नहीं पता चल सका नेताजी की गुमनामी का राज
भारत से ब्रिटिश शासकों को खदेड़ने के 78 वर्ष बाद यह धारणा भी संदिग्ध सिद्ध हुई कि दिनांक 18/08/1945 को ताईहोकू विमान दुर्घटना में नेताजी श्री सुभाष चंद्र बोस जी की मृत्यु हो गई। यह सर्वविदित है कि प्रत्येक देश को उस देश का सर्वोच्च मुख्य गुप्तचर भी अपनी इच्छित आईडीप्रूफ के अनुसार चलाता है। उसे अपना गुप्तचर जीवन कैसे व्यतीत करना है यह उसकी इच्छित योजना पर निर्भर करता है। द्वितीय विश्वयुद्ध में धुरी राष्ट्रों की हार के बाद नेताजी श्री सुभाष चंद्र बोस अपने सुरक्षित ठिकाने की तलाश में थे। वह जापान से बचते हुए रूस पहुंचे और सायबेरिया जेल से भारत आये। तथा अपना भूमिगत गुप्तचर जीवन जिया।
1974 से 1984 तक वह राम नगरी के अयोध्या देवी मंदिर, लखनऊआ हाता व राम भवन में रहे। वह किसी के सामने नहीं आते व पर्दे की ओट में इक्का दुक्का चुनिंदा लोगों से मिलते और आखिर के दो वर्ष के सिविल लाइन के रामभवन में गुजारे और चिरनिद्रा में लीन हुए। वे तो सर्वसमक्ष ऐसे रहे जैसे दीपक तले अंधेरा। इनके पास से जो प्रचुर सामग्री मिली वह राम कथा संग्रहालय में पौने तीन हजार की गिनती से चार सौ से अधिक धरोहर के रूप में संरक्षित है। इन्हें गुमनामी बाबा का नाम मीडिया की देन है। अंततः, इस पर भी विवाद है……..नेताजी के विरोधी व देश के गद्दार किसी से छिपे नहीं है। वे आज भी सर्वसमक्ष हैं और स्वंय को फर्जी नेताजी बनाने में लगे हुए हैं।