इंटरव्यू दस्तक : सिंगर ज्ञानेश कुमार वर्मा

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                                Gyaanesh Verma

                                      Singer/CEO

                            Cherryberry Integrated 

                                   Marketing Pvt Ltd.

                                   MUMBAI & NASHIK

अच्छे गायक बनने के लिये जरूरी है पहले अच्छा इंसान होना।

      – सिंगर ज्ञानेश कुमार वर्मा
(व्यॉयस ऑफ आरडी वर्मन)

 

नमस्कार दोस्तों ! आप सभी जानते हैं कि हमारी भारतभूमि पावन देवी-देवताओं की जननी मानी गयी है | यहाँ की पावन भूमि से न जाने कितने शूरवीरों व समाजसुधारकों व नृत्य, गायन – वादन कलाकारों ने जन्म लेकर अपने सुकर्मों और अपनी सुरीली, मीठी आत्मा को सुकून देने वाली मधुर आवाज़ से देश-दुनियां में अपनी प्रतिभा और पहचान से भारत का नाम सारी दुनियाँ में ऊँचा कर दिखाया। ऐसे ही महान व्यक्तित्वों का जन्म हमारी भारतभूमि को धन्य करता है| इसी कड़ी में हम नाम जोड़ना चाहेगें :

जो देश के बेगद प्रगतिशील औद्योगिक नगर जमशेदपुर (झारखंड राज्य) के गौरव व देश के महान गायक रत्न व बहुमुखी प्रतिभा के धनी सर्वसम्माननीय बेहतरीन शख्शियत आदरणीय श्री ज्ञानेश कुमार वर्मा जी का जो किसी परिचय के मोहताज नही जोकि (व्यॉयस ऑफ आर. डी. वर्मन) के नाम से विश्वविख्यात शख्सियत हैं |

आइये! दोस्तों प्रस्तुत हैं सिंगर ज्ञानेश कुमार वर्मा जी से बातचीत के कुछ अंश –

सवाल – आपका पूरा नाम सर ?

जवाब- मेरा नाम ज्ञानेश कुमार वर्मा, पिता श्री मोहन एवं माता श्रीमती प्रेममयी वर्मा जी।

सवाल- आपके जन्म स्थान व बचपन की कोई सुन्दर याद के बारे में बतायें?

जवाब – मेरा जन्म स्थान है जमशेदपुर (झारखंड राज्य)। हमारे पिताजी भारतीय रेल मे कार्यरत थे। सो बचपन में समय- समय पर उनके तबदला होने के कारण भारत भ्रमण में ही गुजरा। ग़ाने का शौक बचपन से ही था।  पारिवारिक उत्सवों मे गीत गाते- गाते कभी कभार दुर्गा पूजा आदि मौकों पर स्टेज पर भी  गाने का अवसर मिलता था लेकिन चूंकि परिवार में पढ़ाई लिखाई को ज्यादा महत्व दिया जाता था। ज्यादा कुछ करने की उम्मीद नही थी। एक बार मैं बिना पर्मिशन लिये के एक स्टेज प्रोग्राम में हिस्सा लेने चला गया। वहां “एक रास्ता है जिंदगी” और “चांद जैसे मुखड़े पे बिंदिया सितारा” गीत पेश किया। बाल कलाकार के रूप में गाया हुआ मेरा गीत बेहद हिट रहा। आयोजकों ने मुझे नगद 101/- पुरस्कार देने का तय किया। मैं भी खुश लेकिन बिजली तो तब गिरी सर पर जब मुझे पुरस्कार देने के लिये उस जगह के रेलवे ऑफिसर होने के नाते,  मेरे ही पिताश्री मुख्य अतिथि बन कर मंच पर आये। उन्हें देखकर मैं तो कन्नी काट कर भागने लगा लेकिन आयोजकों ने जबरन स्टेज पर चढ़ा दिया लेकिन प्रसन्नता में मन भर उठा जब पिताजी ने अपनी तरफ से 50/- रुपये और दिये और कहा “वेल डन” पर घर पर बता कर क्युं नही आये बेटा? अगली बार ऐसी गलती मत करना। इसके बाद से घर पर भी मुझे ज्यादा कुछ बोला नही गया बल्कि काफ़ी तारीफ़ हुई। शायद यही मेरी सफलता की पहली सीढ़ी थी।

 सवाल- आपको संगीत/गाने का सुरूर कब चढ़ा?

