क्या रिश्ता है मीना कुमारी और गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर में
सच की दस्तक डिजिटल न्यूज डेस्क वाराणसी
बृजेश श्रीवास्तव मुन्ना (फिल्म समीक्षक )
हिंदी सिनेमा में ट्रेजडी क्वीन के ख़िताब से नवाजी गई मीना कुमारी एक ऐसी महान अदाकारा थी जो पहले पर्दे पर बिना कोई डायलॉग बोले ही अपनी बड़ी-बड़ी नशीली आंखों की हरकतों और फड़फड़ाते सुर्ख लाल लबों से ही बड़ी आसानी से हालेदिल बयां कर देती थी। मीना कुमारी एक ऐसी अदाकारा थीं जिनके सामने एक्टिंग करते वक्त बड़े-बड़े अभिनेता अपने डायलॉग और एक्टिंग भूल जाया करते थे। लेकिन क्या आप जानते हैं कि पैदा होते ही अपने पिता द्वारा यतीमखाने की सीढ़ियो पर छोड़ दी जाने वाली….. अपने घर परिवार की दाल-रोटी चलाने के लिए महज 4 साल की छोटी उम्र से ही फिल्मों में काम करने वाली…. अदाकारी के साथ-साथ कई फिल्मों में अपनी आवाज में गाना गाने वाली….. बड़ी होकर अपने दिलकश और बेमिसाल अदाकारी के दम पर “ट्रेजडी क्वीन” का खिताब हासिल करने वाली….. महज 19 साल की उम्र में अपने से लगभग दुगने बड़े और पहले से ही शादीशुदा-कई बच्चों के पिता से दिल लगाने वाली…. प्रेमी से पति बने शक़्क़ी इंसान की तमाम बंदिशों में घुट-घुट कर जीने वाली….. पति, फिर प्रेमी और सभी अपनों से धोखा खाने वाली…..ताउम्र सच्ची मोहब्बत को तरसने वाली….. “नाज” नाम से बेमिसाल शायरी लिखने वाली…. शराब की बुरी लत लगने के कारण लीवर की बीमारी से जूझने वाली…. और जीवन के अंतिम समय में अस्पताल में फीस नहीं चुका पाने से कारण एक लावारिस लाश के रूप में मरने वाली….. फिल्म “पाकीजा” की महान अदाकारा मीना कुमारी का….. भारत और बांग्लादेश का राष्ट्रगान लिखने वाले…. भारत का पहला नोबेल पुरस्कार पाने वाले…. शांतिनिकेतन की स्थापना करने वाले…. विश्वविख्यात कवि गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर से क्या रिश्ता था…..???
टैगोर परिवार की एक शाखा कोलकाता में हुबली नदी के किनारे पाथुरिया घाट में रहती थी। टैगोर परिवार की इस शाखा को पाथुरिया घाट ठाकुरबाड़ी कहा जाता था। टैगोर परिवार की दूसरी शाखा जोड़ासांको में रहती थी जिसे जोड़ासांको ठाकुरबाड़ी कहते थे। जोड़ासांको ठाकुरबाड़ी में द्वारिकानाथ टैगोर, देवेंद्रनाथ टैगोर और उनके पुत्र रविंद्रनाथ टैगोर रहते थे। जोड़ासाँको ठाकुर बाड़ी में रहने वाले टैगोर परिवार के लोग पाथुरिया घाट के टैगोर परिवार के प्रत्यक्ष वंशज थे। रविंद्रनाथ टैगोर के समय में पाथुरिया घाट में रहने वाले टैगोर परिवार के सदस्य रविन्द्रनाथ टैगोर के दूर के चचेरे भाई लगते थे। पाथुरिया घाट के दर्पणनारायण टैगोर के परपोते और रविंद्रनाथ टैगोर के दूर के चचेरे भाई थे जदुनंदन टैगोर। कहीं-कहीं इनका नाम सुकुमार