भारतीय राजनीति का स्वर्णिम हिंदुत्वकाल

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आज की राजनीति में गहराता हिंदुत्व –
सिर्फ़ बहुसंख्यक वोटरों को लुभाने के लिए हिंदुत्व की चादर ओढ़ कर निजिस्वार्थना सरल है पर एक भी हिंदू के बुनियादी सपनों के चकनाचूर होते अपमान पर (क्रूरतापूर्ण हत्याओं की धमकियों और हत्याओं पर) राजनेताओं का चुप्पी साध लेना कहां का न्याय है। सच है कि आज की राजनीति का यह स्वर्णिम हिंदुत्वकाल है जिसमें हिंदू हितों की किस पार्टी को कितनी चिंता है यह किसी से छिपा नहीं रह गया है… केवल चुनावी हिंदू बनना अच्छी बात नहीं साहिब! अगर हिंदुओं के पक्ष में वो भी सच को सच की स्वीकृति देने से अगर आप हिचकते हैं तो साहिब लोगों! आप हिंदुत्व के नाम पर हिंदुओं को छलना बंद कर दीजिए। 
आजकल राजनीति में पश्चिम बंगाल चुनाव की गर्मी चारों ओर महसूस की जा रही है जहां बीजेपी द्वारा अपने सभी तीर स्वरूप स्टार प्रचारक ममता के गढ़ में दागे जा चुके हैं और जिसमें जय श्री राम नारों की गूंज से पूरा पश्चिम बंगाल गुंजायमान हो रहा है।
यह देखकर मुस्लिमों की हितेषी दीदी को बीजेपी से ज्यादा बड़ा हिंदू होना साबित करना पड़ गया जब उन्होंने चंडीपाठ कर डाला और खुद का गोत्र शांडिल्य तक बताकर खुद को स्ट्रोंग हिंदू होने का दावा तक कर डाला। आज चुनावों में हिंदुत्व गहराता साफ दिखाई पड़ रहा है। तथा चुनावी रैलियों में भगवा झंडे व गुव्वारे प्रचुरता से देखे जा सकते हैं।
यह सब हिंदुओं के बहुसंख्यक होने का पक्का प्रमाण है। जब हिंदुराष्ट्र की बात आती है तो विपक्ष विलाप करने लग जाता है तब वह यह नहीं सोचता कि तथाकथित धर्म के दुनिया में 18 देश भरे हैं। क्योंकि राजनीत में सत्य सुनना बोलना तो गुस्ताखी है।
सच है कि पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव और हॉट सीट बन चुकी नंदीग्राम में उन्‍होंने बीजेपी पर हमला बोलते हुए कहा कि वह भी हिंदू हैं और उनके साथ हिंदू कार्ड मत खेलो। जनसभा में ममता के चंडी पाठ करने पर जहां भारतीय जनता पार्टी ने उन पर करार हमला बोला है, वहीं कांग्रेस भी पीछे नहीं है।
पश्चिम बंगाल कांग्रेस के प्रदेश अध्‍यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने मतदान से पहले ममता के ‘सॉफ्ट हिंदुत्‍व’ पर सवाल उछाल डाले।
चौधरी ने यहां तक कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब से बंगाल में चुनाव प्रचार करने आए हैं, उसके बाद से ममता बनर्जी को हिंदू-हिंदू करना पड़ा है।
यह नरेंद्र मोदी की कामयाबी हो सकती है। अब ममता बनर्जी नरेंद्र मोदी से ज्यादा पूजा पाठ करने लगी हैं। मोदी को समझ कर चलना पड़ेगा कि अब वह इस मामले में अकेले नहीं हैं।
कांग्रेस प्रदेश अध्‍यक्ष ने कहा कि ममता बनर्जी पहली बार सबके सामने खुद को ब्राह्मण महिला बताकर हिंदुत्व साध रही हैं। बता दें कि हिंदू छवि की प्रतिमूर्ति बने योगी मोदी पहले व्यक्ति नहीं है जो राजनीत में हिंदुत्व को जगमगा रहे हैं।
इससे पहले कांग्रेस की नींव इंदिरा गांधी भी रूद्राक्ष की माला पहने व चुनाव प्रचार दौरान मंदिर पूजा-अर्चना करतीं देखीं गयीं हैं। कहा जाता है कि जब वो मथुरा में देवरहा बाबा के दर्शन के लिए गईं तो बाबा ने हाथ उठाकर उन्हें आशीर्वाद दिया। जब वो कांची कामकोटी के स्वामी चंद्रशेखर सरस्वती के पास गईं थीं तो उन्होंने दाहिना हाथ उठाया था। इन दोनों संतों से मिलकर उन्होंने ये संदेश ग्रहण किया कि कांग्रेस का चुनाव चिन्ह हाथ का पंजा ही बनाना चाहिए।
गौरतलब है कि 20 सालों तक इंदिरा गांधी के डॉक्टर रहे केपी माथुर ने अपनी किताब “द अनसीन इंदिरा गांधी ” में लिखा, उन्होंने अपने आधिकारिक प्रधानमंत्री निवास में एक छोटा सा कमरा पूजा के लिए बना रखा था। 
इस पूजा कक्ष में सभी धर्मों के देवताओं की तस्वीरें थीं. इसमें राम, कृष्ण, क्राइस्ट, बुद्ध, रामकृष्ण परमहंस, अरविंद आश्रम की मां की तस्वीरें शामिल थीं। 
 
