जलती मानवता  [जलते स्वप्न एक प्रश्नचिन्ह?] 

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-आकांक्षा सक्सेना, न्यूज ऐडीटर सच की दस्तक 

हाँ, मैं लिखती रहूंगी.. तुम कभी तो पढ़ोगे, कभी तो सुनोगे, कभी तो उठोगे, कभी तो जगोगे….! इसी विश्वास के साथ कि राजनीति रहे ना रहे पर मानवता जिंदाबाद रहे और बलात्कार पर बेटियों के जलते स्वप्न एक प्रश्नचिन्ह? का हम सबको पुख्ता जवाब के रूप में एक कठोरतम कानून मिल सके।

मैं देश की सभी बहनों की तरफ से देश के कानून बनाने वालों से यह पूछना चाहती हूं कि यह कौन सा भयावह समय है जब हृदयविदारक घटनायें नित प्रतिदिन अपनी पूरी वीभत्सता से समूचे देश में घट रहीं हैं और हम सब लाचार बने इन्हें रोक पाने में असमर्थ हैं आखिर! क्यों?

अभी कुछ दिनों पहले हैदराबाद में 27 वर्षीय पशु चिकित्सक का चार युवकों ने बेरहमी से सामूहिक बलात्कार कर उसे बड़ी ही बेरहमी से मारकर जला दिया गया। बिहार थानाक्षेत्र के सिंदुपुर गांव की रेप पीड़िता को 90 फीसदी जला डाला गया। वहीं उन्नाव रेप कांड पीड़िता जिसको भी कुछ लोगों ने बुुरी तरह जला डाला। इन घटनाओं की वीभत्सता ने 2012 में हुआ दिल्ली का ‘निर्भया कांड’ याद दिला किया कि आज तक जब निर्भया के दोषी उन दरिंदों को फांसी नहीं मिल सकी तो बढ़ रही दरिंदों की लिस्ट आखिर! कैसी घटे?

जब पीड़ित परिवार रिपोर्ट लिखवाने थाने जाता है तो शर्मनाक है कि आसानी से उसकी रिपोर्ट ही नहीं लिखी जाती ऊपर से तंज यह कि लड़की मिल नही रही तो भाग गयी होगी? जाओ ढूंढों । जब थानेदार से बात करो तो अंदर की कहानी यह है कि अगर वह अपने क्षेत्र की सभी क्राईम रिपोर्ट लिख लेगें तो कहा जायेगा तुम्हारे इलाके में इतना क्राईम? और ऊपर बैठे उनके अधिकारियों के डर और प्रोमोशन के लालच में वह रिपोर्ट का ग्राफ कभी बढ़ने ही नहीं देते। अब जनता स्वंय संज्ञान ले कि वह क्या करे और क्या ना करे। अब रही जनप्रतिनिधियों के पास जाने की तो जनता उनके पास जाये तो उनके बॉडीगार्ड उन्हें बाहर से ही भगा देते और लड़कियां उनके पास दर्द बताने जाने से भी डरतीं कि दर्द के बदले महादर्द की शिकार ना हो जायें। हर महिला पुलिस और जनप्रतिनिधियों दोनों के पास तक जाने से डरतीं हैं। इस हाल में दरिंदों के मंसूबे आसानी से सफल हो जाते हैं जब नेता कहते कि समाज से क्राईम नहीं मिट सकता। यह सब तो होता रहता है, लड़कों से गल्ती हो जाती है। किसी का जीवन बर्बाद हो गया इस गुनाह को गल्ती कहकर हल्के में टाल दिया जाता है। बात 24 सितम्बर बिहार, राजगीर की है जब पहाड़ी पर कोचिंग जा रही एक बच्ची भैया छोड़ दो कहती रही और दरिंदे दरिंदगी करते रहे, वीडियो वायरल हुआ, बच्ची बर्बाद और दरिंदे आज भी जिंदा। बस रियल्टी में यही होता आया पर रील लाईफ में फिल्म बाहूबली में जब वह कहता है कि औरत पर हाथ उठाने वाले की उँगलियाँ नहीं काटते, काटते हैं उसका गला, यह सुनकर पूरी जनता तालियां बजाये बिना ना रह सकी थी तो क्या यह डॉयलॉग कानून और रियल्टी नहीं बन सकते जिससे उस सरकार का हर भारतीय पूरे दिल से तालियों से स्वागत करे और देश में अपराध घटे व शांति छाये पर सिस्टम का क्या है जब कोई पीड़ित रेप के बाद जला दी जाती है और मीडिया कवरेज दिखाती, पेपर, मैग्जीन लिखने लग जाते तब सिस्टम आँख मलते हुए उठता है पर जागता नहीं।

