नेताजी के हाथ में BJP का झंडा, खफा हुए चंद्र बोस
नेता जी जयंती की उपेक्षा क्यों?
चंद्र कुमार बोस ने कहा, “नेताजी की जयंती पर कुछ कार्यक्रम तो होना ही चाहिए. अगर आप उनकी उपेक्षा करते हैं, तो आप देश की उपेक्षा करते हैं. यह मेरा प्रधानमंत्री के लिए संदेश है.” उन्होंने हालांकि कहा कि भाजपा नीत राजग सरकार ने स्वतंत्रता संग्राम में सुभाष चंद्र बोस के अपार योगदान को मान्यता दी है. बुधवार की शाम तक 23 जनवरी को नेताजी की जयंती पर किसी भी विशेष कार्यक्रम के आयोजन के लिए दिल्ली स्थित भाजपा मुख्यालय को कोई निर्देश नहीं दिया गया है.
पश्चिम बंगाल में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा के हाथ में भारतीय जनता पार्टी का झंडा दिखने के बाद विवाद खड़ा हो गया है. बीजेपी नेता और नेताजी सुभाष चंद्र बोस के परपोते चंद्र कुमार बोस ने इस पर नाराजगी जाहिर की और नागरिकता कानून पर अपनी ही पार्टी के रुख पर सवाल खड़ा करते हुए इशारे इशारे में BJP से बाहर होने की धमकी भी दी है.
नागरिकता संशोधन कानून को लेकर अपनी पार्टी (बीजेपी) के रुख की आलोचना करते हुए चंद्र बोस ने कहा कि बीजेपी ने सीएए में बदलाव नहीं किया तो उन्हें भाजपा में बने रहने के अपने फैसले पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है
नेताजी के हाथ में बीजेपी के झंडे वाली तस्वीर पश्चिम बंगाल के नादिया जिले की है. अब इसे पूरे बंगाल में तेजी से शेयर किया जा रहा है.
बंगाल बीजेपी के उपाध्यक्ष चंद्र बोस ने कहा, ‘नेताजी सुभाष चंद्र बोस निश्चित रूप से एक राजनीतिक व्यक्ति थे, लेकिन वे दलगत राजनीति से बहुत ऊपर थे. मुझे नहीं लगता कि वर्तमान में कोई भी राजनीतिक दल नेताजी के साथ खुद को जोड़ने के योग्य या लायक है.’
‘नेताजी की मूर्ति पर पार्टी का झंडा लगाना बेहद अनुचित’
चंद्र बोस ने अपनी ही पार्टी बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा, ‘उनकी मूर्ति पर पार्टी का झंडा लगाना बेहद अनुचित है और मैं इसकी निंदा करता हूं. मुझे लगता है कि राज्य के पार्टी अध्यक्ष दिलीप घोष को तुरंत इस मामले को देखना चाहिए.’
हाल ही में सुभाष चंद्र बोस के परपोते चंद्र बोस ने नागरिकता अधिनियम (सीएए) के साथ उपजे ‘भय के माहौल’ पर भी चिंता जताई थी. चन्द्र बोस ने अपनी पार्टी की केंद्र सरकार से संशोधित नागरिकता कानून के तहत मुसलमानों को भी नागरिकता देने के लिए आग्रह किया था.
बोस ने कहा, ‘मैं कुछ मामूली संशोधनों के साथ सीएए का समर्थन करता हूं. महात्मा गांधी ने कहा था कि हमें अपने पड़ोसी देशों में सताए गए लोगों को शरण देनी चाहिए. लेकिन गांधीजी ने कभी किसी धर्म का उल्लेख नहीं किया. उन्होंने सभी उत्पीड़ित लोगों का उल्लेख किया. गांधीजी के पत्रों का अनुसरण करना होगा, फिर हमें उन सभी का अनुसरण करने की आवश्यकता है जो उन्होंने वास्तव में कहा था.’
सीएए में संशोधन की जरूरत- बोस
उन्होंने कहा, ‘अगर भारत सरकार द्वारा सीएए को संशोधित करके उत्पीड़ित व्यक्तियों को भारत में नागरिकता देने पर विचार किया जाए तो विरोधी पार्टियों के अभियान को कुछ ही सेकेंड में खत्म किया जा सकता है.’
सीएए पर पारदर्शिता की बात करते हुए उन्होंने कहा, गृह मंत्री ने हमेशा कहा है कि सीएए में धर्म शामिल नहीं है. अगर यह किसी भी धर्म पर आधारित नहीं है, तो मुझे लगता है कि हमें इसके बारे में पारदर्शी और बहुत विशिष्ट होने की आवश्यकता है. क्योंकि इस बारे में बहुत भ्रम है.
बोस ने कहा कि उन्होंने बीजेपी ज्वाइन करते समय ही कहा था कि वो नेताजी की विचारधारा पर राजनीति करेंगे. उन्होंने कहा, ‘2016 में जब मैं भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुआ तो नरेंद्र मोदी जी और गृह मंत्री अमित शाह जी के साथ मेरी चर्चा हुई थी कि मैं नेताजी सुभाष बोस की विचारधारा के आधार पर राजनीति करूंगा. उनकी विचारधारा समावेशी और धर्मनिरपेक्ष रही है. मैंने कहा था कि नेताजी के निर्देशों से नहीं हटूंगा और अगर इसके विपरीत कुछ हुआ तो मुझे भाजपा में अपने भविष्य पर पुनर्विचार करना पड़ेगा.’
उन्होंने पहले कहा था कि सरकार को इस मुद्दे पर एक लिखित स्पष्टीकरण जारी करना चाहिए ताकि लोगों को समझने में आसानी हो सके.
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम का उद्देश्य बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत में प्रवेश करने वाले हिंदू, जैन, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी धर्म के लोगों को भारतीय नागरिकता प्रदान करना है, जो अपने देशों में धार्मिक उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं.