शायद आप कभी कुम्भ के मेले में गए हों तो वहां बहुत बड़ी संख्या में नागा साधुओं को देखा होगा। नागा, यह एक शब्द मात्र नहीं हैं।
कह सकते हैं एक भाव, अपने ईश्वर के लिए सम्पूर्ण समर्पण और त्याग का प्रतीक है पर सवाल है कि क्या सिर्फ पुरुष ही नागा साधु बनते हैं? नहीं, शरीर पर भगवा धारण किए महिला नागा सन्यासनियां भी होतीं हैं।
महिला के नागा साध्वी बनने के लिए कई वर्षों तक कड़ी तपस्या करनी पड़ती है, इसके साथ ही यह सब करना सभी के बस की बात नहीं हैं।
इसके साथ ही महिला नागा साध्वी बनने से पहले गुरु का विश्वासपात्र बनना पड़ता है, इसके बाद गुरु से अपनी शिक्षा दीक्षा लेना शुरू करते हैं।
नागा साध्वी बनने के लिए महिलाओं को इसके लिए 10 से 15 वर्षों तक ब्रह्मचर्य का पालन करना होता हैं इसके साथ ही अपने हाथों अपना पिंडदान भी करना पड़ता है।
नागा साध्वी बनने के लिए महिलाओं को अपने सर के पूरे बालों का दान करना होता हैं इसके साथ ही स्वयं का मुंडन कराकर सारी उम्र सन्यास का पालन करना पड़ता है।
पुरुष साधुओं को सार्वजनिक तौर पर नग्न होने की इजाजत है लेकिन महिला साधु ऐसा नहीं कर सकती। हालांकि जूना अखाड़े की महिलाओं को यह इजाजत भी मिली हुई है। वैसे महिला नागा साधु को नग्न रहने की इजाजत नहीं है। खासकर कुंभ में डुबकी लगाने वाले दिन में तो एकदम नहीं।
नागा एक पदवी होती है। साधुओं में वैष्णव, शैव और उदासीन तीनों ही संप्रदायों के अखाड़े नागा बनाते हैं। नागा में बहुत से वस्त्रधारी और बहुत से दिगंबर (निर्वस्त्र) होते हैं। इसी तरह महिलाएं भी जब संन्यास में दीक्षा लेते हैं तो उन्हें भी नागा बनाया जाता है, लेकिन वे सभी वस्त्रधारी होती हैं।
महिला साधुओं का अखाड़ा माई बाड़ा :
13 अखाड़ों से जूना अखाड़ा साधुओं का सबसे बड़ा अखाड़ा है। प्रयागराज 2013 में जूना अखाड़े में महिलाओं के माई बाड़ा अखाड़े को भी जूना अखाड़ा में शामिल कर लिया गया था। इस बार प्रयागराज 2019 के कुंभ में किन्नर अखाड़े को भी अखाड़े मान्यता देकर जूना अखाड़ा में शामिल कर लिया गया है। किन्नर अखाड़े के प्रमुख लक्ष्मीनाराण त्रिपाठी है। हालांकि महिलाओं के इस अखाड़े से अलग अखाड़ों में भी कई महिला साधु हैं जो भिन्न भिन्न अखाड़ों से जुड़ी हुई हैं।
जूना अखाड़ा ने माई बाड़ा को दशनाम संन्यासिनी अखाड़ा का स्वरूप प्रदान कर किया था। कुंभ क्षेत्र में माई बाड़ा का पूरा चोला बदल गया है और अखाड़े ने सहमति देकर मुहर लगा दी है। उस वक्त लखनऊ के श्री मनकामनेश्वर मंदिर की प्रमुख महंत दिव्या गिरी को संन्यासिनी अखाड़े का अध्यक्ष बनाया गया था।
इस अखाड़े की महिला साधुओं को ‘माई’, ‘अवधूतानी’ या ‘नागिन’ कहा जाता है। हालांकि इन ‘माई’ या ‘नागिनों’ को अखाड़े के प्रमुख पदों में से किसी पद पर नहीं चुना जाता है। लेकिन उन्हें किसी खास इलाके के प्रमुख के तौर पर ‘श्रीमहंत’ का पद दिया जाता है। श्रीमहंत के पद पर चुनी जाने वाली महिलाएं शाही स्नान के दौरान पालकी में चलती हैं। साथ ही उन्हें अखाड़े का ध्वज, डंका और दाना अपने धार्मिक ध्वज के नीचे लगाने की छूट होती है। अखाड़ा कुंभ पर्व में महिला संन्यासियों के लिए माई बाड़ा नाम से अलग शिविर स्थापित किया जाता है। यह शिविर जूना अखाड़े के ठीक बगल में बनवाया जाता है।
विदेशी संन्यासिन भी हैं नागा अवतार में :
जूना अखाड़े में दस हजार से अधिक महिला साधु-संन्यासी हैं। इसमें विदेशी महिलाओं की संख्या भी बहुतायत में है। खासकर यूरोप की महिलाओं के बीच नागा साधु बनने का आकर्षण बढ़ा है।
यह जानते हुए भी कि नागा बनने के लिए कई कठिन प्रक्रिया और तपस्या से गुजरना होता है विदेशी महिलाओं ने इसे अपनाया है।