साईकिल को कमल पसंद है?

0

साथियों! मोदीजी की लोकप्रियता का आलम इस कदर है कि अभी कल ही पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर पोक में नसीम नाम के पीड़ित ने बतौर वीडियो यह कहा कि पाकिस्तानियों ने मेरे घर को सील कर दिया, बरसात में मेरे परिवार को बेघर कर दिया, मोदी जी आओ और इन सबको सबक सिखाओ। यही विश्वास बलूचिस्तानियों का मोदी जी पर है और विश्व के लोगों का भी..।

साथियों! मौसम चुनावी है तो इस समय राजनीति में नेताओं का विपक्षी पाले में जाना कोई नयी बात नहीं है। फिर अगर पार्टी अच्छी हो, महिलाओं का सम्मान करने वाली हो, देश की जनता जनार्दन का मजबूती से भरोसा जीतने वाली हो तब यह बात और भी प्रासंगिक हो जाती है। आपको याद होगा कि ज्योतिरादित्य सिंधिया जब कांग्रेस में थे तब उनकी क्या हालत थी और अब बीजेपी ने उन्हें नागरिक उड्डयन मंत्रायल का अहम प्रभार दिया है। यह है बीजेपी की विराट सोच। रही बात अर्पणा यादव की तो मित्रों! यह पहला मौका नहीं है, जब सपा परिवार को बीजेपी की तरफ से तगड़ा झटका मिला है। बता दें कि इससे पहले मुलायम सिंह यादव के समधी और सपा के विधायक रहे हरिओम यादव भी बीजेपी में जा चुके हैं जोकि हरिओम, सिरसागंज से विधायक थे। सपा ने बीते साल फरवरी में उन्हें पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में 6 साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया था। हरिओम ने साल 2002 में पहली बार सपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था। मुलायम परिवार से संध्या यादव राजनीति में उतरने वाली पहली बेटी रहीं। संध्या और उनके पति अनुजेश, दोनों ने बीते साल बीजेपी का दामन थाम लिया था।एक वक्त मुलायम परिवार कई सदस्य लोकसभा और राज्यसभा में थे। शिवपाल यादव विधानसभा में थे और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी थे। परिवार के अन्य सदस्य जिला पंचायत अध्यक्ष, ब्लॉक प्रमुख, प्रधान, सहकारी बैंक अध्यक्ष जैसे पदों पर आसीन थे। राजनीतिक गणित के अनुसार जब 2012 में यूपी में समाजवादी पार्टी को बहुमत मिला तो परिवार के कई लोगों की यह चाहत थी कि मुख्यमंत्री मुलायम ही बनें लेकिन मुलायम सिंह ने अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बना दिया । यूपी विधानसभा के पिछले चुनाव से ठीक पहले मुलायम परिवार का झगड़ा खुलकर सामने आ गया था और शिवपाल यादव नई पार्टी बना लिए हालांकि इस चुनाव में दोनों साथ आ रहे हैं लेकिन सीटों के समझौते के साथ। मुलायम सिंह यादव की ओर काफी कोशिश की गई कि परिवार में कोई टूट न हो पर ये हो न सका। अब बीजेपी में शामिल हो चुकीं, अपर्णा यादव कई मौकों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ की तारीफ कर चुकी हैं।

बीजेपी में शामिल होने के बाद अपर्णा यादव ने कहा कि मैं हमेशा से पीएम से प्रभावित रहती थी, मेरे चिंतन में सबसे पहले राष्ट्र है। अब मैं राष्ट्र की आराधना करने निकली हूं। मैं स्वच्छ भारत मिशन, महिलाओं के लिए स्वावलंबन जीवन समेत बीजेपी की अन्‍य सभी स्कीमों से प्रभावित रही हूं। मैं बीजेपी को धन्यवाद करती हूं कि उन्होंने मुझे पार्टी का हिस्सा बनने का मौका दिया।

अब यह कयास लगाए जा रहे हैं कि हो सकता है कि अपर्णा यादव को बीजेपी लखनऊ की कैंट विधानसभा सीट से उम्मीदवार बना सकती है।इस मौके पर केशव प्रसाद मौर्या ने कहा कि बहुत दिनों से चर्चा के बाद अपर्णा ने फैसला लिया। पीएम मोदी और सीएम योगी के नेतृत्व में जो विकास हो रहा है, यह देखते हुए बहुत लोग बीजेपी जॉइन कर रहे हैं। यूपी के पूर्व सीएम और सपा अध्यक्ष अखिलेश अपने परिवार में ही सफल नहीं है। इस मौके पर यूपी बीजेपी अध्‍यक्ष स्‍वतंत्र देव सिंह ने कहा कि मैं अपर्णा यादव जी का हृदय से स्वागत करता हूं।

