हे ! नव संवत् तुम्हारा कोटि अभिनंदन
ब्राह्मा जी ने किया चैत्र में सृष्टि सृजन ।
वर्ष प्रतिपदा का दिन ,चैत्र का महिना
अयोध्या के राम बने राजा दशरथ नंदन ।।
हे ! नव संवत् क्या करुं मैं गुणगान
होय पहले ही दिन शक्ति का आह्वान ।
गुडी पडवा पर चहुंओर विजय ध्वज फहरें
लिए नव उमंग -ऊर्जा ,नव पल्लव - धान ।।
हे ! नव संवत् तुम -सा नही कोई दूजा
इसी दिन विक्रम संवत् चहुंओर गूंजा ।
मंदिर-मंदिर आरती होय दीप जले अखंड
माँ दुर्गा,गणगौर माता की घर-घर होय पूजा ।।
हे ! नव संवत् का अभिनंदन फूल-पलास
पेडों की कोंपल चली,नव पल्लव की आस ।
आमों की बगिया फली कोयल करें पुकार
भौंरा फूलन रस पिये मस्ती भरा चैत्र मास ।।
हे ! नव संवत् दो जन -जन को बुध्दि
परहीत के भावों की हो अनंत वृद्धि ।
मंगलमय हो घर - आंगन , भूमंडल
हो भारत की यश -कीर्ति में अभिवृद्वि ।।
✍ गोपाल कौशल