मानवाधिकार सार्वभौम घोषणापत्र की 75वीं वर्षगांठ पर चर्चा में एनएचआरसी

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यह वर्ष मानवाधिकारों के सार्वभौम घोषणा पत्र-यूडीएचआर का 75वां वर्ष है यानी यूडीएचआर का अमृत वर्ष. इस महनीय वर्ष में दुनिया इस बात की फ़िक्र कर रही है कि 75 वर्ष बाद यूडीएचआर के माध्यम से हमने कितना कुछ पाया, कितना खोया. भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू एशिया प्रशांत राष्ट्रीय मानव अधिकार संस्थानों के सम्मेलन का उद्घाटन 20-21 सितंबर, 2023 को कर रही हैं. इस महा आयोजन की मेजबानी राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग कर रहा है. इस महासम्मेलन में सबको यह उम्मीद है कि यहाँ से कुछ ऐसी राह निकलेगी जिससे हम मानवाधिकारों के समग्र संरक्षण के लिए आगे बढ़ सकेंगे. भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू एक ऐसे समाज से आती हैं, जो अधिकारों के लिए सतत संघर्ष किया है. लेकिन वह जब इस 75वें साल में भारत गणराज्य की महामहिम राष्ट्रपति पद पर रहते हुए ऐसे सम्मलेन को संबोधित कर रही हैं तो यह अपने आप में बड़ी बात है. भारत ने अपनी लोकतांत्रिक व साभ्यतिक बहस के केंद्र में केवल अपनी राष्ट्रपति की ही बात करे तो वह यह साबित कर सकता है कि कम से कम भारत में यूडीएचआर का असर पूरी तरह से रहा है.

विज्ञान भवन नई दिल्ली में एशिया प्रशांत के राष्ट्रीय मानव अधिकार संस्थानों (एनएचआरआई) के द्विवार्षिक सम्मेलन का उद्घाटन श्रीमती द्रौपदी मुर्मू, राष्ट्रपति भारत गणराज्य कर रही हैं और सदस्य देशों के साझा हित के मुद्दों पर चर्चा करने के लिए एशिया प्रशांत फोरम अपनी 28वीं वार्षिक आम बैठक भी आयोजित कर रहा है जिसमें भारत और विदेश से 1300 से अधिक प्रतिनिधियों के भाग लेने की संभावना है.ऐसे महासम्मेलन में भारत की बतौर राष्ट्राध्यक्ष श्रीमती द्रौपदी मुर्मू का होना भारत के लिए गौरव की बात है लेकिन दुनिया के लिए मिसाल भी है.

 

फ़िलहाल इस यूडीएचआर सम्मेलन में एशिया प्रशांत क्षेत्र के राष्ट्रीय मानव अधिकार संस्थानों के प्रमुख, सदस्य और वरिष्ठ अधिकारियों के साथ-साथ केंद्र और राज्य सरकारों के प्रतिनिधि, राज्य मानव अधिकार आयोगों के प्रतिनिधि, विशेष प्रतिवेदक, मॉनिटर, देश में मानव अधिकारों के संरक्षण और संवर्धन में शामिल विभिन्न संस्थान, नागरिक समाज और गैर सरकारी संगठनों के सदस्य, मानव अधिकार संरक्षक, वकील, न्यायविद, शिक्षाविद, राजनयिक, संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों के प्रतिनिधि, शैक्षणिक संस्थान आदि के प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं जो दो दिनों तक एशिया प्रशांत क्षेत्र मानव अधिकारों की स्थित्ति अवस्थिति पर अपने दृष्टिकोण तय करेंगे और यह आंकलन भी करेंगे कि हमने क्या अभी तक हासिल किया है. मानव अधिकारों पर सार्वभौम घोषणा (यूडीएचआर) की 75वीं वर्षगांठ और पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन उप-विषय के साथ, राष्ट्रीय मानव अधिकार संस्थानों एवं पेरिस सिद्धांत के 30 साल पूरे होने का भी जश्न भी मनाया जाएगा. सम्पूर्ण एशिया और प्रशांत क्षेत्र में मानव अधिकारों के संवर्धन एवं संरक्षण के 30 वर्ष’ , ‘मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा और सभी के लिए स्वतंत्रता, समानता और न्याय’, तथा ‘जलवायु परिवर्तन के राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय कार्यों के मानव अधिकारों के प्रभावों का जवाब देने और उन्हें कम करने में एनएचआरआई की भूमिका’ विषयों पर बेबाक संवाद प्रतिभागी करेंगे.

द्विवार्षिक सम्मेलन में मानव अधिकारों के संरक्षण एवं संवर्धन में एनएचआरआई की भूमिका, एशिया प्रशांत क्षेत्र में उनकी उपलब्धियों और सीएसओ और संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों जैसे हितधारकों के साथ साझेदारी और सहयोग के महत्व पर संवाद होना है इस महासम्मेलन में. सबसे अहम् बात यह है कि यूएनडीपी के साथ साझेदारी में व्यापार और मानव अधिकार विषय के साथ-साथ एक और सत्र भी आयोजित है जिसमें व्यापार और उद्योग, श्रमिक संगठनों और संघों, विभिन्न मंत्रालयों, विभागों, वैधानिक संगठनों, संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों, मानव अधिकार संरक्षकों, गैर सरकारी संगठन, आदि की विशेष उपस्थिति है. जिस प्रकार से व्यवसायों और श्रमिकों के मानवाधिकारों पर समय-समय पर प्रश्न उठाये जाते हैं, उन व्यवसायों और प्रोफेशन में श्रमिकों के मानव अधिकारों से संबंधित मुद्दों पर कोई सहमति पर पहुँचने की कोशिश विशेषज्ञ करेंगे.