सपा के शासन में गुंडागर्दी को इतना महत्व दिया जाता है कि पश्चिम यूपी में कोई बेटी सुरक्षित नहीं थी। अपर्णा को शुरू से लगता था कि सीएम योगी के शासन में एक अच्छा सुशासन है। ये भी सच है कि उत्तर प्रदेश में कोई भी चुनाव हो मुस्लिम वोटर हमेशा एक बड़ा फैक्टर रहते हैं। यूपी की कुल आबादी में करीब 20 प्रतिशत हिस्सा मुसलमानों का बताया जाता है और मुस्लिम वोटर जिस तरह से एकजुट होकर किसी राजनैतिक दल के प्रत्याशी को हराने या फिर जिताने के लिए वोटिंग करते हैं, वह कई बार निर्णायक साबित होता है।

इसीलिए जब तक मुसलमान वोटर कांग्रेस के साथ खड़ा रहा तब तक यूपी में कांग्रेस की सरकार सहज रूप से बन जाती थी, लेकिन 1992 में अयोध्या में जिस तरह से ढाँचे को कारसेवकों ने धवस्त कर दिया, उसके बाद से मुस्लिमों का विश्वास कांग्रेस से उठ गया। क्योंकि 06 दिसंबर 1992 को जब अयोध्या में ढांचा गिरा तब यूपी में भले बीजेपी की सरकार थी और कल्याण सिंह उसके मुख्यमंत्री थे, लेकिन केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी और नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री थे।

इसका हश्र यह हुआ कि मुसलमानों ने कांग्रेस का साथ छोड़ दिया और इसी के साथ यूपी में कांग्रेस के बुरे दिन शुरू हो गए जो अभी तक जारी हैं।यूपी में मुस्लिम वोट बैंक कांग्रेस से खिसका तो समाजवादी पार्टी ने मुस्लिम वोटरों को लपकने में समय नहीं लगाया, वैसे भी 1990 में जब कारसेवक विवादित ढाँचा गिराने अयोध्या पहुंचे थे तो तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने कारसेवकों पर गोलियां चलाकर ढाँचे को बचा लिया था। इसी के बाद से मुलायम मुसलमानों के नए रहनुमा बनते दिखने लगे थे और समय के साथ मुसलमानों का विश्वास मुलायम में बढ़ता ही गया। 2007 के विधानसभा चुनाव जरूर इसका अपवाद थे, जब मुस्लिम वोटरों ने बसपा की तरफ रूख कर लिया था और बीएसपी की पूर्ण बहुमत की सरकार भी बनी थी।

यह वह दौर था जब सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने बीजेपी से बाहर कर दिए गए पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को आगरा के सपा सम्मेलन में अपने साथ सपा की टोपी और गमछा पहना कर जोड़ लिया था। इससे नाराज मुस्लिम वोटरों ने खुलकर बसपा के पक्ष में मतदान करके मायावती को मुख्यमंत्री बनाया था।

उस समय समाजवादी पार्टी में अमर सिंह की झूमती थी, मुलायम अमर सिंह के बिना कोई बड़ा फैसला नहीं लेते थे, इसी वजह से आजम खान तक को पार्टी से बाहर जाना पड़ गया था। यह और बात है कि बाद में अमर सिंह के समाजवादी पार्टी से रिश्ते काफी खराब हो गए । इसके इतर एक बात काफी मशहूर है कि सपा की नैया का खिवइया मुस्लिम समुदाय है।

यूपी में मुस्लिम विधायकों के दबदबे की बात करें तो उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2012 में सबसे अधिक 68 मुस्लिम विधायक चुने गए थे। इससे पहले 2002 में 64, 2007 में 54, 1977 में 49, 1996 में 38 और 1957 में 37 मुस्लिम विधायक चुने गए थे।

मुस्लिम वोटर किसी की हार जीत का फैसला कर पाएं या नहीं, लेकिन देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में 2017 में मुस्लिम विधायकों का ग्राफ काफी गिर गया और केवल 23 मुस्लिम विधायक चुने गए। इससे पूर्व 1967 के विधानसभा चुनाव में 23 मुस्लिम विधायक चुने गए थे, वहीं इससे भी बुरा हाल 1991 में मुसलमान प्रतिनिधित्व का हुआ था और मात्र 17 विधायक जीते थे।