जवाब – संगीत का शौक बचपन से रहा। घर में मुझे से पहले मेरे बड़े भाई पारिवारिक समारोहों में गीत गाया करते थे और माताजी भी घरेलू स्तर पर अच्छा गाया करती थी। गाने का सुरूर तब चढ़ा जब मैं स्कूल में था। तब सभी प्रतियोगिताओं मे भाग लेता था और पुरस्कार अर्जित करता था। क्लास 6 के बाद से ही मैं केंद्रीय विद्यालय वायूसेना नगर नागपुर में हॉस्टल में रह कर पढ़ा। हॉस्टल और स्कूल के हर कार्यक्रम में मुझे आगे कर दिया जाता था। जिससे मुझे काफी प्रोत्साहन मिला। वहा संगीत के साथ – साथ खेल कूद और पढ़ाई मे हमेशा आगे ही रहने की कोशिश रही। बास्केटबाल में मैने नेशनल स्तर तक खेला तथा 1987 में अपने स्कूल का स्कूल कैप्टन भी बना।  आज भी मेरे स्कूल के दोस्त मुझे एक गायक के नाम से ही जानते हैं।धीरे- धीरे कॉलेज स्तर पर भी यही चलता रहा। 1994 से 2007 के दरम्याँ मैंने भारत में लगभग हर बडे शहर में अपने शो किये। यह कह सकता हूँ की उम्र के 8 साल से यह संगीत की समीपता शुरू हुई और आज तक है। दिन पे दिन बढ़ती ही जा रही है।

सवाल- आपको इस फील्ड में आये कितना समय हो गया और आपका इस फील्ड में क्या संघर्ष रहा?

जवाब- व्यवसायिक तौर पर मैं 1993 से स्टेज से जुड़ा हुआ हूं। अखिल भारतीय गंधर्व महविद्यालय पुणे से मैंने शाश्त्रीय संगीत मे “संगीत विशारद” की डिग्री हासिल किया।

संघर्ष तो बहुत ज्यादा रहा। कायस्थ परिवार की होने के कारण पढ़ाई का विशेष प्रेशर रहा।1993 तक मैंने बी कॉम, एल एल बी, तथा कम्पनी सेक्रेटरी की डिग्री हासिल की तथा, 2008 में पुणे सिमबायोसिस से एम बी ए की डिग्री भी हासिल की। पढ़ाई और संगीत दोनों का समन्वय वो भी व्यवसायिक स्तर पर करना बहुत मुश्किल था। उपर से संगीत के क्षेत्र में एक से बढ़ कर एक गायक थे। बहुत ज्यादा कम्पटीशन था। फिर भी मैं अपने पढ़ाई और नौकरी के साथ- साथ अपने गायन को हमेशा जागृत रखा। कई बार बिना किसी मेहनताना के पैसे लिये बगैर और अपने जेब से पैसे लगा कर कार्यक्रम किया। बार – बार लगातार आयोजकों और साथी कलाकरों ने मौका पाकर मुझे धोखा दिया और मेरे पैसे निगल गये। प्रतियोगिताओं  में पैसे लेकर पुरस्कार के होड मे शामिल न हो पाया क्योंकि मुझे अपने आप पर भरोसा था। संगीत में कुछ कर गुजरने कि मेरी चाहत, मुझे अपने मार्ग से डिगा ना सकी।संगीत के क्षेत्र में अपना नाम बनाने में बहुत समय लगता है तथा संयम से काम लेना होता है। आज लगभग 25 वर्षों के सफर की बाद मैं अपना एक मुकाम बना पाने मे सक्षम हुआ हू।

सवाल- आपको अपनी लाईफ में व संगीत लाईन में सबसे ज्यादा सहयोग किसका मिला?

जवाब- मेरे जीवन में सबसे ज्यादा सहयोग मुझे अपने मां पिताजी जी से मिला और ईश्वर की कृपा से आज भी मिल रहा है। व्यक्तिगत जीवन में बहुत सारी विपरीत परिस्थितिया आयीं और मेरे धैर्य का बांध टूटने ही लगा, पर पारिवारिक सहयोग से मुझे बहुत बल मिला। संगीत में मेरी गुरु श्रीमति आनंद्वल्लि नटराजन, श्री चंदन सर और मध्य भारत की ख्यात नाम संस्था मीरा नृत्य निकेतन कि निदेशक श्रीमती मीरा चंद्रशेखरण का आभार मैं जीवन भर शब्दों से व्यक्त ना कर पाउंगा।आज मैने जो कुछ भी स्थान पाया है, सिर्फ अपने गुरुओं के बदौलत पाया है।व्यवसायिक तौर पर फिल्म इंडस्ट्री के अनेक कलाकारों ने समय- समय पर बहुत सहयोग दिया।

