कैसी न्याय व्यवस्था साहब? ✍️हर्ष श्रीवास्तव “चंचल”
ट्विंकल बेटी से हैवानियत पर आक्रोश भरी एक कविता द्वारा हर्ष श्रीवास्तव “चंचल”
कैसी न्याय व्यवस्था साहब?
कैसा ये कानून?
ढाई साल की बच्ची थी वो
बहा जिस्म का खून😢
कैसी न्याय तंत्र हैं साहब?
कैसा हैं ये शासन?
तीन दिवस बीते घटना को
ढुलमुल रहा प्रशासन?
कब तक जुल्म सहेंगी बेटी?
कब तक दोगे न्याय?
कानून की आड़ में साहब
करो न अब अन्याय।
उस दिन ताला टूटेगा क्या
संविधान की पेटी का?
जिस दिन जिस्म निचोड़ा जाएगा
नेताओं की बेटी का?
गई निर्भया, गई ये ट्विंकल
जिम्मेदार हैं कौन?
बलात्कार की इस घटना पर
दिल्ली क्यों हैं मौन?
कब तक जाहिद की जल्लादी
सहन करेगा देश?
डरी हुई हैं हर माँ-बेटी
डरा हुआ परिवेश?
आखिर कब तक पहन चूड़ियाँ
रहोगे तुम सब मौन?
आने वाले समय में भाई
कन्या जनेगा कौन?
दो दिन तक खूब दीप जलेगा
अर्पण करोगे फूल।
इस घटना को भी बेशर्म बन
जाओगे क्या भूल?
पापी को फाँसी दो या फिर
भीड़ में उसको मुक्त करो।
जीभ काट लो कुत्ते की या
अपराधी उन्मुक्त करो।
तुमसे न्याय नहीं होता तो
हमें दिलाना आता हैं।
सुअर को मलमूत्र मिलाकर
हमें पिलाना आता हैं।
ऐसे वहशी को कब तक तुम
दिन-दिन सहते जाओगे?
कब खुलकर तुम न्याय करोगे?
कब इसको लटकाओगे?
कब तक पापी के जिस्मों को
टुकड़ों में कटवाओगे?
कब तक न्याय करोगे साहब?
कब तक और रुलाओगे?
कितना बदन ढकूँ बेटी का
क्या मैं इसे ओढ़ाऊँ?
ढाई साल की बेटी को
क्या साड़ी मैं पहनाऊँ?
कितनी बेतुकी बातें हैं
बातों का क्या कहना?
बेटी की इज्जत होती हैं
बेटी का एक गहना?
आज फ़ैसला हो जाने दो
आर करो या पार।
या हत्यारे को फाँसी दो
या पब्लिक की मार।
मत छोड़ो किसी जाहिद को
पोतो कालिख रंग।
करके नँगा चौराहों पर
नोच लो इनके अंग।
सजा भयंकर हो इतनी कि
देख रौंगटे काँपे।
ताकि भविष्य में कोई ट्विंकल
तड़प के ना रूह त्यागे।
छूट ना पाए वहशी कोई
जेहन में यह बात रहे।
जो पापी की करे वकालत
उसका वह दिन अंत रहे।
जो पापी की करे सुरक्षा
उसको भी खल्लास करो।
आँख नोच लो सुअर की
और उसका भी हिसाब करो।
कैसी न्याय व्यवस्था साहब?
कैसा ये कानून?
ढाई साल की बच्ची थी वो
बहा जिस्म का खून😢