बात 2017 के विधानसभा चुनाव में मुस्लिम प्रतिनिधितत्व घटने की की जाए तो ऐसा इसलिये हुआ क्योंकि बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 300 से अधिक सीटें जीती थीं। सपा और बसपा की सबसे बड़ी हार हुई थी, इसीलिए यूपी विधानसभा में मुस्लिम प्रतिनिधित्व भी कम हुआ । यूपी में योगी सरकार बनी तो यहां सरकार बनाने वाली भाजपा से एक भी मुस्लिम विधायक नहीं जीता था जबकि इसके पहले 2012 के विधानसभा चुनाव में 64 मुस्लिम प्रत्याशी चुनाव में जीत दर्ज करने में सफल रहे थे। बता दें कि कि यूपी में अब विधानसभा में मुस्लिम प्रतिनिधित्व गिरकर 5.9 प्रतिशत रह गया है। साल 2012 में मुस्लिम प्रतिनिधित्व 17.1 प्रतिशत था।

खैर 2012 और 2007 के विधानसभा चुनाव की तरह इस बार के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती और समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने काफी बड़ी संख्या में मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं। ओवैसी की पार्टी भी बड़ी संख्या में मुस्लिम प्रत्याशियों को उतार रही है। लेकिन यूपी विधानसभा में मुसलमान विधायकों की संख्या कितनी बढ़ेगी यह नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।

फिलहाल सपा हो या बसपा अथवा कांग्रेस और ओवैसी की पार्टी, सभी मुस्लिम वोटरों को लेकर अति आत्मविश्वास में नजर आ रहे हैं। मुस्लिम वोट बैंक की सियासत ने इन दलों के नेताओं को ऐसा ‘सत्ता व जातवाद में ऐसा फंसा’ लिया है कि वह सही-गलत, अच्छे-बुरे, छोटे-बड़े तक का फर्क भूल गए हैं। उनको लगने लगा है कि वह सत्ता हासिल करने के लिए जो भी फैसला लेंगे, वही पत्थर की लकीर होगा। इधर समाजवादी पार्टी मुस्लिम वोटरों और प्रत्याशियों को लेकर ओवर कॉन्फीडेंस में है।

उसको लगता है कि मुस्लिम प्रत्याशी सपा के लिए अनमोल 786 का नोट साबित होगा। इसीलिए उसने बड़ी संख्या में दागी-दबंगों को टिकट बांट दिए हैं। ऐसे लोगों को भी टिकट दे दिया है जिनके ऊपर गैंगस्टर और रासुका लगा है, इसीलिए तो 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों और कैराना से हिन्दुओं के पलायन के आरोपी तक को टिकट थमा दिया है।

पर बात यह भी सत्य है कि मोदी, योगी को चाहने वाले मुस्लिम लोगों की भी एक बड़ी संख्या भी है। मोदी जी का पीएम बनना, योगी जी का सीएम बनना साबित करता है कि देश उन्हें बहुत प्रेम करता बस कुछ मुठ्ठी भर गद्दारों को छोड़कर। जी हां वही गद्दार जो सीडीएस जनरल बिपिन रावत जी की शहादत पर सोसलमीडिया में हर पोस्ट पर हँस रहे थे। उम्मीद की जा रही थी कि पिछले पांच वर्षों से बीजेपी जिस तरह से समाजवादी पार्टी पर अपराधियों को संरक्षण देने और अपराध को बढ़ावा देने का आरोप लगा रही थी इस बार शायद बदलाव आये पर ऐसा नहीं हुआ। समाजवादी पार्टी ने एक बार फिर अपराधियों, दंगाइयों को सत्ता में आने का न्योता देते हुए विधानसभा का टिकट दे दिया। इसमें सबसे बड़ा नाम पश्चिमी यूपी में हिंदुओं के पलायन का मास्टरमाइंड नाहिद हसन था।

उत्तर प्रदेश की कैराना सीट से गैंगस्टर नाहिद हसन को प्रत्याशी बनाकर सपा प्रमुख अखिलेश यादव घिर गए हैं। सपा ने कैराना और मुजफ्फरनगर, बुलंदशहर और लोनी में हिन्दुओं के पलायन के आरोपी और माफियाओं को भी टिकट दिया है।अभी 13 जनवरी को ओर से सपा-आरएलडी के गठबंधन वाले प्रत्याशियों की ओर से पहली सूची जारी की गई।

