गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु दरबार में लगी भक्तो की भीड़
सच की दस्तक न्यूज डेस्क चंदौली
जनपद चन्दौली में गुरु पूर्णिमा के पावन पर्व पर सोमवार को अपने गुरु से आर्शीवाद प्राप्त करने के लिए जहां जिले भर में एक दिन पूर्व ही शिष्यों की भीड़ जुटनी शुरू हो गई है, वहीं नगर स्थित नए सरकार की कुटिया भी आस्थावानों से गुलजार हो गई है। यहां स्थानीय भक्तों के साथ गैर प्रांत भक्तों की भीड़ देखने को मिली। इसके चलते समूचा उपवन खचाखच भर गया। उधर कुटिया के बाहर लगे मेले का भी लोगों ने खूब लुत्फ उठाया।
गुरु पूर्णिमा पर गुरु में आस्था रखने वाले लोग अपने गुरु की विधि विधान से पूजा कर उनसे आर्शीवाद प्राप्त करते हैं। लोगों की मान्यता है कि बिना गुरु के ज्ञान नहीं मिलता। गुरु ही ऐसे माध्यम हैं जिनके सहारे मनुष्य ईश्वर को प्राप्त कर सकता है। सोमवार को नए सरकार की कुटिया में उनके सैकड़ों की संख्या में चाहने वालों का जमावड़ा लगा रहा। इसमें जनपद के भक्तों के साथ अन्य प्रांतों के भक्तों की लंबी तादात देखने को मिली। इन सभी बातों के इतर विशालकाय परिसर में भोजन बनाने आदि की व्यवस्था को लेकर महिला भक्तों के साथ पुरूष भी प्रसाद के रूप में भोजन बनाने के साथ लोगों की सेवा में लगे रहे। इनका मानना है। कि सेवा मनुष्य का परम धर्म है। इसके बिना जीवन के रहस्य को जान पाना असंभव है। दूसरी ओर कुटिया के बाहर दो दिन पूर्व से ही मेले के मद्देनजर रंग बिरंगे खिलौनों की दुकानों के सजने के साथ सौंदर्य प्रसाधन के सामान व चाट पकौड़ी की दुकानें सज गई हैं। रंग-बिरंगे खिलौनों की खरीदारी में नन्हें-मुन्हें बच्चे जहां दुकानों पर भीड़ लगाए रहे, वहीं झूलों पर भी वे अपनी बारी की प्रतिक्षा करते देखे गए। मेला देखने के लिए भारी संख्या में भीड़ जुटी रही। वही हल्की बारिश होने के बावजूद भी लोगों के आस्था में कमी नहीं आई।
इसी कड़ी में बरसाने कुटी ब्यूरी पर स्वामी नामधनी जी महाराज के शिष्यों ने गुरु शिष्य परंपरा का निर्वाह करते हुए गुरु के चरणों में नमन वंदन करते हुए प्रार्थना की। आश्रम पर सुबह से ही भक्तों का जमावड़ा लगा रहा। भक्तों को आशीर्वचन देते हुए स्वामी नामधनी जी महाराज ने कहा कि भारतीय संस्कृति में गुरु को भगवान से बड़ा माना जाता है संस्कृत में गु का अर्थ होता है अंधकार अर्थात अज्ञान, रू का अर्थ होता है प्रकाश अर्थात ज्ञान,गुरु हमें अज्ञान रूपी अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाते हैं। इस दिन कई महान गुरुओं का जन्म हुआ था और बहुतों को ज्ञान की प्राप्ति भी हुई थी महात्मा गौतम बुद्ध ने इसी दिन धम्म चक्र का परिवर्तन भी किया था। प्राचीन काल से ही भारतवर्ष में गुरु शिष्य परंपरा रही है महाभारत काल में गुरु द्रोणाचार्य एकलव्य कौरव और पांडवों के गुरु थे। परशुराम कर्ण के गुरु थे। वेदव्यास, गर्ग मुनि, संदीपनि,दुर्वासा आदि गुरु रहे जिन्होंने अपने शिष्यों को दीक्षा देकर गुरु शिष्य परंपरा का अनूठा उदाहरण पेश किया था।कार्यक्रम में दूर दराज से आए हुए भक्त गणों के बीच प्रसाद भी वितरण किया गया।