वहीं पुलिस अपनी नाक और शाख बचाने के लिए बड़े−बड़े दावे कर रही है, उधर, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस विषय पर बेहद गम्भीर दिखे उन्होंने पीड़िता का इलाज सरकारी खर्च पर कराए जाने और आरोपियों के खिलाफ़ सख्त कार्रवाई करने की बात की हैं, लेकिन लगता नहीं कि इससे समाज में घूम रहे रेपिस्टों का हौंसला कम होगा। बहरहाल, हमेशा की तरह इस बार भी सामूहिक दुष्कर्म की शिकार उन्नाव की युवती को जलाकर मारने के प्रयास पर सीएम योगी आदित्यनाथ बेहद गंभीर हैं। उन्होंने पुलिस प्रशासन को निर्देश दिया है कि आरोपियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई कर कोर्ट से प्रभावी दंड दिलाने के लिए हर संभव कार्रवाई की जाए।बताया जा रहा है कि उन्नाव की पीड़िता लखनऊ के श्यामा प्रसाद मुखर्जी अस्पताल (सिविल) में भर्ती है। करीब 90 प्रतिशत तक जली पीड़िता मौत से संघर्ष कर रही है। यहां पर प्लास्टिक सर्जन की देखरेख में पीड़िता का इलाज हो रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री और सपा प्रमुख अखिलेश सिंह ने तो योगी सरकार से सामूहिक इस्तीफा तक मांग लिया। राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी डीजपी ओपी सिंह से एफआईआर क्यों नहीं लिखी है, इसका जवाब तलब किया है। तब पुलिस अपना दामन बचाती दिखी जब उन्नाव के पुलिस अधीक्षक विक्रांत वीर ने कहा कि कि मार्च में रायबरेली के लालगंज थाना क्षेत्र में एक केस दर्ज हुआ था। इसमें लड़की की तरफ से आरोप था कि शादी का झांसा देकर दो लोगों द्वारा गैंगरेप किया गया। इन दोनों आरोपियों का नाम पेट्रोल डालकर जलाने की घटना में भी शामिल है। इधर, पीड़िता के परिवार का कहना है कि जेल से छूटकर आए आरोपी पिछले दो दिनों से उन्हें धमकी दे रहे थे। पीड़िता ने बयान दिया है कि वह सुबह 4 बजे रायबरेली जाने के लिए ट्रेन पकड़ने बैसवारा बिहार रेलवे स्टेशन जा रही थी। गौरा मोड़ पर गांव के हरिशंकर त्रिवेदी, किशोर, शुभम, शिवम और उमेश ने उसे घेर लिया और सिर पर डंडे से और गले पर चाकू से वार किया। इस बीच वह चक्कर आने से गिरी तो आरोपियों ने पेट्रोल डालकर आग लगा दी। बता दें कि इस केस की जांच रायबरेली पुलिस ने की थी। इस केस में दोनों आरोपी जेल से जमानत पर बाहर आए थे। कुछ समझ नहीं आता कि आखिर! राजनीति जागरण का काल कब से आरम्भ होगा और कब होगी न्यायिक क्रांति? अंततः उन्नाव की बेटी सिस्टम से हार कर चिरनिद्रा में सो गयी और छोड़ गयी तमाम प्रश्नचिह्न? उसके जाने के बाद यह भी मामला देखा गया कि उसके परिवारी सरकार से ज्यादा मुआवजा और सरकारी नौकरी मांगते दिखे जो कि तमाम लोगों को अजीब लगा और सोसलमीडिया पर लिखा गया कि रेप की कीमत लगायी जा रही।

अभी हाल में जारी एनसीआरबी के ताजा आंकड़ों (वर्ष 2017) में हर दिन 90 बलात्कार हो रहे हैं। अब आज 2019 की स्थिति की भयावहता को समझा जा सकता है। लेकिन, देश का दुर्भाग्य है कि जिस रफ्तार से बलात्कार की घटनाओं का ग्राफ बढ़ रहा है, उसी रफ्तार से बलात्कार की घटनाओं और महिलाओं को लेकर हमारे राजनीतिक नेतृत्व का संवेदनहीन रवैये भी बढा है, जोकि उनके घटिया बयानों से समझा जा सकता है –

