यहां से शुरू हुआ – नक्सलवाद और आज बना आतंकवाद का पर्याय –

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महाराष्ट्र के गढ़चिरौली पुलिस के एक नक्सल विरोधी दस्ते C-60 के 16 जवान बुधवार 1मई 2019 यानि आज  एक बारूदी सुरंग विस्फोट में शहीद हो गए हैं। बताया जा रहा है यह आईईडी ब्लास्ट गढ़चिरौली जिले के दादापुर रोड पर हुआ है। महाराष्ट्र के मंत्री सुधीर मुंगतीवार ने कहा कि गढचिरौली में हुए नक्सली हमले में 15 जवान और एक ड्राइवर समेत 16 लोग शहीद हो गये। बताया जा रहा है कि विस्फोट आज दोपहर हुआ जब जवान क्षेत्र में एक ऑपरेशन पर निकले थे। सुरक्षा बलों के दो वाहन जब नागपुर से लगभग 250 किलोमीटर दूर स्थित कोच्चि की ओर दादापुर रोड से गुजर रहे थे, तो नक्सलियों ने आईईडी विस्फोट कर दिया।

2009 से 2019 अब तक हुए आठ बड़े नक्सली हमलों में कम से कम 200 जवान शहीद हो चुके हैं जोकि बेहद गम्भीर बात है।

28 अप्रैल 2019
छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बीजापुर जिले में नक्सलियों ने पुलिस जवानों पर हमला किया। हमले में दो पुलिस जवान शहीद हो गए तथा एक ग्रामीण गंभीर रूप से घायल हो गया है।

19 मार्च 2019
छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में सोमवार को हुए नक्सली हमले में उन्नाव के रहने वाले सीआरपीएफ जवान शशिकांत तिवारी शहीद हो गए। घात लगाकर हुए इस हमले में पांच अन्य लोग घायल भी हो गए।

24 अप्रैल 2017
छत्तीसगढ़ के सुकमा में लंच करने को बैठे जवानों पर घातक हमला हुआ जिसमें 25 से ज्यादा जवान शहीद हो गए। पूरी खबर के लिए क्लिक करें

1 मार्च 2017
सुकमा जिले में अवरुद्ध सड़कों को खाली करने के काम में जुटे सीआरपीएफ के जवानों पर घात लगाकर हमला कर दिया। इस हमले में 11 जवान शहीद हो गए और 3 से ज्यादा घायल हो गए।  

11 मार्च 2014
झीरम घाटी के पास ही एक इलाके में नक्सलियों ने एक और हमला किया। इसमें 15 जवान शहीद हुए थे और एक ग्रामीण की भी इसमें मौत हो गई थी।

12 अप्रैल 2014
बीजापुर और दरभा घाटी में आईईडी ब्लास्ट में पांच जवानों समेत 14 लोगों की मौत हो गई थी। मरने वालों में सात मतदान कर्मी भी थे। हमले में सीआरपीएफ के पांच जवानों समेत एंबुलेंस चालक और कंपाउंडर की भी मौत हो गई थी।

दिसंबर 2014
सुकमा जिले के चिंतागुफा इलाके में एंटी-नक्सल ऑपरेशन चला रहे सीआरपीएफ के जवानों पर नक्सलियों ने हमला कर दिया दिया था। नक्सलियों के इस हमले में 14 शहीद हो गए थे जबकि 12 लोग घायल हो गए थे।

25 मई 2013
झीरम घाटी हमला : नक्सलियों ने कांग्रेस नेताओं के काफिले पर हमला कर दिया था जिसमें कांग्रेस के 30 नेता व कार्यकर्ता मारे गए थे। नक्सलियों ने सबसे पहले सड़क पर ब्लास्ट किया और फिर काफिले पर अंधाधुंध फायरिंग कर दर्जनों लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। हमले में पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल समेत 30 से ज्यादा कांग्रेसी मारे गए थे जिनमें महेंद्र कर्मा भी थे।

6 अप्रैल 2010
दंतेवाड़ा हमला : दंतेवाड़ा जिले के ताड़मेटला में यह हमला सुरक्षाकर्मियों पर हुआ यह हमला देश का सबसे बड़ा नक्सली हमला है। इसमें सीआरपीएफ के 76 जवान शहीद हो गए थे। सीआरपीएफ के करीब 120 जवान तलाशी अभियान चला रहे थे तभी उन पर घात लगाकर करीब 1000 नक्सलियों हमला कर दिया था। इस हमले में 76 जवान शहीद हो गए थे। जवाबी कार्रवाई में आठ नक्सली भी मारे गए थे।