वो अपने इस पूजा कक्ष में नियमित तौर पर मैट्स पर बैठकर पूजा अर्चना करती थीं। उनके बाद सोनिया गांधी भी हिंदू बहू की तरह सिर पर पल्लू लिये भाषण देतीं देखी जा चुकी हैं। कुछ राजनीतिक पंडितों का कहना है कि शुरुआत में कांग्रेस पार्टी ही हिंदू ताक़तों की अगुआई करती थी। कांग्रेस की हिंदुत्व राजनीति के कमज़ोर पड़ने पर ही बीजेपी आज सशक्त हिंदू पार्टी हो पाई। 
 
अब जब राहुल गांधी ने देश की राजनीति में मार्च 2004 में कदम रखा तब उन्होंने अमेठी से पहला लोकसभा चुनाव जीता था। अपने राजनीतिक करियर के शुरुआती वर्षों में उन्होंने शायद ही किसी धर्म या धार्मिक स्थानों के बारे में कोई रुझान दिखाया, लेकिन पिछले दो सालों से उन्होंने हिंदू धार्मिक स्थानों पर जाना शुरू किया है।
इस पर राहुल के सहयोगी राजीव सातव ने मीडिया में कहा, “राहुल सियासी दिखावे के लिए नहीं बल्कि वाकई व्यक्तिगत तौर पर शिवभक्त हैं. वो उत्तराखंड में आई त्रासदी के दौरान भी केदारनाथ पहुंचने वाले पहले राजनीतिक नेता थे।” 
 
सच तो यह है कि हिंदुत्व की राजनीति आज मुख्यधारा की राजनीति बन चुकी है। संघ के लिए इससे बड़ी सफलता भला और क्या हो सकती है क्योंकि ज्यादा तर राजनेता संघ ने ही देश को दिये हैं। आज भले ही देश की प्रमुख राजनीतिक पार्टियां नरम/गरम हिंदुत्व के नाम पर प्रतिस्पर्धा करने लगें पर सच तो यही है कि हिंदुस्तान में हिंदुत्व चरम पर है और आज का हिंदू जागा हुआ है जोकि इतिहास बदलने की कोशिश में है।
2014 के बाद से भारत की राजनीति में बड़ा बदलाव हुआ है जिसके बाद से यह लगभग तय सा हो गया है कि देश की सभी राजनीतिक पार्टियों को अपनी चुनावी राजनीति हिंदुत्व के धरातल पर ही करनी होगी इस दौरान उन्हें अल्पसंख्यकों के जिक्र या उनके हमदर्द दिखने से परहेज करना होगा और राष्ट्रीय यानी बहुसंख्य्यक हिंदू भावनाओं का ख्याल रखना पड़ेगा।
कुछ राजनीतिक विचारक कांग्रेस पार्टी के नरम हिंदुत्व की रणनीति को भाजपा और संघ के सांप्रदायिक राजनीति के कांटे के तौर पर देखते हैं लेकिन यह नर्म बनाम गर्म हिंदुत्व की एक कोरी बहस साबित हो जाती है जब अरुण जेटली ने कहते हैं कि जब ओरिजनल मौजूद है तो लोग क्लोन को भला क्यों तरजीह देंगे? और अगर क्लोन(चुनावी बनावटी हिंदू यानि परिस्थितिवश “हिन्दू चादर” ओढ़ने वाले) को कुछ सफलता मिल भी जाये तो भी इसका असली मूलधन तो ओरिजनल (हिंदू) के खाते में ही तो जाएगा।
अब अगर कुछ पीछे जाकर देेखा जाये तो गाँधी 1920 में कह रहे थे कि हमारी लड़ाई तीन चौथाई और एक चौथाई की है५ एक चौथाई मुस्लिम और तीन चौथाई हिंदू। यहाँ तक कि गाँधी भी धार्मिक गठबंधन या मेल के बारे में सोच रहे थे, उनका कहना था कि एक चौथाई को हमें हमारे साथ लाना है।कांग्रेस ही इसकी अगुवाई कर रही थी।
ताज्जुब यह है कि राम जी का भजन गानो वाले गांधी जी को हिंदू नहीं बल्कि मुस्लिम हितेषी माना जा चुका है। आज हर राजनीतिक पार्टी का जो भी अंदरूनी झुकाव रहा हो, कुछ एक उनकी व्यावहारिक मजबूरियां भी हैं।
घरेलू निर्वाचक मंडल के लिए उनको ख़ास तरीक़े से अपनी बात रखनी होती है, कुछ चीज़ों को समर्थन करना होता है और कुछ चीज़ों के साथ समझौता करना पड़ता है। 
 
