गुरु नानक जयंती का पर्व कार्तिक पूर्णिमा के दिन देश भर में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस साल यह पर्व 12 नवंबर, मंगलवार को मनाया जाएगा। ये नानक देव जी की 550वीं जयंती है।इस प्रकाश पर्व के अवसर पर चंडीगढ़ की विभिन्न गुरुद्वारा कमेटियों की ओर से तैयारियों काे अंतिम रूप दिया जा चुका है। इससे पहले भी विभिन्न कमेटियाें की ओर से शहर में हेल्थ चेकअप, ब्लड डोनेशन कैंप और विभिन्न एक्टिविटीज की जा रही है। इस मौके पर गुरुद्वारों काे आकर्षक लुक देकर सजाया गया है।
गुरु नानक जी का जन्म 550 साल पहले 15 अप्रैल, 1469 को तलवंडी में हुआ, जिसे अब ननकाना साहिब नाम से जाना जाता है। यहां हम आपको बता रहे हैं गुरु नानक जी के वह 10 उपदेश, जो आपको सिखाएंगे जीवन जीने का सही रास्ता…1. एक ओंकार सतिनाम, करता पुरखु निरभऊ।निरबैर, अकाल मूरति, अजूनी, सैभं गुर प्रसादि ।।
अर्थ: ईश्वर एक है। वह सभी जगह मौजूद है। हम सबका “पिता” वही है इसलिए सबके साथ प्रेमपूर्वक रहना चाहिए।
2. नीच अंदर नीच जात, नानक तिन के संग, साथ वढ्डयां, सेऊ क्या रीसै।अर्थ: नीच जाति में भी जो सबसे ज्यादा नीच है, नानक उसके साथ है, बड़े लोगों के साथ मेरा क्या काम।
3. ब्राह्मण, खत्री, सुद, वैश-उपदेश चाऊ वरणों को सांझा।अर्थ: गुरुबाणी का उपदेश ब्राह्मणों, क्षत्रीय, शूद्र और वैश्य सभी के लिए एक जैसा है।
4. धनु धरनी अरु संपति सगरी जो मानिओ अपनाई।तन छूटै कुछ संग न चालै, कहा ताहि लपटाई॥
अर्थ: धन को जेब तक ही सीमित रखना चाहिए। उसे अपने हृदय में स्थान नहीं बनाने देना चाहिए। तुम्हारा घन और यहां तक की तुम्हारा शरीर, सब यहीं छूट जाता है।
5. हरि बिनु तेरो को न सहाई।काकी मात-पिता सुत बनिता, को काहू को भाई॥अर्थ: हरि के बिना किसी का सहारा नहीं होता। काकी, माता-पिता, पुत्र सब तू है कोई और नहीं।
6. दीन दयाल सदा दु:ख-भंजन, ता सिउ रुचि न बढाई।नानक कहत जगत सभ मिथिआ, ज्यों सुपना रैनाई॥अर्थ: इस संसार में सब झूठ है। जो सपना तुम देख रहे हो वह तुम्हें अच्छा लगता है। दुनिया के संकट प्रभु की भक्ति से दूर होते हैं। तुम उसी में अपना ध्यान लगाओ।
7. मन मूरख अजहूँ नहिं समुझत, सिख दै हारयो नीत।नानक भव-जल-पार परै जो गावै प्रभु के गीत॥अर्थ: मन बहुत भावुक और बेवकूफ है जो समझता ही नहीं। रोज उसे समझा-समझा के हार गए हैं कि इस भव सागर से प्रभु या गुरु ही पर लगाते हैं और वे उन्हीं के साथ हैं जो प्रभु भक्ति में रमे हुए हैं।
8. मेरो मेरो सभी कहत हैं, हित सों बाध्यौ चीत।अंतकाल संगी नहिं कोऊ, यह अचरज की रीत॥अर्थ: इस जगत में सब वस्तुओं को, रिश्तों को मेरा है-मेरा हैं करते रहते हैं, लेकिन मृत्यु के समय सब कुछ यही रह जाता है कुछ भी साथ नहीं जाता। यह सत्य आश्चर्यजनक है पर यही सत्य है।
9. तनाव मुक्त रहकर अपने कर्म को निरंतर करते रहना चाहिए और सदैव प्रसन्न भी रहना चाहिए।
10. कभी भी किसी का हक नहीं छीनना चाहिए बल्कि मेहनत और ईमानदारी की कमाई में से ज़रूरतमंद को भी कुछ देना चाहिए।
विवाह –
गुरु नानक जी का विवाह बटाला निवासी मूलराज की पुत्री सुलक्षिनी से नानक जी का विवाह से हुआ। सुलक्षिनी से नानक के 2 पुत्र पैदा हुए। एक का नाम था श्रीचंद और दूसरे का नाम लक्ष्मीदास था।
2. गुरु नानक की पहली ‘उदासी’ (विचरण यात्रा) 1507 ई. में 1515 ई. तक रही। इस यात्रा में उन्होंने हरिद्वार, अयोध्या, प्रयाग, काशी, गया, पटना, असम, जगन्नाथपुरी, रामेश्वर, सोमनाथ, द्वारका, नर्मदातट, बीकानेर, पुष्कर तीर्थ, दिल्ली, पानीपत, कुरुक्षेत्र, मुल्तान, लाहौर आदि स्थानों में भ्रमण किया।
