सरकारी कॉलोनियां ‘पात्र’ को नहीं मिल पा रहीं? 

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सरकार की योजनाओं की स्याह हकीकत : सरकारी कॉलोनियां ‘पात्र’ को क्यों नहीं ? 
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सत्य पर श्रद्धा रखने वाले आप सभी शुभचिंतकों को नमस्कार है🙏आज मिलवाती हूं आपको आनंदी देवी से जिनसे बात करके पता चला कि सरकारी योजनाओं का लाभ आज भी पात्र को नहीं बल्कि कुपात्रों का भरपूर मात्रा में दिलाया जा रहा है। यहीं बात सरकार की योजनाओं के क्रियान्वयन की पोल खोल कर रख देती है जब हम आनंदी जैसे लोगों से रूबरू होते हैं। चलिए बताते हैं कि आनंदी कौन है? आनंदी भारतवर्ष की वह गरीब मजबूर महिला है जिसका पूरा जीवन किसानी और मजदूरी में निकल गया। आनंदी के पति जिनकी आखों का आप्रेशन हो चुका है वो भी उसने किस मुसीबत से लोगों से कर्ज मांग कर करवाया होगा ये तो उसकी ही आत्मा जानती हैं। आनंदी के चार-पांच बच्चे हैं कि शायद कोई तो कुछ बनेगा पर गरीबी उसके बच्चों के सपने तक लील चुकी है। आनंदी आज बैंक से कुछ रूपये निकालने आयी थी क्योंकि उसका बच्चा बहुत बीमार था। आनंदी ने बैंक में दूसरों से फार्म भरवाकर मांग की पांच सौ रूपये निकालने हैं। बैंक के बाबू ने जैसे ही आनंदी की पासबुक देखी तो बोले तुम्हारे खाते में मात्र चौदह रूपये हैं जाओ। आनंदी बैंक में पड़ी कुर्सियों पर नहीं बल्कि जमीन में बैठ रो पड़ी और मायूसी से जाने लगी। हाँ वो झोली फैलाकर अपने बच्चे के लिए मदद मांग सकती थी पर साहिब वो गरीब थी भिखारी नहीं…!
मैं आकांक्षा, उस खुद्दार महिला को यूँ जाता नहीं देख सकती थी। मैंने उसे आवाज दी। वह मेरे पास आयी और जमीन पर बैठने लगी। मैंने कहा यह बैंक हैं यहां कुर्सियां पड़ी हैं कुर्सी पर बैठो। बाकि आस पास बैठे लोग शायद उसे जानते थे, यह सुनकर अजीब नजरों से देखने लगे। मैंने उसका हाथ पकड़ा और उसे कुर्सी पर बैठाया और पूछा, कि क्या बीमारी के सरकार की आयुष्मान वगैरह स्वास्थ्य योजनाओं का लाभ नहीं मिलता आपको? वह कुछ बोलती कि पास में बैठी महिला का चेहरा ऐसा फक्ख हो गया जैसे मैंने कोई पाप कर दिया हो।
मैंने आनंदी से कहा, मेरी तरफ देखो और बोलो तो वह बोली यह आयुष्मान का क्या होता है बिटिया? नहीं मुझे कोई योजना का कोई लाभ नहीं…? हम दोनों को बात करते देख, वहां कुछ लोगों ने बुरा मुँह बनाकर हमें गेट की तरफ जाकर बात करने का इशारा किया। हमने सोचा हां बैंक की मर्यादा का पालन करना चाहिए। हमने आनंदी का हाथ पकड़ा और कहा चलिये बाहर चलकर सुकून से बात करते हैं। बाहर बैंक की सीढ़ियों पर बैठकर आनंदी झिझक रही थी। मैंने उनके हाथ में हाथ रखकर उनके कंधे पर हाथ रखकर कहा, निसंकोच अपनी समस्या बता दीजिए।चलिये ये बताइये आप किस गांव से हैं। 
यह सुनकर उसका गला रूंध आया था। वह बोली कि मेरा नाम आनंदी देवी है  मुझे पढ़ना लिखना नहीं आता और मेरा गांव रहमापुर जिला औरैया उत्तर प्रदेश, पोस्ट दरबटपुर, पति का नाम मूलचंद है जिन्हें आँखों से साफ नहीं दिखता। मेरे तीन लड़का, चार बिटिया हैं और मेरी दो महीने से दस साल की बच्ची बिमार है… बिटिया मुझे आज तक सरकार की कोई भी मुफ्त इलाज की योजना का कोई लाभ नही मिला। हम सब कच्ची मढैया में बड़ी मुश्किल से गुजर बसर कर रहे हैं, अभी तक सरकारी कॉलोनी का भी लाभ नही मिला…सिर्फ़ कच्ची एक बीघा जमीन है जिसमें हमसब और भी जगह मजूरी करके इज्ज़त की दो रोटी खा रहे हैं। वो मढैया में भी आधे में देवरानी का परिवार रहता है, वो मढैया भी मेरी नहीं है। बड़ी मुसीबत से गुजर बसर हो रही है, कहां जायें समझ नहीं आता। हाँ रिश्वत देने के लिये होती तो मुझे भी कॉलोनी मिल जाती। बिटिया खाने को नहीं तो देने को कहां से लाऊँ। मैंने कहा तुम्हारे गांव प्रधान का नाम क्या है? तो वह थोडा डरते हुए बोली मेरे गांव के प्रधान का नाम स्वामी दीन मास्टर..।