जब निर्भया अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच जंग लड़ रही थी, तब भाजपा के वर्तमान महासचिव कैलाश विजयवर्गीय उसे ही इस घटना का जिम्मेदार ठहराते हुए कह रहे थे, ‘सीता लक्ष्मण रेखा लांघेगी तो रावण उसका अपहरण करेगा ही.’विजयवर्गीय के शब्दों का अर्थ था कि लड़कियों को रात को घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए। हालांकि, जिस समय निर्भया के साथ घटना घटी, वह रात के साढ़े आठ-नौ बजे के करीब का समय था। क्या एक महिला सूरज ढ़लते ही घर में कैद हो जाए? जब निर्भया के न्याय के लिए पूरे देश में प्रदर्शन हो रहे थे तब केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार के सांसद अभिजीत मुखर्जी (पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के बेटे) प्रदर्शनकारी महिलाओं के लिए यह बोले थे कि, ‘हाथ में मोमबत्ती जलाकर सड़कों पर आना फैशन हो गया है। ये सजी-संवरी महिलाएं पहले डिस्को में गईं और फिर इस गैंगरेप के खिलाफ़ विरोध दिखाने इंडिया गेट पर पहुंचीं।’ निर्भया पर बात हुई है तो पूर्व समाजवादी पार्टी प्रमुख, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व सांसद मुलायम सिंह यादव का भी जिक्र जरूरी हो जाता है।जब मुंबई के शक्ति मिल्स रेप केस के फैसले पर मंच से कहते नजर आए, ‘बच्चे हैं, गलती हो जाती है। इसका मतलब क्या फांसी चढ़ा दोगे? वैसे उत्तर प्रदेश में सरकार तो बदल गई लेकिन बलात्कार पर बयान महिला विरोधी ही रहे या कहूँ कि रेपिस्टों के हित में रहे जिस कारण बलात्कारी प्रवृत्ति के लोगों को कहीं ना कहीं मोरल सपोर्ट मिल जाता है जोकि कितना भयावह है।

इसी साल जून में राज्य में बलात्कार की घटनाओं पर सरकार के बचाव में भाजपा सांसद प्रवीण निषाद कहते नजर आए, ‘रेप की घटनाएं विपक्ष और महागठबंधन के द्वारा हमारी सरकार बदनाम करवाने के लिए करवाई जा रही हैं.’ वहीं उनके बेटे अखिलेश यादव ने चर्चित बदायूं कांड पर जब एक महिला पत्रकार ने उनसे प्रदेश में महिला सुरक्षा संबंधी सवाल किया तो मुख्यमंत्री अखिलेश ने जवाब दिया, ‘आपको तो खतरा नहीं हुआ.’ वहीं सांसद नरेश अग्रवाल (वर्तमान में भाजपा में हैं) ने रेप की एक घटना को एक तरह से खारिज करते हुए कहा था, ‘आप एक बछिया को भी घसीटकर नहीं ले जा सकते…’वहीं छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार के पूर्व गृहमंत्री रामसेवक पैकरा भी 2014 में बलात्कारियों की पैरवी करते दिखे थे। राज्य में लगातार घटती दुष्कर्म की घटनाओं पर उन्होंने कहा था, ‘बलात्कार कोई जानबूझकर नहीं करता, बल्कि धोखे से हो जाता है.’तो तत्कालीन कांग्रेस विधायक और वर्तमान में भाजपा नेता रामदयाल उइके का मानना था, ‘दुष्कर्म तभी होता है, जब प्रेमप्रसंग का मामला बिगड़ जाता है। जब प्रेम रहता है, तब तक ठीक है और जब बिगड़ जाता है, तब बलात्कार होता है’।