सवाल –  आप के फेवरेट सिंगर कौन हैं।

जवाब – मेरे फेवरेट सिंगर है श्री कैलाश खेर जी और जनाब मुहम्मद रफी साहब जी। कैलाश खेर जी के साथ मैंने 2-3 ईवेंट किये हैं।वह गाते तो अच्छा हैं हीं, साथ ही जमीन से जुड़े नेक इंसान हैं तथा हर किसी के साथ उनका इंसानियत भरा व्यवहार है। मेरी भी ऐसी सोच है कि बड़ा कलाकार बनना ही काफ़ी नही है बल्कि इसके साथ-साथ बडप्पन होना भी जरूरी है और रफ़ी साहब इसलिये क्योंकि उनकी आवाज़ मुझे उनके रूह की आवाज़ लगती है।

सवाल –  आप अभी तक कितने शो कर चुके हैं और आपकी उपलब्धियों अवार्ड के बारें में बतायें सर?

जवाब- शुरुवात सुगम संगीत, भजन संध्या और गीत गजल के कार्यक्रमों में दुसरों के साथ गायन किया करता था। तत्पश्चात आज तक भारत में करीब 1800 के आसपास मैं अपने संगीत के कार्यक्रम कर चुका हूं। तथा बहुत ही जल्द अपनी टीम के साथ अमेरिका और 20 अन्य देशों मे अपने संगीत के कार्यक्रम प्रस्तुत करने के लिये चयनित हुआ हूँ। ये कार्यक्रम भारत सरकार के द्वारा प्रयोजित किये जा रहे हैं। स्कूल और कॉलेज स्तर पर मैने अनेक प्रतियोगिताओं में पुरस्कार प्राप्त किये हैं। मुझे संगीत के क्षेत्र में विदर्भ मित्र पुरस्कार, व्यॉयस ऑफ कार्पोरेट वर्ल्ड, मुहम्मद रफ़ी पुरस्कार, तथा इंडियन मेडिकल एसोसिएशन द्वारा स्किल सेल प्रोजेक्ट के लिये विशेष पुरस्कार मिले।

सवाल – संगीत के क्षेत्र में आप एक जाना माना नाम है सभी आपको व्यॉयस ऑफ आर डी वर्मन कहते हैं, क्या कहना चाहेंगे?

जवाब – मैं इस लायक तो नहीं सचमुच पर मेरे सभी शुभचिंतकों और प्रशंसकों का मेरी गायकी के प्रति जो प्रेम और सम्मान है। जिसके के लिए मैं आप सभी का तहेदिल से शुक्रिया अदा करता हूँ।

सवाल-   जीवन में क्या सपना है आपका ?

जवाब- संगीत के क्षेत्र में अच्छे काम करना और एक ऐसा मुकाम प्राप्त करना कि मुझे इस दुनिया से जाने के बाद, लोग मुझे मेरी आवाज़ और भारतीय संगीत के प्रति समर्पण के लिए याद रखे।

सवाल- खुद को एक लाईन में कैसे परिभाषित करेगें ?

जवाब- मैं “संगीत साधक जो “जीयो और औरों को जीने दो” के सिद्धांत का अनुसरण करता हूँ। ”

सवाल – युवा सिंगर जो म्यूजिक सिंगिंग फील्ड में आना चाहते हैं या संघर्ष कर रहे हैं उन्हें आप क्या मेसेज देना चाहेगें?

जवाब- सबसे पहले ये कहना चाहूंगा कि अपने मन में संयम रखें क्योंकि सफलता हासिल करने का कोई  भी शोर्ट्कट ना लें।संगीत की बेसिक शिक्षा या ट्रेनिंग अवश्य लें और अपने कला के प्रति ईमानदारी रखें। संगीत का मुख्य ध्येय है अपने कला के द्वारा लोगों के मन को छूना। अगर एक कलाकार के मन में गर्व, गुमान, अभिमान आ जाये तो देर सबेर उसकी कला पर ग्रहण लग जाता है।सो अपनी कला सृजन के साथ- साथ अभिमान को पास फटकने न दें। अच्छा गायक बनने के लिये अच्छा इंसान होना बहुत जरूरी है क्योंकि संगीत आत्मा की सुगंध है।

 

कवरेज –

ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना

न्यूज ऐडीटर सच की दस्तक

Sach ki Dastak

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