआ, उसने संस्कृति बनाई, उसने सभ्यता बनाया, उसने समाज बनाया, उसने खुद को मानव बनाया, अब उसका कार्य केवल शिकार करना और पेट पालना नही रहा, उसने कृषि करके खुद और दूसरों का पेट पाला, मनुष्य के साथ – साथ उसने पशुओं का भी पेट भरा, उनको पालतू बनाया, अपने साथ अपने आवास में रखा।
वैदिक काल में गाय अतिपूजनीय हुई, उसके लिए बड़े बड़े युद्ध हुए, जिसके पास जितनी गायें वो उतना धनवान। गाय को माता समझा गया, और आज भी समझा जाता है। कृषि करना, पशुओं को चराना, उनका दूध निकालना ही मनुष्य का जीवन था। यायावरी जीवन से मनुष्य अब स्थिर हो गया, उसका आवास अब एक जगह हो गया, धीरे – धीरे उसका कुनबा ग्रामों में फिर कस्बों में फिर शहर और राज्यों में परिवर्तन हुआ।
मनुष्यों में अपनत्व की भावना आई, एक ही जगह कई पीढ़ियों से रहते हुए, उनमें देशभक्ति की भावना आई, उनको उस जगह से लगाव हुआ, उस घर से लगाव हुआ, परिवार से लगाव हुआ, ग्राम और शहर से लगाव हुआ। उनको अपने देश पर किसी दूसरे का आक्रमण सहन नही हुआ, फलतः बड़े बड़े युद्ध हुए, कभी गाय की चोरी या रक्षा के लिए युद्ध हुआ, तो कभी दूसरे के क्षेत्र पर अपना अस्तित्व बनाने के लिए, कभी अपमान का बदला लेने के लिए तो कभी दास बनाने के लिए। इसमें कोई विजयी हुआ, तो कोई हारा, जो हारा अपना सर्वस्व लूटा बैठा, जो जीता सब कुछ लूट लिया, खून की नदियां बहीं।
मध्य-काल आया मनुष्य में राजनीतिक प्रवृति ज्यादा आ गई, अब मनुष्य सिर्फ तलवार के बल पर अपना वर्चस्व बनाए रखना चाहता था। लूटमार, हत्या, आम हो गई, लेकिन दूसरी तरफ एक समाज और था, जो समाज में ज्ञान का फैलाव भी कर रहा था।
तरह – तरह की खोजें भी हुई, चिकित्सा के क्षेत्र में, भौतिकी में, खगोलिकी में, गणितज्ञ इत्यादि में कई विद्वान हुए। स्थापत्य कला, संगीत कला, चित्र कला में भी मनुष्यों ने प्रगति की।
आधुनिक काल में मनुष्य और ज्ञानवान और शक्तिशाली बन गया, उसने पृथ्वी से अंतरिक्ष तक की दूरी नाप ली, चंद्रमा, मंगल, हर जगह अपना छाप छोड़ा, मनुष्य के आलावा कोई और जीवधारी ऐसा नही कर सके। मनुष्य ने सारे जीवों को अपना गुलाम बनाया, जंगल का राजा शेर भी मनुष्य के हाथ की कठपुतली बना। ईश्वर ने सबको एक समान बनाया, लेकिन मनुष्य ईश्वर द्वारा प्रदत्त सभी वस्तुओं पर अपना स्वामित्व बना लिया। कंप्यूटर, मोबाइल, जैसी कई इलेक्ट्रानिक गैजेट जिससे घर बैठे संसार की जानकारी ले सकते हैं, हवाई जहाज जिससे एक स्थान से दूसरे स्थान शीघ्रताशीघ्र जा सकते है, पूरी पृथ्वी का चक्कर लगा सकते हैं।
मनुष्य ने हर वो चीज बनाई जिससे वह अन्य जीवों से शक्तिशाली बन सके। आदिमानव से आधुनिक मानव बनने तक
का सफ़र बहुत दिलचस्प रहा, इतनी तरक्की और कोई जीव ना कर सके। मनुष्य ने अपने सुविधा की इतने वस्तुओं का निर्माण कर लिया है, की “ईश्वर भी अचंभित है, की मनुष्य ने ईश्वर को बनाया या ईश्वर ने मनुष्य को”!