12 जुलाई 2009
छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में घात लगाकर किए गए हमले में पुलिस अधीक्षक वीके चौबे सहित 29 जवान शहीद हुए।

 

सच कहें तो नक्सलवाद एक सिरफिरे लोगों का भटका हुआ आंदोलन है । यह अधैर्य की उपज है । इसकी बस्ती में मानवता की कोई बयार नहीं बहती । यह पशुयुग की वापसी का उपक्रम है जिसके मूल में है हिंसा और सिर्फ हिंसा और हिंसा कभी विकास का अंकुर नहीं जन्म सकती। 

नक्सलवाद विचार और चिंतन शून्य हरकत है । यह देश के बहुसंख्यक सर्वहारा जन के अमन-चैन, समृद्धि और सुख विरोधी विचारधारा है । यदि यह सच है कि इनके असली सूत्रधार वैचारिक रूप से भी समृद्ध लोग हैं तो उनकी मनीषा में यह कैसे ठूँसा जाय और वे अपनी अंतरात्मा में झांकने के लिए तैयार हों कि उनका तथाकथित समाजवादी आंदोलन तब कहां था और आज कहां है।
उन्हें कौन समझाये कि आखिर ज्ञान का आधार क्या है और क्या है उसकी वैधता का मानदंड? वे यदि इस वर्तमान सिस्टम को अवैध मानते हैं और माना कि वे दिशाहीन भी नहीं है तो बंदूक की नोक पर टिकी उनकी प्रणाली परिणाममूलक होगी, इसकी क्या गारंटी है? दरअसल नक्सलियों की राजनीतिक वैधता का कोई आधार नहीं है।
बंदूकधारी व्यक्तियों से क्या बातचीत होगी ? लगता है कि नक्सलियों के बीच अब कोई दिलवाला नहीं रहा, बुद्धिजीवी नहीं रहा ।
समूचा वैचारिक फोरम ही अब मारकाट को चरम सीमा तक पहुँचाना चाहता है । नक्सलवाद को लेकर सरकारें जिस तरह राजनैतिक रोटी सेंकती रही हैं वह आम जनता की समझ से बाहर कतई नहीं है । नौकरशाह यानी वास्तविक नीति नियंताओं के बीच जनता के कितने हितैषी हैं, ऐसे चेहरों को भी आज जनता पहचानती है । उन्हें समय पर सबक सिखाना भी जानती है पर नक्सलवाद का सबसे चिंताजनक तथ्य यह है कि उसके परिणाम में केवल गरीब, निर्दोष, आदिवासी और कमजोर व्यक्ति ही मारा जा रहा है । इसमें राजनैतिक हत्याओं को भी नकारा नहीं जा सकता जिन्हें कई बार इनकाउंटर घोषित कर दिया जाता है।
इन दिनों देश के कथित जन अधिकारवादी संगठन और प्रखर बुद्धिजीवी प्रमाणित और असंदिग्ध गिरफ्तारियों को मानव अधिकार का हनन साबित करने के लिए जिस तरह हो हल्ला मचा रहे हैं उसे या तो मानसिक रुग्णता कहा जा सकता है या फिर प्रतिभा संपन्न लोगों की विपन्नता भी जो भाड़े में अपनी आवाज भी बेचा करते हैं । इससे प्रत्यक्षतः भले ही नक्सलियों या वाममार्गी चरमपंथियों के हौसले बुलंद नहीं होते हों पर इससे भारतीय मनीषा पर गंभीर शक तो जरूर होता है कि कहीं वे ही तो समाज और देश को फासीवाद की ओर धकेलना नहीं चाह रहे हैं ? वातानुकूलित विमानों पर लादे उन्हें कौन देश भर में घुमा रहा है ? आलीशान होटलों में व्हिस्की और चिकन चिल्ली की सुविधा के साथ उन्हें ठहराने वाला किस गरीब का हिमायती है और वे किसी एक व्यक्ति, जो अपनी अनैतिक और अप्रजातांत्रिक गतिविधियों से संदेहास्पद हो चुका हो, के लिए ही क्यों चिल्लपों मचा रहे हैं ? समाज और जनता को दिग्भ्रम करने का यह कौन सा बौद्धिक अनुशासन है ? और जिससे शांतिप्रिय समाज के समक्ष कानून एवं व्यवस्था का प्रश्न खड़ा कर रहे हैं।
वे कैसे यह भूलने की मूर्खता कर रहे हैं कि मानव अधिकार उनके भी हैं जो इन नक्सवादियों के क्रूरतम आक्रोश का शिकार हो रहे हैं । जो बमौत मारे जा रहे हैं क्या उनका कोई मानव अधिकार नहीं है ? जो इन नक्सलियों के बलात्कार और लूट-घसोट के स्थायी शिकार होने को बाध्य हैं क्या उनके भी मानव अधिकार निरस्त कर दिये गये हैं ? पुलिस के उपरले नहीं किन्तु निचले स्तर के जो अकारण सिपाही मारे जा रहे हैं उनके अनाथ बच्चों का कोई मानव अधिकार नहीं ? बड़े-बड़े पुलिस अधिकारियों के नक्सली क्षेत्र के दौरों के बहाने वन की सैर-सपाटे और शानो-शौकत में मातहत कर्मचारियों अपने छोटे-छोटे बच्चों के पेट काट कर जो चंदा दे रहे हैं उसमें मानव अधिकार हनन की कोई दुर्गंध नहीं आती ? शायद इसीलिए कि वे शासकीय वेतनधारक हैं । जो समाज से सबसे अशिक्षित और सीधे लोग अर्थात् आदिवासियों को अपने षडयंत्र का मोहरा बना रहे हैं वे कौन से मानव अधिकार की रक्षा कर रहे हैं ? नक्सलियों को कौन-सा ऐसा विशिष्ट मानव अधिकार मिल गया है जो नौनिहालों को पाठशाला से जो वंचित कर रहे हैं ? नक्सलवादी भूगोल की संभावित गरिमा जो छीन रहे हैं वे क्या मानव अधिकार का हनन नहीं कर रहे हैं । आखिर आदिवासी ग्रामों को सड़क, शिक्षा और स्वास्थ्य की बुनियादी सुविधा से वंचित करके रखने वाले ये नक्सली कौन सा मानव अधिकार का पाठ पढ़ा रहे हैं ।

