हरे – भरे
जंगलों को काट कर , तुमने ,
कंक्रीट का जंगल उगा दिया ,
हाय ! तुमने ये क्या कर दिया ,
मैंने कब कहा था मेरा घर उजाड़ दो ।
बना लेना अपने लिये कंक्रीट का जंगल ,
पर मेरे लिये भी एक जंगल छोड़ देना ,
तुम्हारी तरह हमारी भी ख़्वाहिशें हैं ,
हमें भी तो एक घरौंदा बना लेने दो।
मत कैद करो तुम पिंजड़े में ,
हम परिंदों को उड़ान भरने दो ,
उड़ने दो खुली आसमां में हमें ,
हमारे परों को कतरना छोड़ दो।
_विजय कुमार सिन्हा ” तरुण “
देहरादून