बहू हमारी डॉक्टरनी! ✍️manu vashistha

दुल्हन!दुल्हन…जी अभी आई। शादी के बाद यह संबोधन, मन खुशियों से भर देता था। लेकिन दिव्या जब से हनीमून से लौटी है, दुल्हन नाम सुनते ही घबराहट होने लगती कि अब फिर क्या …गलत हो गया। सास के पलंग पर पैरों की तरफ बैठो या अलग नीचे बैठो, सिर पर पल्लू माथे तक रहे, पलट कर कोई प्रश्न नहीं, पति से भी बात नहीं कर सकते।
समीर भी अबोध शिशु ही लगते कई बार, आंखों में बहुत कुछ कह देते। उसके और समीर के परिवार में जमीन आसमान का अंतर है, लेकिन फिर भी पूरी कोशिश करते हुए भी कुछ ना कुछ गलत हो ही जाता है। दिव्या अपने घर में छोटी संतान थी, पढ़ाई में भी अव्वल, डॉक्टरी की पढ़ाई करते हुए भी हमेशा हर एक्टिविटी में आगे रही। छोटा परिवार खुले विचारों का, पूरी स्वतंत्रता थी हर बात कहने की। समीर पता नहीं कब उसकी जिंदगी का हिस्सा बन गया और झट मंगनी पट ब्याह। समीर का भरापूरा परिवार दादी सास, बुआ सास, चाची सास और खुद चार बहन भाइयों का परिवार, चहल पहल बहुत अच्छा लगता था। लेकिन यहां केवल दादी जी का ही हुक्म चलता था और माना भी जाता था।
सभी साधारण घरेलू, दिव्या एडजस्ट नहीं कर पा रही थी, किसी को उसकी पढ़ाई, नौकरी से मतलब ही नहीं था। शायद उनको लगता कि पढ़े लिखे लोग घमंडी होते हैं, या घर से अलग हो जाते हैं इसलिए नई बहू को काबू में रखना चाहिए। पता नहीं क्या था को दिव्य समझ नहीं पा रही थी। दिव्या नहीं चाहती थी कि समीर से कुछ कहे, इसलिए एक दिन मां से फोन पर बात करते हुए रोना आ गया।
कल से हॉस्पिटल भी जाना है, कैसे होगा। सुबह उठ कर सासू मां के साथ रसोई में हाथ बंटाने चली गई। अनमनी दिव्या को देख सासूमां बोली, क्यों समीर ने कुछ कह दिया या मां की याद आ रही है। दिव्या की आंखें डबडबा गईं, डरते हुए दिव्या ने कहा नहीं मम्मी जी, वो ये बात है…. फिर चुप्पी.. कैसे कहूं। लेकिन समीर की मां बहुत ही समझदार थी, वो सिर पर पल्लू, भर भर हाथ चूड़ी की बात सुन चुकी थीं। उन्होंने दिव्या को प्यार से बताया_ बेटे ये गृहस्थी है, इसमें सबका ख्याल रखना पड़ता है। तुम अभी छोटी हो धीरे धीरे सब समझ जाओगी। मैं तुम्हारी मां तो नहीं पर मुझे मन कि बात कह सकती हो। समीर उनका लाड़ला पोता है, दादी तुम्हें बेहद प्यार करती हैं लेकिन उनके मन में एक डर समाया रहता है, कहीं घर परिवार पर कोई आंच ना आ जाए। जब तुम्हारे ससुर जी उनकी गोदी में थे, तब दादाजी किस तरह एक हिंसा का शिकार हो गए। सबसे बड़ी बुआ भी तब मात्र नौ दस साल की रही होंगी। किन दुखों से उन्होंने सबको पढ़ा लिखा कर शादी ब्याह किए, घर संभाला। इसलिए दादी जी की बात को कोई भी नहीं टालता और ना ही बुरा मानता है। कोई बात नहीं, तुम चिंता मत करो मैं संभाल लूंगी, तुम दादी मां के सामने ऐसे ही सिर पर पल्लू रख कर निकलना, फिर दूसरे कमरे में चेंज कर चली जाया करो।
एक दो दिन की बात हो ठीक है, आखिर ऐसा कब तक चलता। जिस का डर था वही हुआ, दादी जी को पता चला, खूब क्लेश हुआ और ऐसे में ही दादी को बेहोश हो कर गिर पड़ीं। समीर भी घर पर नहीं, किसको बुलाएं, गाड़ी भी किसी और को चलानी नहीं आती। ऐसे में दिव्या तुरंत साड़ी पहने, सिर ढंके गाड़ी चलाकर हॉस्पिटल पहुंची और तुरन्त इलाज शुरू हुआ। दूसरे दिन हॉस्पिटल में पता चलने पर दादी ने दिव्या को अपने पास बुलाया और गले लगा कर खूब प्यार करने लगीं, वे भी अब सारी बातें समझ चुकी थीं। घर आने पर सबसे पहले उन्होंने समीर की मां से कह कर दिव्या की पसंद के कपड़े पहनने की इजाजत दी। बड़ी बुआ भी हंसने लगी और कहने लगी, मां क्या अब दिव्या से पर्दा नहीं करवाओगी। दादी भी हंस पड़ी अरे_ हमाई बहू डॉक्टरनी है कोई हम जैसे थोड़ी ना है। हम तो घर में रहकर कछु भी कर सकें, बाय तो बाहर निकरनौ पड़े। जब बहू छोरों की तरह काम करेगी, तो रहेगी भी छोरन की ही तरह और खिलखिला कर हंस पड़ी। समीर इन सब बातों से अनजान, बस दादी और दिव्या को देखे जा रहा था।
_______मनु वाशिष्ठ