3. नानक जब कुछ बड़े हुए तो उन्हें पढने के लिए पाठशाला भेजा गया। उनकी सहज बुद्धि बहुत तेज थी, वे कभी-कभी अपने शिक्षको से ऐसे विचित्र सवाल पूछ लेते जिनका जवाब शिक्षकों के पास भी नहीं होता। जैसे एक दिन शिक्षक ने नानक से पाटी पर ‘अ’ लिखवाया। तब नानक ने ‘अ’ तो लिख दिया किन्तु शिक्षक से पूछा, गुरूजी! ‘अ’ का क्या अर्थ होता है? यह सुनकर गुरूजी सोच में पड़ गए।भला ‘अ’ का क्या अर्थ हो सकता है? गुरूजी ने कहा, ‘अ’ तो सिर्फ एक अक्षर है।
4-गुरु नानक सोच-विचार में डूबे रहते थे। तब उनके पिता ने उन्हें व्यापार में लगाया। उनके लिए गांव में एक छोटी सी दूकान खुलवा दी। एक दिन पिता ने उन्हें 20 रुपए देकर बाजार से खरा सौदा कर लाने को कहा। नानक ने उन रुपयों से रास्ते में मिले कुछ भूखे साधुओं को भोजन करा दिया और आकर पिता से कहा की वे ‘खरा सौदा’ कर लाए है।
5. उन्होंने कर्तारपुर नामक एक नगर बसाया, जो अब पाकिस्तान में है। इसी स्थान पर सन् 1539 को गुरु नानक जी का स्वर्गागमन हुआ।
रोचक प्रसंग –
उनके जीवन के कई ऐसे किस्से हैं, जिनसे हमें सुखी और सफल जीवन की सीख मिलती है। यहां जानिए एक ऐसे प्रसंग, जिसमें गुरुनानक ने ईमानदारी काम करने की सीख है…
चर्चित प्रसंग के अनुसार एक बार गुरुनानक देव एक गांव गए, वे वहां कुछ दिन के लिए रुक गए। ये बात आसपास के क्षेत्र में फैल गई कि एक दिव्य महापुरुष हमारे क्षेत्र में आए हैं। वहां एक धनी व्यक्ति भी रहता था, जो कि बेईमानी करके धनवान बना था। वह धनी व्यक्ति गरीबों किसानों से अनुचित लगान वसूलता और उनकी फसल भी हड़प लेता था। जब उस धनी व्यक्ति को नानकजी के बारे में पता चला तो वह उन्हें अपने महल में बुलाना चाहता था, लेकिन गुरुजी ने एक गरीब के छोटे से घर को ठहरने के लिए चुना।
गरीब व्यक्ति ने अपने सामर्थ्य के अनुसार गुरुनानक का बहुत अच्छी तरह आदर-सत्कार किया। नानक देव भी उसके घर में रूखी-सूखी रोटी खाते थे। जब धनी व्यक्ति को ये बात पता चली तो उसने एक बड़ा भोज आयोजित किया। उसने इलाके के सभी बड़े लोगों के साथ गुरु नानकजी को भी निमंत्रित किया।
गुरुनानक ने उसका निमंत्रण ठुकरा दिया। ये सुनकर धनी व्यक्ति क्रोधित हो गया। उसने अपने सेवकों को गुरुनानक को अपने यहां लाने का आदेश दिया। जब उसके सेवक नानकदेव को उसके महल ले कर आए तो धनी व्यक्ति ने कहा कि गुरुजी मैंने आपके ठहरने का बहुत बढ़िया इंतजाम किया था। कई सारे स्वादिष्ट व्यंजन भी बनवाए, फिर भी आप उस गरीब के यहां सूखी रोटी खा रहे हैं, ऐसा क्यों?
गुरुदेव ने कहा कि मैं तुम्हारा भोजन नहीं खा सकता, क्योंकि तुमने गलत तरीके से कमाई की है। जबकि उस गरीब की रोटी उसकी ईमानदारी और मेहनत की कमाई है। गुरुजी की ये बात सुनकर धनी व्यक्ति बहुत क्रोधित हो गया। गुरुजी से इसका सबूत देने को कहा। गुरुजी ने गरीब के घर से रोटी का एक टुकड़ा मंगवाया।
धनी व्यक्ति के यहां क्षेत्र कई लोग उपस्थित थे। उनके सामने गुरुजी ने एक हाथ में गरीब की सूखी रोटी और दूसरे हाथ में धनी व्यक्ति की रोटी उठाई। गुरुनानक ने दोनों रोटियों को हाथों में लेकर जोर से दबाया। गरीब की रोटी से दूध और धनी व्यक्ति की रोटी से खून टपकने लगा।
धनी व्यक्ति अपने दुष्कर्मों का सबूत देख नानकदेव के चरणो में गिर गया। गुरुजी ने उसे गलत तरीके से कमाई हुई सारी धन-दौलत गरीबों में बांटने को कहा। ईमानदार बनने की सलाह दी। धनी व्यक्ति ने गुरुनानक की बात मान ली।
प्रसंग की सीख – गलत तरीके से कमाए गए धन से चीजें तो खरीदी जा सकती है, लेकिन शांति नहीं। ईमानदारी जीवन की सबसे बड़ी पूंजी है।
गुरु नानक जी का जन्म 550 साल पहले 15 अप्रैल, 1469 को तलवंडी में हुआ, जिसे अब ननकाना साहिब नाम से जाना जाता है। यहां हम आपको बता रहे हैं गुरु नानक जी के वह 10 उपदेश, जो आपको सिखाएंगे जीवन जीने का सही रास्ता…1. एक ओंकार सतिनाम, करता पुरखु निरभऊ।निरबैर, अकाल मूरति, अजूनी, सैभं गुर प्रसादि ।।
अर्थ: ईश्वर एक है। वह सभी जगह मौजूद है। हम सबका “पिता” वही है इसलिए सबके साथ प्रेमपूर्वक रहना चाहिए।