यह कमोबेश भारत की ताज़ा राजनीतिक तस्वीर में भी नज़र आ रहा है। भारतीय राजनीति में हिंदुत्व की राजनीति धीरे-धीरे इस क़दर समाहित हो चुकी है कि उसे अब राजनीति से इतर नहीं देखा जा सकता और कहना तो यह चाहिये कि अब इसमें कोई शक नहीं कि आज का समय भारतीय राजनीति का स्वर्णिम हिंदुत्वकाल है पर जब सारी पार्टियां हिंदुत्व साध रही हैं और हिंदुत्व के कारण जीत भी रहीं हैं तो उन्हें हिंदुओं के पौराणिक जर्जर मंदिरों के जीर्णोद्धार के लिए भी एक बड़ी मुहिम चलानी चाहिये और सब मंदिरों का सुंदरीकरण करवाना चाहिये वहीं ओवरएज हो रहे बेरोजगार युवाओं के विषय में भी गम्भीरता से विचारकर उनके लिये ज्यादा से ज्यादा रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने चाहिए क्योंकि अपराध के कारणों में एक बड़ा कारण बेरोजगारी और अपमानित जिंदगी भी होता है जिसपर सरकारों को मंथन करने की आवश्यकता है।
कितनी विडम्बना है कि सारे टैक्स भरें फिर भी बेरोजगार रहें। सरकारी विज्ञापन के लिए सरकार को प्रत्येक नागरिक का मेल व मोबाईल नम्बर पता है पर कौन बेरोजगारी की मार में आत्महत्या से मर गया इसके लिये जांच कमेटी की आवश्यकता पड़ती है। क्या कोई योजना युवाओं के लिए है? बेरोजगारी मिटाने वास्ते है? हां है तो सरकारी लोन चुकाने वास्ते उस गरीब पर है क्या? आज भी टैक्स वसूली में हम सबसे आगें हैं पर सुविधाओं के नाम पर सबसे पीछे खड़े होने वाले देशों में एक हैं। हकीकत तो यह है कि आज भी गांव के ऊपर से जब हवाई जहाज निकलता है तो सब हैरानी से देखते हैं?
क्योंकि उनकी सात पुस्तों ने भी हवाई जहाज को पास से नहीं देखा उसपर सफर तो छोड़ो। जब तक देश बेरोजगारी से मुक्ति न हो जाये, गरीबी, पिछड़ेपन, अशिक्षा से मुक्त न हो जाये तब तक हम वीटो पावरफुल बनने के अहसास को सिर्फ़ सपने में ही महसूस कर सकते हैं। हम (भारतवर्ष) सबसे प्राचीन संस्कृति व सबसे युवा देश जरूर हैं पर सबसे युवा देश भविष्य में अगर सबसे दर्दमय बेरोजगार देश के रूप में किसी सूची में कहीं चयनित हो तो यह कितना बड़ा धब्बा होगा जिसे हिंदुत्व कार्ड से भी धुला न जा सकेगा। कहना तो यह है कि हिंदुओं के नाम पर वोट मांगने वाले नेताओं या तो आप हिंदुओं की पीड़ा को भी आत्मसात करो वरना हिंदुओं को सिर्फ़ वोट के लिए इस्तेमाल करना बंद करो।
सच तो यह है कि [चुनाव का आधार, परिधि, दिशा और  केन्द्र ‘रोटी-रोजगार’ होना चाहिए ‘वोट स्वार्थ’ नहीं] 
 
_ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना
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