क्या भारतीय संविधान में दर्ज है न्याययुक्त समानता का अधिकार? 

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क्या भारतीय संविधान में दर्ज है न्याययुक्त समानता का अधिकार? यदि हाँ- तो फिर – भारतीय संविधान की प्रस्तावना में, ”हम भारतीय नागरिक” के स्थान पर, ”हम भारत के लोग”, दर्ज क्यों हैं? 
    तो फिर समस्त भारतीय नागरिकों को अपनी महिला जाति का मुखिया अपना तत्काल, निष्पक्ष, स्वच्छ, सम्पूर्ण व निःशुल्क न्याय दिलाने वाला प्रतिभाशाली विद्वान आत्मसम्माननीय इंडियन चीफ जस्टिस साहब व अपना पुरूष जाति का मुखिया न्याय देने वाला मर्यादाशाली स्वविवेकवान सम्मानीय चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया, एक साथ समानरूप सेे हासिल क्यों नहीं? 
       तो फिर समस्त भारतीय नागरिकों के पहचान के सभी प्रकार के अभिलेखों में दर्ज उनके नाम के साथ, उनकी आत्मसम्मानीय माता का नाम व उनके दर्ज सम्मानीय पिता के नाम के पूर्व, उनके सम्माननीय पिता की आत्मसम्माननीय पत्नी का नाम, एक साथ समानरूप सेे दर्ज क्यों नहीं? 
       सच तो यह है कि भारतीय संविधान में दर्ज समानता का अधिकार सिर्फ़ एक संकेतिक शोपीस के समान है जो यथार्थ में असमानता का अधिकार है। 
      भारतीय संविधान सभा में आत्मसम्माननीय डॉ. भीमराव अम्बेडकर का संकेतिक वक्तव्य इसी पर था। उन्होंने स्पष्ट कहा था कि हमने यह भारतीय संविधान बड़ी मेहनत से बनाया है। यह भारत के साथ पूरे विश्व का सबसे बडा व सर्वमान्य संविधान है। हमने इसके नीतिनिर्देशक तत्वों में संविधान संशोधन का प्राविधान भी दिया है । यदि इस संविधान को नेक नियति व नेक नीति से लागू किया तो सभी को सद्परिणाम हासिल होगें और यदि बदनियति व बदनीति से लागू किया तो
सभी को दुष्परिणाम हासिल होगें। 
       यह जानते हुए भी, अपने प्राईम मिनिस्टर ऑफ इंडिया से अपने आत्मसम्माननीय इंडियन चीफ जस्टिस साहब को, सम्मानीय चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया से अब तक हासिल नहीं किया है । 
       क्या सम्मानीय चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की नज़रों में भारत के साथ पूरे विश्व की समस्त मातायें व पत्नियां, वैश्यायें हैं? क्या वैश्या अपनी प्रिय संतानों की आत्मसम्माननीय माता व अपनी प्रिय संतानों के सम्माननीय पिता की, आत्मसम्माननीय पत्नी नहीं हो सकती? 
      सच तो यह है कि कोई भी महिला जन्मजात वैश्या नही होती उसे तो असमानता का अधिकार ही 
वैश्या बनाता है। 
     क्या यह असमानता महिला जाति के विरूद्ध अपमान, अन्याय व अपराध नहीं? क्या यह असमानता महिला जाति के विरूद्ध विषम दृष्टिकोणिक, लैंगिक व न्यायिक भेदभाव नहीं? क्या यह असमानता महिला जाति को महिला जाति की पहचान मिटाने की पूर्व नियोजित साजिश नहीं? क्या इस असमानता का दुष्परिणाम संक्रमण, बीमारी 
व महामारी नहीं? क्या इस असमानता का उत्तर अकाल अंधा होना व अकाल मौत का प्राप्त होना सम्भव नहीं? क्या यह असमानता आमजनता का जनजीविका व जनजीवन को हड़पने की पूर्व नियोजित साजिश नहीं? क्या न्याययुक्त समानता को लेकर भारत के साथ पूरे विश्व में हाहाकार, अशांति व दानवता नहीं? क्या भारत के साथ पूरे विश्व के सभी नागरिकों को आत्मसम्मान व मान सम्मान के साथ, एक साथ समानरूप सेे मिलकर प्रेम से जीने का अधिकार हासिल नहीं? क्या इस असमानता का परिणाम, महाभारत विश्व युद्ध नहीं? तो फिर न्याययुक्त, स्पष्ट व पूरा समानता का अधिकार, भारतीय संविधान में अब तक दर्ज क्यों नहीं? क्या इसके जिम्मेदार मान. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया स्वंय नहीं? 
_राकेश प्रकाश सक्सेना, एडवोकेट 

Sach ki Dastak

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