पञ्चचामर छंद (हुतात्म श्रद्धांजलि)✍️जाने माने लेखक संजय कौशिक ‘विज्ञात’
विराग राग देख के प्रभाव शान को सुनो।
बहाव रंग ढंग के समान भाव को चुनो॥
प्रबुद्ध शुद्ध बोल हैं प्रवाह टेक एक है।
हुतात्म वीर देश के भरे यहाँ अनेक है॥
हुतात्म= शहीद
कमान हाथ हिन्द की विशेष रूप थाम के।
पहाड़ रेत अम्बु में हितार्थ देश काम के॥
विराट युद्ध भेदते विशाल शत्रु खेलते।
सपूत सत्य देखलो प्रहार नित्य झेलते॥
समक्ष कौन है टिका महान शूरवीर ये।
जवान जोश से भरे समर्थ आज धीर ये॥
विधान देख लो भले महान ये पुराण से।
सदैव कर्म-धर्म से पवित्र ये प्रमाण से॥
सुहाग, पुत्र रूप में कहीं पिता व भ्रात है।
जवान खण्ड खण्ड के धरा अखण्ड मात है॥
दहाड़ सिंह तुल्य है तिरंग प्रेम आग है।
प्रसंग वीरता भरा लगे विशाल भाग है॥
अनादि रोशनी करें वही प्रकाश व्याप्त है।
दिखा रहे सुपंथ जो विकास आज प्राप्त है॥
अजेय शौर्य की कथा बखान वीरता भरी।
विराट देश शूर की परम्परा करे हरी॥
प्रतीक वीर विश्व में हरेक देश भारती।
उतारती दिखे जहाँ प्रभात-सांझ आरती॥
प्रसाद बाँटती धरा सपूत शीश वारते।
स्वतंत्र देश के युवा कठोर रूप धारते॥
संजय कौशिक ‘विज्ञात’