आज का मानव तकनीकी पर निर्भर हो गया है, उसने प्रकृति प्रदत्त बहुत सी सुखों को खो दिया है, वह कृत्रिम चीजों पर बुरी तरह आश्रित हो गया है, अगर बिजली अचानक चली जाए तो मनुष्य व्याकुल हो उठता है, मोबाइल तो मानव का अभिन्न अंग बन गया है, जिसे वह सोच कर भी खुद से दूर नहीं रख सकता।
कंप्यूटर, लैपटॉप, इत्यादि इलेक्ट्रॉनिक उपकरण का मानव वशीभूत हो गया है, प्रकृति जगहों जैसे वन, समुन्द्र, झील, नदियों पर वह केवल मनोरंजन करने और कैमरे से फोटो खींचवाने जाता है, वह भूल गया की उसी के वज़ह से ये सब उजड़ गए हैं।
मनुष्य पहले प्रकृति चीजों का विनाश कर उसे कृत्रिम का स्थान देता है, फिर उसी पर निर्भर हो जाता है, और उसी में जीवन का आनन्द खोजता है। पशु – पक्षीयों को कैद कर उसने चिड़ियाघर का नाम दिया, फिर उसी को देखने के लिए लोग रुपए देकर आते है, तालाबों का विनाश करके स्विमिंग पुल का निर्माण किया, तालाबों, पोखरों, नदियों में स्नान करने में शर्म का अनुभव और स्विमिंग पुल में स्नान करना आधुनिकता समझने लगा।
पेड़ – पौधों को काटकर, नदियों को खोदकर, तालाबों को पाटकर, नदियों में कचरे फेंक कर, नालों का गंदा पानी, फैक्ट्रियों का गंदा पानी , कल कारखानों का प्रदूषित पानी, एवम् घर में बैठ कर विभिन्न प्रकार के प्रदूषण फैला कर, वह प्रकृति से चाहता है, की वह उन्हें स्वच्छ हवा देंगे, स्वच्छ निर्मल जल देंगे, प्रदूषण रहित जीवन देंगे, तो यह मानव की सबसे बड़ी भूल है।
आज का मानव मंगल पर पहुंच गया है, चांद पर पानी खोज ली है, लेकिन उसके जीवन में मंगल है, की नहीं ये भूल गया। सुबह ऑफिस में जाना शाम को आना, दिन भर की दौड़ भाग, पूरे दिन ध्वनि प्रदूषण, वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण के बीच रहकर, हो हल्ला के बीच रहकर मानव स्वभाव से चिड़चिड़ा होता जा रहा है। दूसरों से हर हालात में आगे निकलना चाहता है, अरे अब कितना आगे निकलोगे भाई, आदिमानव से आधुनिक मानव तो बन गए हो, अब इतना भी आगे ना निकल जाओ, की किस उद्देश्य हेतु जन्म लिया, क्या जीवन भर किया, किसका भलाई किया, किसका दुःख काटा, ये सब भूल जाओ।
जो धरा पर जन्म लिया है, उसकी मृत्यु निश्चित है, ये जानते हुए भी हम दिन भर दौड़ते रहते है, दौड़ते रहते है, और समय हमसे तेज दौड़ता है, और अंत में आकर सब कुछ यहीं छोड़ कर वह चला जाता है। उसकी सारी मेहनत, सब मोह माया, सारा धन, सारी सम्पत्ति यहीं रह जाती है, और आने वाली पीढ़ी भी यही करती हैं। जब व्यक्ति मृत्यु शैया पर होता है, वह जीवन भर की बातें सोचता है, लेकिन अंत में उसके पास समय नहीं रह जाता, पश्चाताप करने को, फिर वह काल के गाल में समा जाता है।
आश्चर्य की बात यह है, की ईश्वर हमें समय – समय पर आगाह कराता रहता है, की वह केवल यहां अतिथि बन कर आया है, इसे अपना निजी आवास ना समझे। जब किसी लाश को लेकर शमशान में जाते है, तो कुछ देर के लिए व्यक्ति सोचता है, की क्या है जीवन में? सब कुछ यही रह जाएगा, लेकिन जैसे ही वह घर आता है, फिर मोह माया में फंस जाता है, इससे बाहर निकलने वाले को ही वैरागी कहा जाता है। यह गूढ़ रहस्य बिरले ही समझ पाते है, की सारी दुनिया पर राज करने वाला सिकन्दर भी खाली हाथ गया, अकबर भी खाली हाथ गया, और संसार को ज्ञानामृत देने वाले कबीर, रहीम, और सूरदास भी खाली हाथ गए।
इसीलिए हमें दूसरों को दुख ना देकर दूसरों के सुख में सुख और दूसरों के दुख में दुखी होना चाहिए। सभी से प्रेम करना चाहिए, प्रेम ही जीवन है, यह हमेशा ध्यान में रखना चाहिए। अपने व्यस्ततम जीवन से कुछ क्षण अपने लिए और अपनों के लिए निकलना चाहिए। रिश्तों की कद्र करनी चाहिए, माता-पिता की हमेशा सेवा करनी चाहिए तभी हमारा जीवन सफल होगा।
लेखक~ मुकेश श्रीवास्तव
रिसिया बहराइच उत्तर प्रदेश
Sach ki Dastak
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