सांसद रामगोपाल यादव भी उनमें से एक हैं जिनका कहना रहा था, ‘जब लड़के-लड़कियों का प्रेम संबंध खुलकर सामने आ जाता है तो उसे रेप कह दिया जाता है। वहीं मुख्यमंत्री खट्टर ने एक अन्य मौके पर बलात्कार को लड़कियों के पहनावे से जोड़ते हुए कहा था, ‘अगर कोई लड़की शालीन दिखने वाले कपड़े पहनती है, तो कोई लड़का उसे गलत ढंग से नहीं देखेगा.’बलात्कारों को लेकर जवाबदेही पुरुषों की तय होनी चाहिए लेकिन महिलाओं के कपड़ों को ही बलात्कार का कारण ठहराने वाले खट्टर जैसी सोच के नेता और भी हैं। जिसमें अबू आजमी ने निर्भया कांड के दोषियों को फांसी की बात पर कहा था, ‘मैं दिल्ली गैंगरेप के आरोपियों को फांसी देने के पक्ष में हूं, पर एक कानून ऐसा भी होना चाहिए जो महिलाओं के छोटे कपड़ों पर भी प्रतिबंध लगाए’।

अभी हैदराबाद कांड के दो ही दिन बाद 30 नवंबर को राजस्थान के टोंक जिले के खेड़ली गांव में एक छह वर्षीय मासूस से बलात्कार करके उसका गला इस बर्बरता से दबाया गया कि उसकी आंखें ही बाहर निकल आ गयीं। अबू आजमी, मनोहरलाल खट्टर, नरेश अग्रवाल जैसे नेताओं को बताना चाहिए कि क्या टोंक जिले की इस 6 वर्ष की मासूम या 5 वर्ष की ट्वींकल जैंसी हीं अनेकों बच्चियों के साथ हो रही हिंसा और बलात्कार के लिए भी क्या छोटे कपड़ों को कारण माना जाए? सुरेंद्र सिंह बताएं कि उस मासूम के पास क्या मोबाइल फोन था, क्या वह खुलेआम घूम रही थी? जब ग्रामीण क्षेत्रों में बलात्कार की बात कर रहे हैं तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख उन मोहन भागवत का भी जिक्र जरूरी हो जाता है जो हैदराबाद कांड पर दोषियों को कड़ी सजा देने की मांग कर रहे हैं। एक वक्त यही भागवत कहते नजर आए थे, ‘रेप ‘इंडिया’ में होते हैं, ‘भारत’ में नहीं’। कुछ सालों पहले दिए इस बयान में उन्होंने समझाया था कि शहरों की पश्चिमी सभ्यता के चलते बलात्कार इंडिया में होते हैं, भारत (गांवों) में नहीं’।

हद तो तब हो गयी जब 2014 में पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली ने निर्भया कांड के संदर्भ में कहा था, ‘दिल्ली में एक छोटी सी दुष्कर्म की घटना को दुनियाभर में इतना प्रचारित किया गया कि वैश्विक पर्यटन के क्षेत्र में देश को अरबों डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा.’जम्मू कश्मीर के चर्चित कठुआ गैंगरेप और हत्या मामले पर राज्य के उपमुख्यमंत्री रहे कविंदर गुप्ता ने घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा था, यह छोटी सी बात है, ज्यादा भाव नहीं देना चाहिए।

इसके अलावा बयानों का घटिया स्तर 2015 में तब मिला था, जब कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री रहे केएस ईश्वरप्पा से विपक्षी नेता होने के नाते एक प्रेस वार्ता के दौरान महिला पत्रकार ने उनसे बलात्कार पर सवाल किया, जिस पर उन्होंने जवाब दिया था, ‘आप एक महिला हैं और इस वक्त यहां मौजूद हैं अगर कोई खींचकर आपका रेप कर दे तो इसमें विपक्ष क्या करेगा?’ 2018 के जालंधर के चर्चित नन रेप मामले, जहां एक के बाद एक कई ननों ने बिशप पर रेप के आरोप लगाए, में केरल के निर्दलीय विधायक पीसी जॉर्ज ने इस बारे में खुलासा करने वाली नन को ही वेश्या बता दिया था। बिशप के समर्थन में उन्होंने कहा था, ‘इस बात में किसी को शक नहीं है कि नन वेश्या है।

