कविता :- लेखक ✍️राकेश रमण श्रीवास्तव

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!!आओ कुछ संवाद करें!!

आओ, बैठो कुछ संवाद करें, 
आज अपने मन की बात करें,
कुछ बात सुनी थी मैंने, कुछ बात कही थी मैंने,
तुम सुन ही ना पाये, तुम समझ ही ना पाये!
जो किया है मैंने तुम्हारी खातिर, 
क्या तुम कर पाओगे?
जो सहा है मैंने तुम्हारी खातिर, 
क्या तुम सह पाओगे?
फिर भी हमेशा असुरक्षित हूं मैं,
तुम्हारे लिए एक अनबुझ पहेली हूं मैं,
कभी करैला, तो कभी नीम सी कसैली हूं मैं!
बेटा-बेटी सब तुम्हारे, 
ताने, उलाहने, उपहास सब तुम्हारे,
आँखें बंद करती हूं, तो पलकों की कोर के, 
भीगने का होता है अहसास,
अपने सपनों को लेकर भागती हूं बदहवास,
मेरी इस पीर को क्या तुम समझ पाओगे? 
अब तो अपनी ख्वाहिशों के परिन्दों को, 
उड़ा दिया है मैंने,
सपने जो संजोए थे, सब भुला दिया है मैंने,
मोहब्बत होती तो सब समझ जाते तुम,
उन सुंदरियों के आगोश में नहीं जाते तुम,
तुम तो उसे आम्रपाली, उर्वशी, रम्भा समझकर,
उनकी इबादत कर बैठे हो,
मेरे हृदय से अदावत कर बैठे हो,
घुटता है मन तुम्हारी इस इबादत से,
इस घुटन को क्या तुम समझ पाओगे?
दिल की गहराइयों से जो पीड़ा कही मैंने,
क्या उसे समझ पाओगे?
– राकेश रमण श्रीवास्तव
लेखा नगर, कैंट रोड, 
(डी0ए0भी0 स्कूल के पीछे),
खगौल, पटना-801105
 

Sach ki Dastak

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