परिणय सूत्र का असली अर्थ

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जब एक स्त्री पुरूष परिणय सूत्र मे बंधते है तो पुरूष का कुछ नही बदलता वही स्त्री का सबकुछ बदल जाता है यहा तक कि उसका अपना नाम भी उसकी अब तक की पहचान खो जाती है। आपसे जुड़ते ही एक नयी पहचान बनती है एक नया नाम मिलता है जिससे वो जानी और पहचानी जायेगी जीवन भर… नया नाम मिलते ही उसका अस्तित्व ही मिट जाता है जैसे पानी मे घुलकर चीनी विलीन हो जाती है पर मिठास छोड़ देती है वैसे ही स्त्री अपना वजूद खोकर आपमे घुल जाती है आपके पानी रूपी जीवन को मिठास से भर देती है।

जब एक स्त्री बेटी से माँ बनने का सफर तय करती है तो कदम कदम पर उसे त्याग ही करना पड़ता है कभी बेटी या बहन के रुप मे कभी बहू या पत्नी के रुप मे और कभी माँ के रुप मे त्याग ही त्याग…जब लड़की बहू बनकर एक नयी दुनिया मे प्रवेश करती है तो अनेको जिम्मेदारियां होती है जिसका निर्वाह उसे सफलता पूर्वक करना होता है।

जिस घर मे आजीवन उसे रहना है वहा के हर कोने से वो अंजानी होती है सारे चेहरे अजनबी होते है जिसे अपना बनाना होता है। यहा तक जिसकी वो अर्धांगिनी बनकर आयी है वो भी पराया होता है उससे बिल्कुल अंजाना होता है। कितनी मुश्किलें होती है उसके नये जीवन मे कितनी कठिन परीक्षा लेती है जिन्दगी पर वह डरती नही है हाँ थोड़ी घबरा जाती है पर उसकी सहनशीलता और उसका धैर्य सदा उसके हौसलों को बढ़ाते रहते है उसका मनोबल बढ़ते जाता है।

धीरे धीरे अपने कुशल व मधुर व्यवहार से सारे अजनबी लोगो को अपना बना लेती है विविध रंगो के मोतियों को अपने प्यार और विश्वास के धागें मे पिरोती जाती है।सब एक साथ गूँथते जाते है सुंदर सी रिश्तों की माला बनने लगती है पर इस रिश्तों की माला का सबसे अहम हिस्सा कड़ी होता है जो दोनो सिरो को जोड़े रखता है और वो मजबूत कड़ी आप बनते है।

 

 

ये दायित्व आपका होता है आप की भी जिम्मेदारी उतनी ही होती है जितना की आपकी पत्नी की क्यूकि उसका पूरा जीवन धागें की तरह छुपा ही रह जाता है सामने आप दिखते है उसकी महत्ता को समझे उसने तो पूरी दुनिया अपनी आप मे समेट ली है आप उसे खुद मे समेट ले इतनी सी उसकी चाहत होती है।

जब वह माँ बनती है अपने ज़िस्म मे एक नन्ही सी जान को पालती है अपने लहू से सींचती है अपने अंश को हर पल स्वयं मे महसूस करती है माँ बनने के सुखद अहसास को जीती है उसे लगता है उसका नारी जीवन सार्थक हो गया उसने अपना दायित्व परिपूर्ण कर लिया मौत से लड़कर जब अपने अंश को इस दुनिया मे लाती है कितनी संतुष्ट होती है उसे निहारते आघाती नही उसकी इस खुशी मे भी नियति का स्वांग होता है यहा भी उसे त्याग ही करना है कोख उसकी, अंश उसका, दर्द उसने सहा , तड़पी वो, जन्म उसने दिया पर उसका तो कही नाम ही नही उस बच्चें को पहचान तो उसके पिता के नाम से मिलना है माँ का नाम तो कही नही माँ तो माँ है त्याग और ममता की मूरत इतने सारे त्याग करने के बाद भी वह खुश रहती है अपनी खुशियां आप सबमे तलाशती रहती है आप खुश तो वो भी खुश हो जाती है।

सरल भाषा मे कहूँ तो स्त्री जीवन बहुत जटिल है पर एक सुलझी और समझदार स्त्री सहजता से अपने सारे कर्तव्यों का निर्वाह कर लेती है क्यूकि उसके परिवार का साथ होता है। अपने साथी को सदा सम्मान और प्यार दे हर क्षेत्र मे एक दूसरे के सहभागी बने पति पत्नी दो शरीर एक आत्मा होते है क्यूकि दो जब एक होते है तभी सृजन होता है इस पवित्र रिश्तें की मर्यादा को समझे और विश्वास से निष्ठा पूर्वक निर्वाह करे कभी उसके वजूद को खोनें न दे क्यूकि वो आप मे खो चुकी है आपकी हो चुकी है।

 

__प्रफुल्ल सिंह “बेचैन कलम”
युवा लेखक/स्तंभकार/साहित्यकार
लखनऊ, उत्तर प्रदेश

Sach ki Dastak

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