ऐसे ही महिला सम्मान विरोधी घटिया बयानों की फेहरिस्त बहुत लम्बी है और यहां यह भी बता दें कि राजनैतिक पार्टियों में यौन अपराध व बलात्कार तक के दागी होने पर भी बहुत से नेता सत्ता में अपनी पूरी हनक व रसूख के साथ काबिज़ हैं। ऊपर से कानून बनाने वालों की विकृत सोच? खुद ही विचारो कि क्या सिर्फ गल्ती इन्हीं लोगों कि है या हम वोटरों की भी? जब संसद में सांसद जया बच्चन बलात्कारियों की लीचिंग करने को कहतीं तो लोग उनका भी विरोध कर डालते हैं कि लीचिंग ठीक नहीं तो उनसे पूछो कि क्या रेप ठीक है? जब संसद में महिलाओं के आक्रोश को दबा दिया जाता है तो सोचो! कि रेप पर सात दिन या 6 माह में तुरंत फांसी का कानून बनना जल्द कैसे सम्भव हो सकता? कितने शर्म की बात है कि जिस देश में कन्यापूजन पूजन होता हो, मातृशक्ति पूज्यनीय हो, वहां की जनता सड़कों पर बलात्कार के लिए फांसी की भीख मांग रही है और सत्तासीन और कुछ महान मीडियाकार इस मुद्दे को प्याज की आढ़ में भटकाने पर आमादा हैं और विपक्षी नेता इस मुद्दे को राजनीति की पिच पर छक्का लगा लेने को आतुर है और टीवी डिबेटों में व्यंग- तंज दागे जा रहे हैं , कहीं बयानों के तीर बड़े-बड़े मंचों पर चलाने को तत्पर हैं जिसमें वह जनता को रोजगार, मुफ्त वाई-फाई आदि का प्रलोभन देकर मूर्ख बनाने के नये ऐजेंडा तय करने में अनुसंधानरत् हैं।

जनता को जागना होगा कि शासन का मतलब ही होता है ‘गुलामी’। कभी सोचा कि हम सब के पास फोटो पहचानपत्र है जिसकी फोटो मैच ही नहीं करती जिसमें पिता की उम्र बीस वर्ष पुत्र की उम्र चालीस वर्ष दर्ज, ठीक कराने जाओ तो कहा जाता, इसे छोड़ो आधारकार्ड पकड़ो और आधारकार्ड जिसपर साफ लिखा कि यह भारतीय नागरिकता का प्रमाणपत्र नही है। आजादी के इतने वर्ष बाद भी आज तक हम सभी भारतीयों को भारतीय नागरिकता का प्रमाणपत्र से वंचित क्यों रखा गया? वहीं कुछ बाहर देश से आने वालों को यहां तक की पाकिस्तानियों को भारत की नागरिकता प्रमाणपत्र दिया गया। आखिर! हमें आधारकार्ड की जगह भारतीय नागरिकता पहचान पत्र व प्रमाणपत्र क्यों नहीं बांटे गये? आप ‘राष्ट्रीय नागरिकता’ की बात करते हैं आप ‘भारतीय नागरिकता’ की बात क्यों नहीं करते? संविधान में लिखा ‘हम भारत के लोग’, हम भारत के नागरिक शब्द क्यों दर्ज नहीं किया गया? न्यायालय में जज के बगल में बैठा अपात्र पेशकार जो विधि एवं न्याय की शिक्षा हासिल किये विद्वान अधिवक्ता क्यों नहीं? जो बिना रिश्वत के तारीख तक नहीं देते जिसके सामने विद्वान अधिवक्ता हाथ जोड़कर नीचे खड़े रहते। नेताओं के लिए सुप्रीम कोर्ट रविवार के दिन खुल सकता है तुरंत फैसला भी आ जाता है, ये पांच वर्ष के लिए चुनकर आते तो इनकी आजीवन मोटी पैंशन, बाकि कर्मचारियों की पेंशन बंद करने पर तुले हैं, यह 99वर्ष तक सत्ता पर रहते हैं, यह कभी रिटायर नहीं हो सकते, दल बदलू कानून है पर उसको लांघ कर नित दल – बदल होते रहते, यह कभी भी अपना वेतन बढ़ा सकते हैं, इनकी गज़ब नौकरी, ना कोई परीक्षा ना कोई साक्षात्कार। यह है हमारा सिस्टम जहां कुछ भी सिस्टमैटिक नहीं सिर्फ़ निजहित में है बाकि जनहित में है तो सिर्फ़ छलावा मात्र। वक्त आ गया है कि जनता को इस छलावे को समझना होगा और अपने हक की आवाज़ बुलंद करनी होगी। अब आप कहेगें कि समस्या के समाधान की बात हो तो यही कहूंगी कि हमें हमारी न्यायव्यवस्था में बड़े बदलाव की आवश्यकता है जब जब सीमा पर तैनात सैनिक, पुलिस,
फायर ब्रिगेड, यातायात रेलवे, डॉक्टर, पत्रकार आदि सात दिन में
24 घंटे कार्यरत रहते हैं वहीं शिवालय सदा खुले रहते हैं, तो फिर न्यायालय सप्ताह में पांच दिन और वह भी दस से चार बजे तक ही क्यों? ग्रीष्मावकाश अलग से। आखिर! अन्याय पीड़ित न्यायार्थी तो साहिब! आराधक है, जिसकी आहरूपी प्रार्थनारूपी घंटी सदैव सुनी जानी चाहिए। यह गम्भीरता देखते हुए कि देश में करोड़ों मुकदमें लंबित हैं…!! इसके अतिरिक्त न्याय के मौलिक अधिकारों के तहत समस्त देशवासियों के लिए ‘निशुल्क और त्वरित न्याय की व्यवस्था’ प्रावधान पर सरकार को काम करने की जरूरत है।