इतिहास – 

नक्सलवाद शब्द की उत्पत्त‌ि पश्चिम बंगाल के नक्सलवाड़ी गांव से हुई थी। भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के नेता चारु माजूमदार और कानू सान्याल ने 1969 में सत्ता के खिलाफ एक सशस्त्र आंदोलन शुरु किया। माजूमदार चीन के कम्यूनिस्ट नेता माओत्से तुंग के बड़े प्रशसंक थे। इसी कारण नक्सलवाद को ‘माओवाद’ भी कहा जाता है। 1968 में कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ मार्क्ससिज्म एंड लेन‌िनिज्म (CPML) का गठन किया गया जिनके मुखिया दीपेन्द्र भट्टाचार्य थे। यह लोग मार्क्स और लेनिन के सिद्धांतों पर काम करने लगे, क्योंकि वे उन्हीं से ही प्रभावित थे। वर्ष 1969 में पहली बार चारु माजूमदार और कानू सान्याल ने भूमि अधिग्रहण को लेकर पूरे देश में सत्ता के खिलाफ एक व्यापक लड़ाई शुरू कर दी। भूमि अधिग्रहण को लेकर देश में सबसे पहले आवाज नक्सलवाड़ी से ही उठी थी। आंदोलनकारी नेताओं का मानना था कि ‘जमीन उसी को जो उस पर खेती करें’। नक्सलवाड़ी से शुरु हुआ इस आंदोलन का प्रभाव पहली बार तब देखा गया जब पश्चिम बंगाल से कांग्रेस को सत्ता से बाहर होना पड़ा। इस आंदोलन का ही प्रभाव था कि 1977 में पहली बार पश्चिम बंगाल में कम्यूनिस्ट पार्टी सरकार के रूप में आयी और ज्योति बसु मुख्यमंत्री बने।

सामाजिक जागृति के लिए शुरु हु्ए इस आंदोलन पर कुछ सालों के बाद राजनीति का वर्चस्व बढ़ने लगा और आंदोलन जल्द ही अपने मुद्दों और रास्तों से भटक गया। जब यह आंदोलन फैलता हुआ ब‌िहार पहुंचा तब यह अपने मुद्दों से पूरी तरह भटक चुका था। अब यह लड़ाई जमीनों की लड़ाई न रहकर जातीय वर्ग की लड़‌ाई शुरू हो चुकी थी। यहां से शुरु होता है उच्च वर्ग और मध्यम वर्ग के बीच का उग्र संघर्ष जिससे नक्सल आन्दोलन ने देश में नया रूप धारण किया। श्रीराम सेना जो माओवादियों की सबसे बड़ी सेना थी, उसने उच्च वर्ग के खिलाफ सबसे पहले हिंसक प्रदर्शन करना शुरू किया।

