”विविधताओं से भरा भूतकाल और संभावनाओं से भरा भविष्य” राव शिवराज पाल सिंह
सच की दस्तक न्यूज डेस्क जयपुर राजस्थान डॉ निशा अग्रवाल
विश्व विरासत दिवस 18 अप्रैल 2022 की थीम
“विरासत और जलवायु”
” जब हम विरासत सरंक्षण की बात करते तब मूर्त और अमूर्त विरासत के अलावा इस से जुड़े अन्य मुद्दों पर शायद ही कभी ध्यान देते हैं। पिछले वर्ष विश्व विरासत दिवस की थीम थी;
इस बार अतिमहत्वपूर्ण और अब तक की सबसे उपेक्षित थीम है :
“विरासत और जलवायु”
जलवायु परिवर्तन हमारे वर्तमान और भविष्य की दुनिया पर व्यापक प्रभाव और स्थानीय तथा वैश्विक खतरों पर ध्यान देने की जरूरत को रेखांकित करता है। जलवायु परिवर्तन से ना केवल विरासत को खतरा उत्पन्न होता है बल्कि हमारे रहन सहन और सांस्कृतिक रीति रिवाजो पर भी असर पड़ता है। अधिक या एकदम कम बारिश, बढ़ता तापमान, बाढ़ और मरुस्थलीकरण, ग्लेशियरों का पिघलना आदि सब जलवायु परिवर्तन के ही दुष्परिणाम हैं। लेकिन हम लोग विरासत और इसके सरंक्षण पर होने वाले जलवायु परिवर्तन के दूरगामी प्रभाव के बारे में बिल्कुल भी सावधान नहीं हैं।
यहां पर हम केवल कुछ उदाहरणों पर चर्चा करेंगे। पहला है हिमालय में स्थित हजारों ग्लेशियरों का तीव्र गति से पिघलना। यदि इसी गति से ग्लेशियरों का पिघलना जारी रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हिमालय से उद्गम वाली सारी ही नदियां बरसाती नदियां बनकर रह जाएं और पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश से लेकर समूचा उत्तर भारत एक विशाल मरुस्थल में परिवर्तित हो जाए। बढ़ते तापमान का ही दूसरा पहलू भी ग्लेशियरों से ही जुड़ा हुआ है, इन के पिघलने से समुद्री सतह का बढ़ना हमारे बहुत सारे तटीय शहरों और आबादी के लिए जल प्लावन के खतरे की घंटी है। जैसे आज हम समुद्र में डूबी द्वारिका के अवशेष खोज रहे हैं वैसे ही भविष्य में शायद एक दिन हमारी आने वाली पीढ़ियां मुंबई जैसे तटीय शहरों के अवशेष गोताखोरों के माध्यम से ढूंढने की कोशिश करेगी।
एक और ज्वलंत उदाहरण है ब्रह्मपुत्र नदी में स्थित दुनिया के सबसे विशाल नदी द्वीप का, जो ब्रह्मपुत्र में गत कुछ वर्षों में बेहद अनियंत्रित बाढ़ से अपना अस्तित्व ही खोने के कगार पर है। यहां पर सुरक्षा के लिए बनाई गई दीवार भी अपर्याप्त साबित हो रही है। माजुली द्वीप अपनी अनूठी प्राकृतिक और सांस्कृतिक जीवन शैली के लिए प्रसिद्ध है। यहां पर खड़े बांसों के (stilts) सहारे बने बांस के घरों में स्थानीय लोग हजारों सालों से रह रहे हैं।यदि माजुली द्वीप ही नही रहेगा तो यह अनूठी भवन निर्माण कला भी अपना अस्तित्व खो देगी, वैसे भी आसन्न खतरों को भांप कर वहां से अधिकांश लोग पलायन कर चुके हैं। इस से मिलता जुलता ही एक अन्य उदाहरण हिमालय में पिछले कुछ वर्षों में बादल फटने और भूस्खलन की घटनाओं में बढ़ोत्तरी है। पहले जहां पहाड़ों में घर लकड़ी के बनते थे जो पर्यावरण अनुकूल थे, ठंडे रहते थे तथा पहाड़ों की कच्ची मिट्टी पर अधिक भार भी नही बनते थे, वहीं अब उनकी जगह सीमेंट कंक्रीट के मल्टी स्टोरी भवनों ने ले ली है। सीमेंट कंक्रीट से बनने वाले घर तुलनात्मक रूप से गरम भी रहते हैं और पहाड़ों पर वजन भी अधिक डालते हैं। अभी कुछ दशक पूर्व जहां पंखे की भी आवश्यकता नही होती थी वहां अब एयरकंडीशनर भी लगने लगे हैं, जो वातावरण में गर्मी भी बढ़ाते हैं साथ ही ओजोन परत को नुकसान का कारक भी बनते हैं। इस सबके परिणाम स्वरूप तापमान में वृद्धि और उस वृद्धि की वजह से अनियमित वर्षा और भू स्खलन होता है।
इन सब खतरों से बचना है और हमें हमारी विरासत और अपना अस्तित्व बचाना है तो अभी भी देर नहीं हुई है, आवश्यकता है कि हम विरासत और जलवायु के आपसी संबंध और महत्व को समझें और आवश्यकतानुसार कदम उठाएं।”