व्हीकल स्क्रैपेज पॉलिसी से करीब 43,000 करोड़ रुपये की बिजनेस ऑर्प्च्यूनिटीज बनने की उम्मीद है। साथ ही, इससे ऑटो इंडस्ट्री में कंज्म्प्शन बढ़ेगा और यह पर्यावरण के लिए भी फायदे वाली होगी।सरकार को यह भी उम्मीद है कि इस योजना से जहां ईंधन की बचत होगी और हवा का प्रदूषण कम होगा। स्क्रैपेज पॉलिसी की घोषणा के बाद ऑटो स्टॉक्स में तेजी आई है। वित्तमंत्री निर्मलाा सीतारमण ने अपने यूनियन बजट 2021 प्रेजेंटेशन में व्हीकल स्क्रैपेज पॉलिसीज के डीटेल्स को हाइलाइट किया।
उन्होंने कहा, ‘पुराने और अनफिट व्हीकल्स को हटाने के लिए हम अलग से वॉलन्टरी व्हीकल स्क्रैपिंग पॉलिसी अनाउंस कर रहे हैं। यह फ्यूल-इफीशिएंट और एनवायरमेंट-फ्रेंडली व्हीकल्स को प्रोत्साहित करेगी। इससे गाड़ियों से होने वाला प्रदूषण और ऑयल इंपोर्ट बिल घटेगा।’ रोड ट्रांसपोर्ट एंड हाईवेज मिनिस्टर नितिन गडकरी ने कहा था कि व्हीकल स्क्रैपेज पॉलिसी को मंजूरी मिलने के बाद भारत ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरिंग के लिए बड़े हब के रूप में उभर सकता है, क्योंकि स्क्रैपिंग से मिलने वाले स्टील, एल्युमीनियम और प्लास्टिक जैसे प्रमुख रॉ मैटीरियल्स को रिसाइकल किया जा सकेगा। इससे ऑटोमोबाइल प्राइसेज में 20-30 फीसदी तक की कमी आ सकती है।
केंद्र सरकार ने 15 साल से ज्यादा पुरानी गाड़ियों की स्क्रैपिंग को इजाजत देने के लिए 26 जुलाई 2019 को मोटर व्हीकल नॉर्म्स में संशोधन का प्रस्ताव दिया था। इसका मकसद इलेक्ट्रिकल व्हीकल्स की पहुंच का दायरा बढ़ाना है। इससे पहले, मई 2016 में सरकार वॉलन्टरी व्हीकल फ्लीट मॉडर्नाइजेशन प्रोग्राम (V-VMP) ड्राफ्ट लेकर आई थी, जिसमें 2.8 करोड़ पुरानी गाड़ियों को सड़कों से हटाने का प्रस्ताव था।चूंकि ऑटो सेक्टर कंस्ट्रक्शन के बाद नौकरी देने वाला सबसे बड़ा क्षेत्र माना जाता है, इसलिए मौजूदा माहौल में यह सेक्टर उठ खड़ा हो तो पूरी इकॉनमी का चक्का फिर से तेज घूमने की संभावना बढ़ जाएगी।
ऑटो सेक्टर के जरिए इकॉनमी की सुस्त पड़ती रफ्तार को तेज करने की कामयाब कोशिशें दस साल पहले भी हुई थीं। सरकार अगर इस नुस्खे को एक बार फिर आजमाना चाहती है तो इसमें कुछ भी अस्वाभाविक नहीं है। मगर ध्यान देने की बात यह है कि इस सेक्टर में सुस्ती भी कोई पहली बार नहीं आई है। 2012-13 में गाड़ियों की बिक्री में कमी आने लगी थी तो इसकी तेजी बनाए रखने के कई उपाय किए गए थे।बावजूद इसके, एक-दो साल बाद फिर गिरावट के ट्रेंड दिखाई देने लगे। यह भी कि कोरोना की खबरें आने से पहले ही यह सेक्टर गंभीर गिरावट की गिरफ्त में आ चुका था।
2018 में देश में कुल 44,00,136 मोटर गाड़ियां बिकी थीं लेकिन 2019 में यह आंकड़ा 38,16,891 तक ही सिमट गया। अब, माना जा रहा है कि प्रस्तावित स्क्रैपेज पॉलिसी से बड़े पैमाने पर मांग पैदा होगी जो इस क्षेत्र के लिए टॉनिक का काम कर सकती है। संभवतः इस योजना के पीछे अमेरिका में बराक ओबामा की 2009 में लाई ‘कैश फॉर क्लंकर्स’ (पुरानी गाड़ी जमा करने पर नकद सहायता) की प्रेरणा है जो वहां काफी कामयाब मानी गई थी। पर उस योजना में न तो जांच-पड़ताल के लिए कोई जगह रखी गई थ, ना ही नई गाड़ी खरीदने की कोई मजबूरी थी।
पुरानी गाड़ी जमा करते ही कैश मिल जाता था। आप उस कैश का इस्तेमाल नई गाड़ी में खरीदने में करना चाहें या किसी और काम में, आपकी मर्जी। बेहतर होगा कि यहां भी सरकार कानूनी तंत्र के दबाव से लोगों को नई गाड़ियां खरीदने की ओर धकेलने के बजाय छूटों और सहूलियतों के जरिए उन्हें इस ओर खींचने का रास्ता अपनाए।तभी यह पॉलिसी जनसरोकार का श्रेष्ठ साधन सिद्ध होगी।
__विनीता कुंदनानी, ब्रांड एम्बेसडर सच की दस्तक, ब्यूरोचीफ मध्यप्रदेश, इंदौर