इससे पहले 1972 में आंदोलन के हिंसक होने के कारण चारु माजूमदार को गिरफ्तार कर लिया गया और 10 दिन के लिए कारावास के दौरान ही उनकी जेल में ही मौत हो गयी। नक्सलवादी आंदोलन के प्रणेता कानू सान्याल ने आंदोलन के राजनीति का शिकार होने के कारण और अपने मुद्दों से भटकने के कारण तंग आकर 23 मार्च, 2010 को आत्महत्या कर ली।

भारत में नक्सलवाद की बड़ी घटनाएं-

2007 छत्तीसगढ़ के बस्तर में 300 से ज्यादा विद्रोहियों ने 55 पुलिसकर्मियों को मौत के घाट पर ‌उतार दिया था।
2008 ओडिसा के नयागढ़ में नक्सलवाद‌ियों ने 14 पुलिसकर्मियों और एक नागरिक की हत्या कर दी।
2009 महाराष्ट्र के गढ़चिरोली में हुए एक बड़े नक्सली हमले में 15 सीआरपीएफ जवानों की मौत हो गयी।
2010 नक्सलवादियों ने कोलकाता-मुंबई ट्रेन में 150 यात्रियों की हत्या कर दी।
2010 पश्चिम बंगाल के सिल्दा केंप में घुसकर नक्सलियों ने 24 अर्द्धसैनिक बलों को मार गिराया।
2011 छत्तीसगढ के दंतेवाड़ा में हुए एक बड़े नक्सलवादी हमले में कुल 76 जवानों की हत्या कर दी जिसमें सीआरपीएफ के जवान समेत पुल‌िसकर्मी भी शामिल थे।
2012 झारखंड के गढ़वा जिले के पास बरिगंवा जंगल में 13 पुलिसकर्मीयों को मार गिराया।
2013 छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में नक्सलियों ने कांग्रेस के नेता समेत 27 व्यक्तियों को मार गिराया।

नक्सलवाद के खिलाफ़ चलाये गये अभियान – 

स्टीपेलचेस अभियान

यह अभियान वर्ष 1971 में चलाया गया। इस अभियान में भारतीय सेना तथा राज्य पुलिस ने भाग लिया था। अभियान के दौरान लगभग 20,000 नक्सली मारे गए थे।

ग्रीनहंट अभियान

यह अभियान वर्ष 2009 में चलाया गया। नक्सल विरोधी अभियान को यह नाम मीडिया द्वारा प्रदान किया गया था। इस अभियान में पैरामिलेट्री बल तथा राष्ट्र पुलिस ने भाग लिया। यह अभियान छत्तीसगढ़, झारखंड, आंध्र प्रदेश तथा महाराष्ट्र में चलाया गया।

प्रहार

3 जून, 2017 को छत्तीसगढ़ राज्य के सुगमा जिले में सुरक्षा बलों द्वारा अब तक के सबसे बड़े नक्सल विरोधी अभियान ‘प्रहार’ को प्रारंभ किया गया। सुरक्षा बलों द्वारा नक्सलियों के चिंतागुफा में छिपे होने की सूचना मिलने के पश्चात इस अभियान को चलाया गया था। इस अभियान में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के कोबरा कमांडो, छत्तीसगढ़ पुलिस, डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड तथा इंडियन एयरफोर्स के एंटी नक्सल टास्क फोर्स ने भाग लिया। यह अभियान चिंतागुफा पुलिस स्टेशन के क्षेत्र के अंदर स्थित चिंतागुफा जंगल में चलाया गया जिसे नक्सलियों का गढ़ माना जाता है। इस अभियान में 3 जवान शहीद हो गए तथा कई अन्य घायल हुए। अभियान के दौरान 15 से 20 नक्सलियों के मारे जाने की सूचना सुरक्षा बल के अधिकारी द्वारा दी गई। खराब मौसम के कारण 25 जून, 2017 को इस अभियान को समाप्त किया गया।

Sach ki Dastak

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