कविता – तितली ✍️ लेखक शशिकांत श्रीवास्तव
तितली ______ रंग बिरंगे फूल खिले हैं हरे - भरे इन बागों में कहीं - कहीं पर, बेला -गेंदा तो, कहीं पर, जूही -गुलाब और कहीं पर, चम्पा -चमेली खुशबु अपनी बिखराते हैं उपवन की फिजाओं में इन फूलों पर देखो तो कैसे मंडराती है .... रंग बिरंगी, सुन्दर - सुन्दर ये तितली कभी बैठतीं इन फूलों पर --तो कभी दूर उड़ जातीं हैं बच्चे, बूढ़े देख - देख कर मन ही मन खुश होते हैं उन्हें पकड़ने को --बच्चे दौड़ लगाते उनके पीछे पर वह,तितली कभी हाथ न आती उनके... रंग बिरंगी फूलों पर --देखो कैसे मंडराती है --तितली। । - शशि कांत श्रीवास्तव