टैगोर भी मिलता है। जदुनंदन टैगोर को पारसी थिएटर में काम करने वाली और प्रगतिशील विचारों वाली एक लड़की हेमसुंदरी मुखर्जी से प्यार हो गया। पर टैगोर परिवार को यह रिश्ता मंजूर नहीं था। यदुनंदन टैगोर ने अपने टैगोर परिवार की इच्छा के खिलाफ जाकर हेमसुंदरी मुखर्जी से विवाह कर लिया और हेमसुंदरी मुखर्जी बन गई हेमसुंदरी टैगोर। पर किस्मत को तो कुछ और ही मंजूर था। कुछ समय बाद ही जदुनंदन टैगोर की अकस्मात मृत्यु हो गई और हेमसुंदरी टैगोर युवा विधवा बन गई। टैगोर परिवार ने विधवा हेमसुंदरी को अपनाने से इंकार कर दिया। उस जमाने में विधवाओं को अत्यंत कठिन और अमानवीय नियमों-बंधनों का पालन करना पड़ता था। इन नियमों-बंधनो के साथ बाकी का विधवा जीवन समाज से तिरस्कृत-बहिष्कृत हो घुट-घुट कर जीना पड़ता था। प्रगतिशील विचारों वाली हेमसुंदरी टैगोर ने साहस का परिचय देते हुए सदियों पुराने इन रीति रिवाज और मान्यताओं पर सवाल उठाया। उन्होंने एक आम औरत की तरह आजादी के साथ जीवन जीने का साहसिक फैसला किया। हेमसुंदरी टैगोर कोलकाता छोड़कर मेरठ आ गई और नर्स के काम की ट्रेनिंग लेकर एक अस्पताल में नर्स का काम करने लगी। मेरठ में नर्स का काम करते-करते हेमसुंदरी की मुलाकात मेरठ में रहने वाले भारत के सबसे पहले उर्दू पत्रकार और मशहूर उर्दू कवि लेखक मुंशी प्यारेलाल शाकीर मेरठी से हुई। प्यारेलाल शाकीर की रचनाएं उस जमाने में प्रसिद्ध उर्दू पत्रिका “जमाना” और कई अन्य पत्रिकाओं में छपती थी। इसके साथ वे कई पत्रिकाओं का संपादन भी करते थे जैसे तौफा ए सरहद, सदा ए बशीर, अदीब इत्यादि। आगे चलकर इन्होंने गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर की बायोग्राफी का उर्दू में अनुवाद किया था।
हेमसुंदरी और प्यारेलाल शाकीर में दोस्ती हुई, प्यार हुआ और फिर दोनों ने शादी कर ली। प्यारेलाल शाकीरा जन्म से ईसाई थे इसलिए हेमसुंदरी जो बंगाली थी ने शादी के बाद ईसाई धर्म अपना लिया, वे क्रिश्चियन बंगाली हो गयीं।
हेमसुंदरी और मुंशी प्यारेलाल शाकीर मेरठी से दो बेटियां हुई। इनमें से एक बेटी का नाम था प्रभावती देवी।
बचपन से ही प्रभावती देवी को संगीत का बड़ा शौक था। इनका गला बेहद सुरीला था। वे अच्छा गाती और नाचती थी। फिल्मों में काम करने का सपना लिए हेमसुंदरी अपने परिवार के साथ मुंबई आ गई। उनकी बेटी प्रभावती देवी बचपन से ही अच्छा नृत्य करती थी इसलिए मुंबई जैसे महानगर में घर का खर्च चलाने के लिए वे स्टेज शो करने लगी और “कामिनी” नाम से फेमस स्टेज डांसर-स्टेज परफॉर्मर बन गई। इसके साथ साथ वे स्टेज पर एक्टिंग भी करने लगी। स्टेज पर डांस परफॉर्म करते-करते प्रभावती देवी उर्फ कामिनी की जान-पहचान पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के भेड़ा