कोलकाता पोर्ट का नाम नेताजी बोस के नाम पर ही हो –

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____सौम्या शंकर बोस, महासचिव आईएचआरओ, पश्चिम बंगाल 

“नेताजी”, एक ऐसा नाम जो हर भारतीय के अंदर एक अलग भावना का मंथन करता है। एक ऐसा नाम जिसका हर भारतीय के दिल में एक विशेष स्थान है। हमारे आदरणीय “नेताजी” का अवतरण एक प्रतिष्ठित परिवार में सुभाष चंद्र बोस के रूप में हुआ था। उन्होंने ब्रिटिश सरकार से नौकरी का प्रस्ताव मिलने के बावजूद, उन्होंने एक सुरक्षित और भव्य जीवन जीने से इंकार कर दिया और अपने देश को आजाद की जंग लड़ने का फैसला किया ।

 

वह अभी भी हम सब के दिलों में हमारे राष्ट्रीय महानायक के रूप में वास करते हैं।दुर्भाग्य से देश के जिस शीर्ष सम्मान के वह हकदार थे वह सम्मान उन्हें नहीं मिल सका, मिली तो गुमनामी मिली पर वह शख्सियत ऐसी बने की वह कभी किसी के हाथ नहीं लगे और विश्व की सारी ऐजेंसियां उनका सुराग पता लगाने में परास्त हो गयीं। ऐसे महान विभूति के बारे में जितना कहा जाये व जितना लिखा जाये कम ही है। बता दें कि हाल ही में केंद्र सरकार ने घोषणा की है कि कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट का नाम श्री श्यामाप्रसाद मुखर्जी के नाम पर रखा जायेगा।

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि कोलकाता बंदरगाह के दो गदी के नाम पहले ही नेताजी के नाम पर रखे जा चुके हैं क्योंकि नेताजी ने यहां से जहाजों के द्वारा विदेश की यात्राएं की थीं। उन्हें जनवरी 1925 में कोलकाता पोर्ट से ‘मंडलाया जेल’ तक ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा हिरासत में लिया गया था। इसलिए यह निश्चित रूप से उचित है कि कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट का नाम श्री नेताजी के नाम पर ही रखा जाए लेकिन कोलकाता पोर्ट का नामकरण श्री श्यामप्रसाद मुखर्जी के नाम पर रखना कोलकाता पोर्ट के लिए ऐतिहासिक प्रासंगिकता तो कतई नहीं है। यह नाम नाम का बदलाव, श्यामाप्रसाद मुखर्जी और नेताजी दोनों का ही अपमान होगा। गौरतलब है कि श्यामाप्रसाद मुखर्जी स्वंय नेताजी का बहुत सम्मान किया करते थे और आज वह होते तो वह भी कभी नेताजी के नाम के स्थान पर अपने नाम रखने के फैसले का समर्थन कभी नहीं करते।

हम भारत की केंद्र सरकार से यह विनम्र अनुरोध कर रहे हैं कि इस फैसले को एक दूसरा विचार दें। या तो इसे बदल कर नेताजी श्री सुभाष चंद्र बोस जी का नाम दें अन्यथा इसे कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट ही रहने दिया जाए।

पुरानी ऐतिहासिक यादों से छेड़छाड़ करके लोगों के दिल दुखते हैं इससे किसी का भला और विकास नहीं होता। सरकार अपने फैसले पर पुनर्विचार अवश्य करे क्योंकि आज भी कोलकाता और पश्चिम बंगाल के नाम नेताजी श्री सुभाष चंद्र बोस जी के नाम से पूरी दुनिया में रोशन है और यह रोशनी सदा बनी रहनी चाहिए।

अगर सरकार ने हमारी मांग पर पुनर्विचार नहीं किया तो यह आवाज़ जनआंदोलन का रूप ले लेगी क्योंकि कोलकाता पश्चिम बंगाल की जनता और कोई भी सच्चा भारतीय नेताजी का अपमान बर्दाश्त नहीं कर सकता।

इस अहम वार्ता सभा में मौजूद थे आईएचआरओ पश्चिम बंगाल से जनरल सेक्रेटरी सौम्या शंकर बोस, स्टैट प्रैसीडेंट सैय्यद ऐजाज़ अली और सुजन चक्रवर्ती (विधायक), प्रो.प्रसाद रंजन दास (देशबंधु चित्तरंजन दास के भतीजे), देवव्रत रॉय (फॉरवर्ड ब्लॉक से) और श्री सुमेरु चौधरी व अन्य कार्यकर्तागण जिन्होंने सभा के अंत में जयहिंद के नारे से उद्घोष कर सभा का समापन किया।
जयहिंद

Sach ki Dastak

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