ऊपर से जब देश के सत्ताशीन अपने भाषणों में हमेशा कहते हैं कि ‘जनता तुम्हीं जनार्दन’। जनता के हाथ में शक्ति। हाँ तो इन्हीं शब्दों को पकड़ो, साधो, इनकी गहराई नापो और अपनी शक्ति पहचानो और यह भी जानो कि सत्ताशीनों की आत्मा है ‘आपका वोट’ और आप यानि हम सब हैं ‘वोटर’। और जनता यानि वोटर ग़र ठान ले तो सबकुछ सम्भव है। आपको सत्ताशीनों के लिए नहीं बल्कि जनकल्याण के लिए नारे श्लोगन लिखने होगें आपको ‘न्याय’ की जिंदाबाद करनी होगी कि- वोट हमारा तभी मिलेगा,
जब रेप पीड़िताओं को न्याय मिलेगा। अगर आप चाहते हैं कि सरकार सख्त हो तो पहले आपको सख्त होना होगा। जरा सोचो! कि आज से सात वर्ष पहले दिल्ली की निर्भया के दरिंदों को आज तक फांसी नहीं मिली। मामला बालिग और नाबालिक में घूमता रहता है पर पहुंचता कहीं नहीं। हद है कि एक तरफ आप ‘बस’ में पांच साल के ऊपर के बच्चे को बालिग समझ कर ‘पूरा टिकट’ ले लेते हो और रेप जैसे पाप के लिए आप बालिग और नाबालिक की चिंता करते हो? वहीं जब हैदराबाद महिला डॉक्टर के रेप के दरिंदों को जब हैदराबाद पुलिस एनकाउंटर में मार गिराती है तो कुछ मानवाधिकार वाले चिल्लाने लगते हैं। क्या वो ये नहीं जानते कि मानवाधिकार मानवों के होते हैं, दानवों के नहीं।

साहिब! हत्यारों और दरिंदों के कोई मौलिक अधिकार नहीं हुआ करते, यह बात कैसे समझायें आपको। कितना दु:खद है कि राम रहीम, आसाराम जैसे कई ढ़ोंगी पाखंडी रेपिस्टों को भी फांसी नहीं मिल सकी, पांच साल की मासूम ट्विंकल शर्मा के दरिंदों को भी फांसी नहीं मिली, मुजफ्फरपुर पीड़िता के भी दरिंदे जिंदा, बदायूं पीड़िता के दोषी जिंदा, उन्नाव पीड़िता जिसका घर परिवार आत्मा सर्वस्व मिट गया केवल शरीर रूप ढ़ांचा बचा वो भी आज 90% जला दिया गया. ….हर रोज़ कहीं ना कहीं बेटियों की आत्मायें तक सुलगा दीं जाती हैं…. पर बड़ा ही दु:खद है कि सुप्रीम कोर्ट जी, महामहिम जी, पीएम जी, सीएम जी का एक ट्वीट तक नहीं आता…साहिब! जनता आपकी तरफ़ देखती पर आप…..? साहिब! थोड़ा राजनीति से ऊपर उठकर पीड़िता के माता -पिता भाव से सोचें कि अब बहुत हो गया सिर से पानी ऊपर जा चुका है। अब आप जनता के सामने कोई बेहद सख्त उदाहरण प्रस्तुत करें…. वरना मानवता आखिर! कहाँ जाकर श्वांस लेगी।

Sach ki Dastak

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