हिन्दुस्तान के बोस ने जीता जापान का होश-

0

देश की आज़ादी के लिए कई क्रांतिकारी शहीद हुए. कुछ क्रांतिकारियों ने खुलकर अंग्रेज़ों का विरोध किया, तो कुछ परदे के पीछे रहकर देश की आज़ादी के लिए रणनीति बनाया करते थे. भगत सिंह, राजगुरु, चंद्र शेखर आज़ाद, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक़ुल्ला ख़ान, सुभाष चंद्र बोस जैसे क्रांतिकारियों के नाम हमारी ज़ुबान पर होते हैं, लेकिन उन क्रांतिकारियों का क्या जिनकी रणनीतिक सोच के कारण ही भगत सिंह और सुभाष चंद्र बोस जैसे क्रांतिकारी देश को मिले.

Source: Google

 

ऐसे ही एक क्रांतिकारी थे रास बिहारी बोस. जिन्हें हिन्दुस्तान में तो भुला दिया गया, लेकिन जापान में वो आज भी हर किसी के हीरो हैं. रास बिहारी वही हीरो थे जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए कई सफ़ल नीतियां बनाईं, जिनकी वजह से ही क्रांतिकारियों को अंग्रेज़ों को खदेड़ने में सफ़लता मिली. बस एक इतिहासकार ही हैं, जो आज भी रास बिहारी बोस को देश के बड़े क्रांतिकारियों में से एक मानते हैं।

ऐसे ही एक क्रांतिकारी थे रास बिहारी बोस. जिन्हें हिन्दुस्तान में तो भुला दिया गया, लेकिन जापान में वो आज भी हर किसी के हीरो हैं।

रास बिहारी वही हीरो थे जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए कई सफ़ल नीतियां बनाईं, जिनकी वजह से ही क्रांतिकारियों को अंग्रेज़ों को खदेड़ने में सफ़लता मिली. बस एक इतिहासकार ही हैं, जो आज भी रास बिहारी बोस को देश के बड़े क्रांतिकारियों में से एक मानते हैं।

 

दिसंबर 1911, में जब गर्वनर जनरल लॉर्ड हार्डिंग को नई राजधानी दिल्ली में पहली कदम रख रहे थे. उनके ज़ोरदार स्वागत के लिए पूरी दिल्ली में तैयारियां जोरों पर थी. चांदनी चौक से बड़े भव्य तरीके से हाथी पर बैठकर लॉर्ड हॉर्डिंग की रैली निकल रही थी. तभी रास बिहारी ने अपने साथी युवा क्रांतिकारी बसंत कुमार विश्वास को बम फेंकने का आदेश दिया. बम फेंकने के साथ ही चारों तरफ़ अफ़रातफ़री मच गई. सभी लोगों को लगा कि हॉर्डिंग की मौत हो गई है, लेकिन वो बच निकला. इसके बाद रास बिहारी रात की ट्रेन देहरादून निकल लिए और सुबह ऑफ़िस भी ज्वॉइन कर लिया. कई महीनों तक अंग्रेज़ पुलिस इस बात का पता नहीं लगा पाई कि आख़िर इस षड़यंत्र का मास्टर माइंड कौन था? इतिहास में इसे ‘दिल्ली कॉन्सपिरेसी’ के नाम से जाना जाता है। 

इसी दौरान प्रथम विश्व युद्ध छिड़ गया. रास बिहारी बोस आज़ादी की रणनीति बनाने के लिए अप्रैल में 1915 में जापान चले गए. उन दिनों जापान कई देशों के क्रांतिकारियों की शरणगाह बना हुआ था. इस दौरान उनकी मुलाक़ात चीन के क्रांतिकारी नेता सन यात सेन से हुई. कई भारतीयों से भी उनकी मुलाकात हुई जो देश को आज़ाद देखना चाहते थे. अंग्रेज़ सरकार बुरी तरह उनके पीछे पड़ी हुई थी, जब उन्हें पता चला कि रास बिहारी बोस टोक्यो में हैं, तो मित्र देश होने के नाते उन्होंने जापान सरकार से रास बिहारी बोस को उन्हें सौंपने की मांग की. लेकिन एक ताकतवर जापानी लीडर ने उन्हें अपने घर में छुपा लिया जो अंग्रेज़ों से नफ़रत करता था.

फ़ेमस

Source: wikipedia

इस दौरान पुलिस हाथ धोकर उनके पड़ी हुई थी इसलिए उन्हें एक बेकरी मालिक के घर में छुपना पड़ा. ऐसे में वो बेकरी के लोगों और बेकरी मालिक के परिवार के साथ घुल-मिल गए और वहीं काम करने लगे. बेकरी के लोगों को भारतीय खाना बनाना सिखाने लगे. इसी दौरान उन्होंने एक डिश बनाई जो जापानियों को बेहद पसंद आई. जिसे ‘इंडियन करी’ नाम दिया गया. ‘इंडियन करी’ धीरे-धीरे इतनी मशहूर हो गई कि आज जापान के हर रेस्तरां में मिलती है. सबसे पहले ‘नाकामुराया बेकरी’ ने ही इसे अपने रेस्तरां में 1927 में इंडियन करी के नाम से लांच किया था. इसके बाद रास बिहारी जापान की संस्कृति, भाषा, व्यवहार में ही रंग गए. बेकरी मालिक के आग्रह पर रास बिहारी ने उनकी बेटी तोशिको से शादी कर ली.

Source: Www.sachkidastak.com

शादी के कुछ साल बाद उनके दो बच्चे हुए. सन 1925 में उनकी पत्नी की न्यूमोनिया से मौत हो गई. इसके बाद रास बिहारी एक बार फिर देश की आज़ादी के लिए कूद पड़े. इस दौरान उन्होंने टोक्यो में ‘इंडिया क्लब’ बनाया, कैसे देश को गुलामी से मुक्ति मिले इसकी रणनीति भी बनाई. भारतीय सैनिकों के विदेशी युद्धों में इस्तेमाल करने का विरोध किया और उन्हें एकजुट किया।

इस दौरान उन्हें लगा कि वो अब बीते कल के नेता हैं, उन्हें एक नया लीडर चाहिए. इसी दौरान नेताजी बोस भारत छोड़कर जर्मनी पहुंचे तो रास बिहारी बोस को लगा कि सुभाष चंद्र बोस से बेहतर करिश्माई नेतृत्व उन्हें और कोई नहीं मिल

Sach ki Dastak

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x