फिर हाथ जोड़कर बोली बिटिया आप मुझे कॉलोनी दिलवाने में मदद कर दो, करवा दो, सरकार तक मेरी पुकार पहुंचा दो बस। 
मैंने कहा, ”पूरा प्रयास करूगी”। 
फिर मैंने कहा वहां अंदर आप जमीन पर क्यों बैठ रही थीं क्या स्वाभिमान नहीं है आप में, यहां आप क्या उन सब जैसे इंसान नहीं हो? वह एक टक मुझे देखकर चुप थी.. हो भी क्यों ना.. हम इंसानों ने इंसानों को ही अमीर गरीब और ऊँच नीच में बांट डाला जबकि परमात्मा की बनायी हर कृति ऊँच ही है सर्वश्रेष्ठ ही है। नीच तो वो लोग होते हैं जिनके विचार नीचे होते हैं जो बलात्कारी होते हैं, जो देश के गद्दार होते हैं, जो आंतकी होते हैं यह होते हैं नीच। बस यही बात हमारे समाज को समझनी होगी कि क्या हम हमारी सोच को स्वस्थ नहीं बना सकते। क्या हम सत्य बोलने, सत्य लिखने और सत्य दिखाने की हिम्मत नहीं कर सकते।
बात आती है सत्य दिखाने वाले तथाकथित कुछ टीवी न्यूज चैनल की जिन्हें सिर्फ़ अपनी टीआरपी से मतलब होता है बाकि कुछ भी हो। तो जाइये महानुभावों अपनी बड़ी सी कार छतरी कैमरा आदि लेकर जाइये और दिखा डालो आनंदी की कच्ची मढैया (झोपड़ी), दिखा दो उसका फटा गद्दा, दिखा दो उसके बच्चों को अर्धनग्न, दिखा दो उसके पति का अंधापन, दिखा दो उसके घर के फूटे बर्तन और चूल्हा.. दिखा दो एक मढैया में सात आठ लोग कैसे रहते हैं.? गर्मियों की आग और बरसात और शर्दियों का पाला और तुसार कैसे सहते हैं? दिखाडालों सबकुछ, खींचों गरीबी की तस्वीरें पर वादा करो कि इन तस्वीरों को इतिहास और भूगोल बदलने का पूरा प्रयास करवाओगे? या फिर गरीबों की गरीबों का मजाक ना उड़ाओगे… खैर! आप जाओ जरूर.. और उन सब गांवों में जाओ और रखो वास्तविकता को जो कि दिखाना भूलते जा रहे हो। सिर्फ़ डिबेट दिखाकर चिल्मचिल्ली दिखाकर खुद को पत्रकार कहने और होने का ढ़ोल पीटना बंद करो। रही बात आनंदी जैसे लाखों पात्र लोगों की जिन्हें अब तक सरकारी कॉलोनियां नहीं मिल सकीं हैं तो अब आनंदी जैसों को जागना होगा और गांव के प्रधान और सरकार के सामने आँख से आँख मिलाकर अपना हक मांगना ही होगा। जब तक गरीब स्वंय सामने आकर अपनी चुप्पी नहीं तोड़ेगा यहां कुछ भी होने वाला नहीं है..? तो हे! आनंदी आप जागो और अपने हक की बुलंद आवाज़ उठाओ आपकी यह बिटिया आकांक्षा आपके साथ है आपके हौंसले से मिला आपका हक लिखने को आपकी जीत लिखने को, आपकी यह आकांक्षा तत्पर है।  अंत  में  हाथ जोड़कर शासन और प्रशासन से विनम्र प्रार्थना करतीं हूँ कि कॉलोनियों में हो रहे जबर्दस्त फर्जीवाड़े का संज्ञान लेने की कृपा करें और सम्बंधित जोड़तोड़ घूसखोर लोगों पर सख्त कार्रवाई करें जिससे वास्तविक गरीब (पात्रों) को उनका हक मिल सके और सरकार की योजनाओं की किरकिरी होने से बच सके क्योंकि योजनाएं तभी फलीभूत होगीं जब वह पात्रों तक पहुंचे। 
-ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना
न्यूज ऐडीटर सच की दस्तक 

Sach ki Dastak

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