इस सूची में समाजवादी पार्टी द्वारा शामली जिले की कैराना सीट के लिए नाहिद हसन के अलावा सपा गठबंधन ने बुलंदशहर सदर सीट से बसपा के टिकट पर विधायक बनते रहे हाजी अलीम की मृत्यु के बाद उनके छोटे भाई हाजी यूनुस को टिकट दिया है। यूनुस पर बुलंदशहर की कोतवाली नगर में ही 23 मुकदमे दर्ज हैं। प्रभारी निरीक्षक द्वारा एसएसपी को भेजी गई रिपोर्ट में हत्या, हमला, लूट, गुंडा एक्ट, गैंगस्टर एक्ट जैसे 23 मुकदमों का जिक्र किया गया है।

मेरठ से समाजवादी पार्टी के विधायक रफीक अंसारी को दोबारा टिकट दिया गया है। उन पर भी कई आपराधिक केस लंबित हैं। वो अपनी ही पार्टी के एक अन्य नेता को मौत की धमकी देने के बाद चर्चित हुए थे। अक्टूबर 2021 में मेरठ की एक अदालत ने बुंदू खान अंसारी की शिकायत पर रफ़ीक अंसारी को गिरफ्तार करने का आदेश दिया था। शिकायत में कहा गया था कि विधायक रफ़ीक अंसारी ने उन्हें अपनी जमीन फर्जी कागज़ातों के आधार पर बेच कर उनका पैसा हड़प लिया है।

इतना ही नहीं, नवम्बर 2017 में रफीक अंसारी का एक ऑडियो वायरल हुआ था। ऑडियो में वो समाजवादी पार्टी के ही एक अन्य नेता को नगर निगम चुनावों के दौरान जान से मारने की धमकी दे रहे थे। विधायक अंसारी मेरठ के नौचंदी थाने में हिस्ट्रीशीटर भी हैं।सपा-आरएलडी के गठबंधन से जुड़ी प्रत्याशियों की इस सूची में एक नाम भाजपा नेता गजेंद्र भाटी की हत्या करने वाले अपराधी अमरपाल शर्मा का है।

गाजियाबाद के खोड़ा में भाजपा नेता गजेंद्र भाटी उर्फ गज्जी की दो सितंबर 2017 को हत्या हुई। शूटरों ने खुलासा किया था कि अमरपाल शर्मा ने उन्हें सुपारी दी थी। प्रशासन ने इस मामले में अमरपाल पर रासुका भी लगाई थी। अमरपाल पर साल-2018 में 10 लाख की रंगदारी मांगने का केस दर्ज हुआ। कभी बसपा और कांग्रेस के साथी रहे अमरपाल शर्मा आज सपा-रालोद गठबंधन से साहिबाबाद सीट से प्रत्याशी हैं।

इसी प्रकार हापुड़ जिले की धौलाना विधानसभा सीट से सपा विधायक एवं मौजूदा प्रत्याशी असलम चौधरी विवादित बयान के लिए अक्सर चर्चाओं में रहते हैं। इसके चलते पिछले पांच साल में उन पर तकरीबन छह से ज्यादा मुकदमे दर्ज हुए।सपा-रालोद गठबंधन द्वारा दंगों के आरोपियों को टिकट देने का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है।

भाजपा के एक नेता ने चुनाव आयोग के निर्देशों का उल्लंघन का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। इसमें मांग की गई है कि सुप्रीम अदालत, चुनाव आयोग को अखिलेश यादव पर मुकदमा चलाने व सपा की मान्यता रद्द करने का निर्देश दें। ये तो हुई नेताओं की बातें पर जनती जनार्दन का क्या? तो इसका जवाब आपको सोसलमीडिया पर मिल जायेगा कि पूरे देश का नागरिक जिसपर युवा बुलडोजर वाले बाबाजी यानि योगी जी को अपना सुपर हीरो मानकर बेहतरीन डायलॉग, गाने, शायरी व सुन्दर कविताओं और ब्लॉग लिखकर हर तरह उन्हें बस जीतता देखना चाहते हैं।

यही है उस कर्मयोगी उस गौप्रेमी उस अपराधियों के काल जिनका नाम है योगी आदित्यनाथ। हम लेखक लोग भी यही चाहते हैं कि हमारे उत्तर प्रदेश को दंगा मुक्त, रोजगार युक्त वाला ही सशक्त नेतृत्व मिले। बिल्कुल योगी जी ही यूपी की चाह हैं और उनकी लोकप्रियता में इसी तरह इजाफ़ा होता रहे। वंदेमातरम्

_ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना, न्यूज ऐडीटर सच की दस्तक राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, वाराणसी उत्तर 

Sach ki Dastak

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x