शहर से आकर मुंबई में रहने वाले पठान सुन्नी मुसलमान मास्टर अलीबख्श से हो गई। मास्टर अलीबख्श म्यूजिक टीचर-म्यूजिक कंपोजर थे और पारसी थियेटर में हारमोनियम बजाया करते थे। वे साइलेंट (मूक) फिल्मों में छोटे-मोटे रोल भी करते थे। इसके साथ-साथ अलीबख्श उर्दू में कविताएं भी लिखते थे। प्रभावती देवी उर्फ कामिनी को पहले से ही शादीशुदा सुन्नी पठान अलीबख्श से प्यार हो गया। दोनों ने शादी कर ली। प्रभावती देवी उर्फ कामिनी मास्टर अलीबख्श की दूसरी बीवी बन गई। क्योंकि अलीबख्श मुस्लिम थे इसलिए बंगाली क्रिश्चियन प्रभावती देवी ने इस्लाम धर्म कबूल कर लिया और अपना नाम रखा इकबाल बेगम।
अपने पति मास्टर अलीबख्श की तरह ही इकबाल बेगम साइलेन्ट फिल्मों में छोटे-मोटे रोल करने लगी। इन्होंने फिल्म ससुराल, बहन, देशद्रोही में भी साइड रोल किया। इनकी आवाज सुरीली थी इसलिए कई फिल्मों में गाना भी गाया। अलीबख्श ने फिल्म शाही लुटेरे में संगीत दिया था।
बातों-बातों में आपको बताते चलें कि मीना कुमारी की नानी हेमसुंदरी ने 1942 में महबूब खां फिल्म “रोटी” में छोटी सी भूमिका की थी। इस फिल्म में हेमसुंदरी ने सेठ लक्ष्मीदास का किरदार करने वाले अभिनेता चंद्रमोहन की मां की भूमिका अदा की थी।
प्रभावती देवी उर्फ कामिनी उर्फ इकबाल बेगम और अलीबख्श ने पहली संतान के रूप में एक बेटी को जन्म दिया जिसका नाम रखा गया खुर्शीद।
अपनी अगली संतान के रूप में अलीबक्श को बेटा होने की उम्मीद थी पर 1 अगस्त 1933 को दूसरी संतान के रूप में एक बेटी का जन्म हुआ। इस बेटी का नाम रखा गया महजबीं बानो, जो आगे चलकर महान अदाकारा और ट्रेजडी क्वीन मीना कुमारी बनी। मीना कुमारी को घर वाले प्यार से “मुन्ना” कहकर पुकारते थे। आपको बताते चलें कि महानायक अमिताभ बच्चन के घर वाले भी उनको प्यार से “मुन्ना” कह कर बुलाते थे।
तीसरी संतान के रूप में फिर एक बेटी हुई जिसका नाम महलेका उर्फ माधुरी उर्फ मधु रखा गया।
इस तरह मीना कुमारी कुल तीन बहने थीं….. सबसे बड़ी बहन खुर्शीद बानो, उसके बाद महजबीं बानो उर्फ मीना कुमारी और सबसे छोटी महलेका उर्फ माधुरी या मधु।
इस तरह हम देखते हैं की हिंदी सिनेमा की महान अदाकारा मीना कुमारी का रिश्ता विश्वविख्यात कवि, दार्शनिक, साहित्यकार गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर से था। मीना कुमारी की नानी हेमसुंदरी रविंद्रनाथ टैगोर के परिवार की बहू थीं।
यह खानदानी गुण ही था की अदाकारी में अपना बेहतरीन जलवा दिखाने वाली मीना कुमारी ने “नाज” नाम से बेहतरीन शायरी भी लिखी। क्योंकि वे बंगाल के महान साहित्यिक परिवार टैगोर परिवार से जुड़ी थी….. उनके नाना प्यारेमोहन शाकीर मेरठी भी उर्दू के बहुत बड़े शायर थे और पिता अलीबख्श भी उर्दू में शायरी लिखा करते थे।