जो भी बैठा CM की कुर्सी पर वो हारा चुनाव, सरयू की धार से नहीं बदलेगा इतिहास

0

1996 में अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने और उन्होंने अपना वादा भी निभाया। यह वादा था झारखंड को अलग राज्य का दर्जा देने का। (उन दिनों भाजपा के नेता झारखंड की जगह वनांचल कहते थे)। 11 सितंबर 1999 को रांची का बिरसा मैदान था और बीजेपी के दिग्गज नेतावाजपेयी ने विशाल जनसभा को संबोधित कर कहा था ”हमारी सरकार ही वनांचल देगी, जब तक वनांचल नहीं बनेगा, न हम चैन से बैठेंगे और न बैठने देंगे। आप हमें सांसद दें, हम आपको वनांचल देंगे। वाजपेयी के वादे का असर दिखा था और 1999 के चुनाव में झारखंड में 14 में से 11 सीटों पर भाजपा के सांसद चुने गये।

सरकार भाजपा की बनी और तीसरी बार प्रधानमंत्री बने अटल बिहारी वाजपेयी। उसके बाद उन्होंने झारखंड राज्य बनाने के लिए जो वादा किया था, उसे पूरा  किया। अगले साल ही झारखंड राज्य बन गया। लेकिन झारखंड राज्य के गठन के बाद से ही प्रदेश में राजनीतिक अस्थिरता रही है। 19 साल की उम्र वाले झारखंड ने अब तक 6 मुख्यमंत्री देख लिए हैं। 10 बार सीएम की कुर्सी पर बैठने वाले बदल गए। तीन बार राष्ट्रपति शासन की वजह से सीएम की कुर्सी खाली रही।

कभी लालू प्रसाद यादव ने कहा था कि अलग झारखंड उनकी लाश के ऊपर बनेगा। झारखंड बना और उसके बाद से अभी तक सिर्फ एक बार ही सीएम के तौर पर रघुवर दास ने पहले पूर्णकार्काल का गौरव प्राप्त किया। झारखंड के साथ एक और मिथक जुड़ा है।

इस प्रदेश में चाहे वो पहले सीएम बबाबूलाल मरांडी हो या अर्जुन मुंडा या फिर सोरने पिता-पुत्र सभी ने सीएम को हार का मुंह देखना पड़ा है। बात अगर 2019 के विधानसभा की करें तो मौजूदा मुख्यमंत्री रघुवर दास के खिलाफ जमशेदपुर पूर्वी सीट बीजेपी के बागी सरयू राय निर्दलीय मैदान में हैं तो कांग्रेस ने अपने दिग्गज नेता गौरव बल्लभ को उतारा है। रघुवर दास अपनी ही पार्टी के बादी सरयू राय से पीछे चल रहे हैं। जिसके बाद झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्रियों की हार पर एक नजर डालना तो बनता है।

साल 2000 में पहली बार प्रदेश के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की सरकार बनी और बाबूलाल मरांडी राज्य के पहले सीएम बने। जिसके बाद बाबूलाल मरांडी ने बीजेपी से बगावत कर अलग झारखंड विकास पार्टी बना ली है। 2014 में गिरिडीह और धनवार सीट से बाबूलाल मरांडी मैदान में उतरे, लेकिन दोनों सीट से उन्हें हार का सामना करना पड़ा। 
झारखंड के दिग्गज नेता शिबू सोरेन तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि मधु कोड़ा के हटने के बाद 2008 में शिबू सोरेन सीएम बने, उस समय वह विधानसभा के सदस्य नहीं थे। ऐसे में 2009 में उन्होंने तमाड़ विधानसभा सीट से किस्मत आजमाई और हार का सामना करना पड़ा। उप चुनाव में शिबू सोरेन को झारखंड पार्टी के प्रत्याशी राजा पीटर ने 8,973 मतों से हरा दिया था। विधानसभा चुनाव हार जाने के चलते उन्हें सीएम पद छोड़ना पड़ा था और प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था। ये और बात है कि 2010 में फिर से वो राज्य के मुख्यमंत्री बनने में सफल रहे थे।
बीजेपी से तीन बार झारखंड के सीएम रहे अर्जुन मुंडा को ही 2014 में खरसावां सीट पर हार का मुंह देखना पड़ा था। अर्जुन मुंडा को झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रत्याशी दशरथ गागराई ने 11 हजार 966 मतों से मात दिया था।
2014 में झारखंड में चौथी विधानसभा के चुनाव हुए। इस बार झारखंड मुक्ति मोर्चा की कमान हेमंत सोरेन के हाथों में थी। लोकसभा चुनावों में मोदी लहर ने झारखंड को भी अपनी चपेट में लिया था। झारखंड विधानसभा चुनाव में भी लहर कायम रही। हेमंत सोरेन दो सीटों से चुनाव लड़े। झारखंड की उप-राजधानी दुमका और बरैहट से। दुमका शिबू सोरेन की कर्मस्थली रही है। लेकिन हेमंत सोरेन वो सीट बचा नहीं पाए। दुमका में उनको बीजेपी के लुइस मरांडी ने हरा दिया था।
रघुवर दास के सामने आ खड़े हुए सरयू
2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी नेताओं की आपसी लड़ाई इतनी तल्ख हो गई कि बागी हो चुके सरयू राय ने झारखंड के मुख्यमंत्री रघुबर दास के खिलाफ जमशेदपुर पूर्वी सीट से चुनावी मैदान में उतर गए।
जिस वजह से दोनों नेताओं के बीच लड़ाई सीधी हो गई। मतगणना के रुझानों में सरयू राय मुख्यमंत्री रघुवर दास को कड़ी चुनौती देते दिख रहे हैं। मतगणना रुझानों में सरयू राय मुख्यमंत्री रघुबर दास से आगे चल रहे हैं। ऐसे में अगर सरयू राय के हाथों रघुवर दास को हार का सामना करना पड़ता है तो झारखंड के सीएम के हारने की रवायत कायम रहेगी। 

Sach ki Dastak

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x