एनएचआरसी ने अपनी 30 वर्षों की इस यात्रा के दौरान 22 लाख से अधिक मामलों को सुलझाया है. अपनी संस्तुतियों के जरिये मानव अधिकार उल्लंघन के पीड़ितों को एक अरब रुपये से अधिक का भुगतान करवाया है. यह सब उपलब्धियां विभिन्न सरकारी संस्थानों और एजेंसियों द्वारा आयोग के निर्णयों के प्रति सम्मान का निःसंदेह प्रतिक है. आयोग देश भर में खुली सुनवाई, शिविर, बैठकें, कई बिलों और कानूनों पर समीक्षा, खुद की विशेष टिप्पणियाँ, कई सेमिनारों, सम्मेलनों और कार्यशालाओं का संचालन, परामर्शी, इंटर्नशिप, अनुसंधान परियोजनाएं, मासिक समाचार पत्रों, जर्नलों का प्रकाशन, शोध के लिए नियमित पहल और इसके साथ 100 से अधिक महत्वपूर्ण प्रकाशन, सैकड़ों मीडिया रिपोर्ट्स, अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में भागीदारियाँ, वैश्विक ग्रेड में अपनी स्थिरता आदि एनएचआरसी के बहुआयामी कार्यों में सुमार किये जाते हैं. आज पूरा विश्व मानता है कि भारत में मानव अधिकारों के संवर्धन एवं संरक्षण हेतु किए गए कार्य तथा मानव अधिकारों के संवर्धन एवं संरक्षण में एनएचआरसी, भारत की भूमिका, इसे दुनिया में एनएचआरआई के समुदाय में विशिष्ट स्थान दिलाती है. एनएचआरसी, एनएचआरआई के एशिया प्रशांत फोरम जिसकी स्थापना 1996 में एशिया प्रशांत क्षेत्र में स्वतंत्र एनएचआरआई की स्थापना को बढ़ावा देने और मानव अधिकारों के यथासंभव प्रभावी ढंग से संरक्षण एवं संवर्धन में सहायता करने के लिए की गई थी, के संस्थापक सदस्यों में से एक है. यह संस्था एशिया प्रशांत क्षेत्र में मानव अधिकारों का एक पैरामीटर तय करती है और नागरिकों के हितों के लिए कार्य करती है। यद्यपि एपीएफ चार क्षेत्रीय एनएचआरआई नेटवर्क में से एक है, जिसमें अफ्रीका, एनएएनएचआरआई; अमेरिका, आरआईएनडीएचसीए; और यूरोप, एनएनएचआरआई, राष्ट्रीय मानव अधिकार संस्थानों के वैश्विक गठबंधन जिसे हम गनहरी के नाम से जानते हैं, शामिल हैं. एनएचआरसी, भारत, एक स्वतंत्र और स्वायत्त ‘ए’ स्टेटस वाले एनएचआरआई के रूप में एपीएफ का एक महत्वपूर्ण सहयोगी मॉडल संस्था के रूप में सुविख्यात है, जो पूरी तरह से पेरिस सिद्धांतों का अनुपालनकर्ता और उस सिद्धांतों को अनुवायोगकर्ता माना जाता है. इस वर्ष एनएचआरसी, भारत के अस्तित्व के 30 वर्ष भी पूरे हो रहे हैं तो यह सम्मेलन दिल्ली में पुनः आयोजित हो रहा है.
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने अपने 30 साल के अनिभवों में भारतीय नागरिकों का अनेक उत्तर चढ़ाव देख लिया है. आयोग ने हमेशा मनुष्य को केंद्र में रखकर कार्य किया. आज जब बहुत से बड़े पैमाने में परिवर्तन की नई बयार बाह रही है तो एनएचआरसी अपने दायित्वों को निभा रहा है. आयोग ने कोविड-19 कक समय हो या फिर किसी अन्य आपदा के वक़्त यह कोशिश की कि भारत की आबादी का हर तबक़ा सौहार्दपूर्ण जीवन, गरिमामय जीवन प्राप्त करे. किसी भी देश के नागरिक यही अपेक्षा भी करते हैं. इस महासमेलन से निःसंदेह मनुष्य केंद्रित कुछ ऐसे विचार निकलकर आएं जो राष्ट्र के लिए और पृथ्वी के लिए उपयोगी साबित हों, तो निःसंदेह इस आयोजन का फल आने वाले दिनों में हमारे सौभाग्य का रूप लेगा. भारतीय इतिहास में मानव अधिकार आयोग का अपना हस्तक्षेप है और इस आयोजन से जब सारे मानवाधिकार संरक्षक व सहयोगी एकत्रित होंगे तो सबके माध्यम से कुछ अच्छे ही मार्ग प्रशस्त होंगे, ऐसी उम्मीद की जा सकती है.

_प्रो. कन्हैया त्रिपाठी
(लेखक महामहिम राष्ट्रपति जी के ओएसडी रह चुके हैं। सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ पंजाब में चेयर प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं और अहिंसा आयोग के पैरोकार हैं)

Sach ki Dastak

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